कवितापद्य साहित्य

कविता वैचारिक मुक्ति की स्वतंत्र अभिव्यक्ति है

अंधियारी रातों में आजकल कविता देर रात तक जागती है,
जुगनू के प्रकाश सी चंचल शब्दो की माला तरंगित हो कागज पर भागती है,

कविता दुखित है, पीड़ित है, हृदय से विकल है।
शोषित है, क्रंदित है, रुदित है विफल है।।

सहसा पीड़ा उमड़ उमड़ उठती है,
मन कोने के तट घुमड़ घुमड़ उठती है,

कविता विद्वेग के विभीषक समय में चकित है,
उचित अनुचित के नित में उलझा सा चित है।।

कुंठा के बीजो ने द्वेष के ही वृक्ष बोये हैं,
शब्द शब्द जिस घृत को पी अबतक ना सोये हैं,

कविता व्यथित है संदेहित है अपनों से हारी है,
भावों के घाट में संवेदना तिल तिलकर मारी है।

पीड़ा के अँधेरे में घनघोर घनन आंधी है,
माया के फेरे से शब्दजाल बाँधी है,

कविता वैचारिक मुक्ति की स्वतंत्र अभिव्यक्ति है,
चेतना के सुरों में स्पंदित यह विषयों की मुक्ति है।।

किन्तु घोर तम में, विकृति के घनन में,
काटों सी चुभती है कविता बदन में।

आज द्रोह जागा है, क्रांति गर्भधारी है,
शब्दो की विपसना में छंद की बीमारी है,

इसीलिए कविता आजकल एक नया राग अलापती है,
अंधियारी रातों में आजकल कविता देर रात तक जागती है।।

—सौरभ कुमार दुबे

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!