धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

आचार्य गौतम जी और स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती के आध्यात्मिक उपदेश

ओ३म्

वैदिक साधन आश्रम, तपोवन देहरादून का आर्य संस्कृति के प्रचार व प्रसार का पुराना आध्यात्मिक केन्द्र है। समय समय पर यहां पर वृहद यज्ञों सहित अनेक शिविरों, शरदुत्सव एवं ग्रीष्मोत्सव का आयोजन किया जाता है। इसी श्रृंखला मे यहां 1 फरवरी से 12 मार्च, 2017 तक चतुर्वेद ब्रह्मपारायण यज्ञ एवं योग-ध्यान-स्वाध्याय साधना शिविर का आयोजन सम्पन्न हुआ। हम 12 मार्च को सम्पन्न हुए आयोजन का आंशिक समाचार उसी दिन प्रस्तुत कर चुके हैं। 12 मार्च के शेष कार्यक्रम जिसमें स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती एवं यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य गौतम जी का सम्बोधन मुख्य हैं, प्रस्तुत कर रहे हैं।

वैदिक साधन आश्रम तपोवन में 40 दिवसीय चतुर्वेद पारायण यज्ञ के 12 मार्च, 2017 को समापन के अवसर पर यज्ञ के ब्रह्मा आचार्य गौतम जी, करनाल ने कहा कि यह संसार एक भव सागर है। भव से हम सबको तरना है। हम सुनते हैं कि भव सागर में लोग डूब जाते हैं। शास्त्रों में भवसागर में जो तरता व तैरता है उसकी चर्चा आती है। जो व्यक्ति भक्त हृदय वाला होता है वह भवसागर से तरता है वा उससे पार हो जाता है। उन्होंने कहा कि जिस व्यक्ति की परमात्मा में अगाध श्रद्धा होती है वह तर जाता है, बाकी सब डूब जाते हैं। उपासना का उल्लेख कर आचार्य जी ने कहा कि उसासना ईश्वर मे डूब जाने को कहते हैं। सच्चा ईश्वर भक्त ही उपासना के द्वारा ईश्वर भक्ति में डूबता है। जो व्यक्ति केवल बुद्धि के तल पर ही चिन्तन मात्र करते हैं वह ईश्वर में डूब नहीं पाते। आचार्य जी ने कहा कि हमारे जीवन में श्रद्धा व भक्ति होनी चाहिये। यह दोनों ही जीवन को दुःख से बाहर निकालती हैं। भक्त का जीवन सरल व तरल जीवन होता है। जो व्यक्ति सरल स्वभाव का होता है वह किसी से झगड़ता नहीं है। आचार्य जी ने जल के बहने का उदाहरण दिया और कहा कि पहाड़ों में जल स्रोतों से जल निकलकर नीचे की ओर बहते हुए मार्ग में बड़े बड़े पत्थर आ जाते हैं ंतो तरल जल को जहां जगह मिलती है वह उसी ओर बह निकलता है। उन्होंने कहा कि सरल व तरल जीवन वाला व्यक्ति अपना रास्ता बना लेता है। उन्होंने कहा कि हमारा जीवन थोड़े समय के लिए है। इस जीवन को ईश्वर की ओर बढ़ाने में लाभ है। यहां आश्रम में पिछले चालीस दिनों से हम ईश्वर की ओर बढ़ते रहे हैं। जप का उल्लेख कर आचार्य जी ने कहा कि आवृत्ति का महत्व होता है। मैंने आपके साथ रहकर जप वा आवृत्ति की है। मेरा सौभाग्य रहा कि मैंने यहा विगत 40 दिनों में आपकों उपदेशों के माध्यम से कुछ दिया है। आचार्य जी ने सभी याज्ञिकों, तपस्वियों व साधकों का आभार व्यक्त किया। इसके साथ उन्होंने यह भी कहा कि आपका जीवन भक्ति व श्रद्धा वाला जीवन बने और आप ईश्वर की ओर बढ़े। आपने स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी को अपना प्रेरणास्रोत बताया और कहा कि हमें चाहिये कि हम उनसे प्रेरणा पाकर अपने जीवन को साधनामय बनायें। अन्त में उन्होंने सबका धन्यवाद किया।

इस आयोजन की आत्मा व केन्द्र बिन्दु स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि हमें इस यज्ञ के माध्यम से पुनीत कार्य करने का अवसर मिला है। उन्होंने कहा कि परमात्मा मुख्य है, हम सबको उसी की प्रशंसा व स्तुति करनी चाहिये। स्वामी जी ने वेद रूपी पवित्र पथ को जानने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि मनुष्य योनि में ही हमें ईश्वर की प्राप्ति हो सकती है, अन्य योनियों में नहीं। स्वामी जी ने कहा कि जब किसी परिवार में सन्तान का जन्म होता है तो वह नवजात शिशु परिवार के किसी सदस्य को नहीं जानता। हम सब अज्ञात व अनजान जगह से इस संसार में जन्म के समय यहां आये हैं। हम अपने पुराने परिवार वालों को और वह हमारे इस जन्म व स्थान के बारे में नहीं जानते। बच्चा आरम्भ के दिनों में अपनी माता को जान पाता है। वह माता को इसलिये जानता है कि माता ही उसकी हर आवश्यकता की पूर्ति करती है। बच्चे की मां ही उसकी दुनिया होती है। बच्चा जब कुछ कुछ समझने योग्य होता है तो माता उसका परिचय परिवार के अन्य निकट के लोगों अर्थात् पिता, दादी, दादा व भाई-बहिनों आदि से कराती है। स्वामी जी ने विषय परिवर्तन करते हुए श्रोताओं पूछा कि क्या हम अपने घरों के स्वामी होते हैं? हम सदा से घर में नहीं हैं, और न ही सदा रहेंगे।  हम सदा अपने शरीर, नगर व देश में भी नहीं रहेंगे। अनेक जीवनों में हमारी अनेक मातायें रहीं हैं। हमारा यह शरीर असत्य नहीं अपितु सत्य है। जब तक हमारा यह शरीर है तभी तक सब संबंध हैं। शरीर छूटने के साथ ही हमारे सभी संबंध समाप्त हो जाते हैं। मरने पर सब यहीं छूट जाता है, साथ कुछ नहीं जाता। हमारा कमाया हुआ धन व दौलत, मकान, जमीन कुछ साथ नहीं जाता। पत्नी व बच्चे भी यहीं छोड़कर हमें जाना पड़ता है। स्वामी जी ने कहा कि हमारे जीवन में हमारे कर्म ही मुख्य हैं। यदि हम ईश्वर व उसके ज्ञान वेद तथा ऋषियों की आज्ञाओं के अनुसार अपना जीवन चलाते हैं तो हमारा जीवन पवित्र हो जाता है। इस जीवन को हमें अच्छी तरह से जीना है। हमें असत्य और अधर्म का आचरण नहीं करना है। हमें केवल वेद प्रतिपादित धर्म का ही आचरण करना हैं। स्वामी जी ने आगे कहा कि हमें साधना पथ पर चलना है। हमें यज्ञ करना है। ऋषि दयानन्द जी के अनुसार जो यज्ञ नहीं करता वह पाप करता है। यज्ञ हम सब को करना है। योग व ध्यान की साधना हमें प्रतिदिन करनी है। परमात्मा हर पल व हर क्षण हमारे साथ रहता है। इन्हीं शब्दों के साथ स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी ने अपने उपदेश वचनों को विराम दिया।

समापन समारोह को शिविर में भाग लेने वाले कुछ साधकों श्री देव मुनि, श्री सूर्यप्रकाश, बहिन वर्षा बत्रा, रोहतक की माता सन्तोष जी, कर्नाटक से पधारी माता जी, ब्रह्म मुनि जी, बहिन राज सरदाना आदि ने भी सम्बोधित किया। श्री देवमुनि जी ने कहा कि हमने यहां 40 दिन निरन्तर चतुर्वेद पारायण यज्ञ किया है। हमने यहां कुछ समय और कईयों ने 40 ही दिन पूर्ण मौन रहकर साधना की है। उन्होंने कहा कि 40 दिन मौन रखने वालों का बहुत बड़ा तप है। उन्होंने कहा कि अभ्यास करने से हमारे अन्दर दृणता आती है। आत्म शक्ति में उभार आता है। हम आगे बढ़ते हैं। यहां आकर हम सब को ऐसा लगता है कि जैसे हम स्वर्ग में गये हैं। यहां आकर हमें आनन्द का अनुभव हुआ है। आयोजन में श्री लखेन्द्र को सम्मानित किया गया जिन्होंने मात्र ढाई महीनों के अल्प समय में आश्रम की भव्य, विशाल, मध्य में बिना खम्बों वाली पांच कुण्डीय यज्ञशाला एवं कुछ कमरों का निर्माण किया है। बताया गया कि आप आर्यसमाजी हैं और निरामिष भोजी हैं। धूम्रपान आदि भी नहीं करते। साधक श्री सूर्य प्रकाश ने कहा कि यहां साधना के परिणाम स्वरूप अब मेरे भावी जीवन व रहन सहन में अन्तर आयेगा। हमने यहां प्राणायाम, ध्यान व स्वाध्याय आदि करना सीखा है। इससे भी मैं लाभ उठाऊंगा। अब मैं आसन, प्राणायाम व ध्यान नित्यप्रति करूगां। सन्तोष माता जी ने कहा कि हमाने यहां उपासना सीखी और स्वामी से सेवा करना सीखा है। कर्नाटक की माता जी ने मुख्य बात यह कही कि हमने यहां रहकर सुख शान्ति पाई है।

वैदिक साधन आश्रम के प्रधान श्री दर्शनकुमार अग्निहोत्री जी ने स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी को आश्रम में निवास करने और यहां समय समय पर वृहद यज्ञों का आयोजन व आध्यात्मिक शिविर आदि लगाने के लिए धन्यवाद किया। आपने वैदिक भक्ति साधन आश्रम, रोहतक में 16-19 मार्च, 2017 को आयोजित महात्मा प्रभु आश्रित महाराज के भव्य अर्धशताब्दी निर्वाण समारोह में सबको आमंत्रित किया। उन्होंने बताया कि रोहतक में आयोजित इस कार्यक्रम के अध्यक्ष स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी है। उन्होंने यह भी बताया कि एटा के प्रसिद्ध आर्य विद्वान वागीश जी तथा वाराणसी गुरुकुल की बहिन नन्दिता शास्त्री जी को अर्धशताब्दी समारोह में मुख्य वक्ताओं के रूप में आमंत्रित किया गया है। इस अवसर पर महात्मा प्रभु आश्रित जी के जीवित सहयोगियों व दिवंगत सहयोगियों के परिवार जनों को सम्मनित करने की योजना भी है। आश्रम के मंत्री इजी. श्री प्रेमप्रकाश शर्मा जी ने आश्रम की गतिविधियों सहित यहां सम्प्रति आरोग्य धाम के निर्माण सहित चल रहे सभी निर्माण कार्यों की जानकारी दी और धन आदि से सहयोग करने की अपील की। कार्यक्रम के अन्त में शान्ति पाठ के मंत्र पर आधारित कीर्तन हुआ और शान्ति पाठ एवं प्रसाद वितरण के साथ चतुर्वेद ब्रह्म पारायण यज्ञ एवं साधना शिविर का समापन हुआ। इसके बाद सभी आगन्तुकों ने ऋषि लंगर का आनन्द लिया।

मनमोहन कुमार आर्य