कवितापद्य साहित्य

कविता :: करो संकल्प साधना

करो संकल्प साधना

जैसे पर्वत का संकल्प है अटल ही रहना
जैसे नदियों का संकल्प है कल कल बहना
पुष्प सुगंधी फैलाने का संकल्प लिए है
सुरभित बाग़ बाग़ को शोभित स्वतः किए है
बन फूलों का माधुर्य धरा की बनो प्रेरणा
करो संकल्प साधना

अम्बर के विस्तार ने जैसे सबको घेरा
और दिवाकर का प्रकाश भी सदा सुनहरा
कोकिल के कलरव में मीठी तान छिपी है
जो सुंदर प्रकृति शब्दों की ज्ञान लिपी है
इसी तान के पीछे जागृति की अमिट भावना
करो संकल्प साधना

जैसे लहरें पत्थर से हैं नित टकराती
मुह की खाकर बार बार ही लौट हैं जाती
लेकिन फिर फिर आकर उसको चोट लगाती
पत्थर की छाती को एकदिन तोड़ हैं पाती
है अखंड यज्ञों में आहूत यह उपासना
करो संकल्प साधना

सौरभ कुमार दुबे 

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!