कहानी

कहानी–काली गाय

मोहन के घर में एक काली गाय थी, ये गाय उसकी नानी ने मोहन की माँ को दी थी. कहा था कि ये गाय ले जा, घर में थोडा दूध होने लगेगा. मोहन की माँ जानकी ने गाय ले तो ली लेकिन जब गाय घर में आकर रहने लगी तब पता चला कि नानी ने गाय उन्हें क्यों दे दी.
दरअसल वो गाय इतनी मरखनी (मारने वाली) थी कि अच्छे अच्छे इन्सान को अपने पास न भटकने देती थी, उसे दुहने के लिए आर्मी की तरह घरवाले लगाये जाते थे, ताकि गाय कहीं कूंद न जाय, जब से घर में आई थी तब से एक ही खूंटे पर बंधी रहती, क्योंकि शुरुआत में एक दो दिन खूंटा बदलने की कोशिश की गयी तो गाय ने पूरे घर में आतंक मचा दिया था.
मोहन और उसके भाई गाय आने के समय बड़े उत्साह और ख़ुशी में उसे रोटी खिलाने गये थे, गाय ने पहले तो रोटी खायी फिर मोहन को सींगों पर उठा लिया, बड़ी मुश्किल से मोहन को घर वालों ने गाय से बचाया, तब से लेकर आज तक मोहन ने एक भी बार गाय की तरफ जाने की न सोची, अगर उसे रोटी खिलानी भी होती तो दूर से फेंक कर भाग आता.
आपको बता दें कि गाँव में काली गाय का अपना एक अलग महत्व होता है, उसको लोगों द्वारा पूजा जाता है. इसी कारण गाँव के हरवीर, मोहन की गाय को एक दिन लोवा (कच्चे आटे का लड्डू) देने आये, मोहन के घर वालों ने हरवीर को पहले ही बता दिया कि गाय सींग से मारती है, लेकिन हरवीर ठहरे गाय को पुराने लोवा खिलाने वाले तो वो किसी की क्यों माने.
हरवीर गाय के पास पहुंचे, बड़े प्यार से लोवा गाय को खिलाया, लोवा खिलाने के बाद हरवीर ने गाय के पैर छुए और गर्व से मोहन के घर वालों की तरफ देखा, हरवीर की आँखों में बड़ा घमंड झलक रहा था, जो कह रहा था- “देख लो कहते थे कि गाय सींग मार देगी, ये तो बड़े प्यार से लोवा खा रही है”.
लेकिन ये क्या, गाय ने हरवीर को अपने सींगो पर उठा लिया और पूरी ताकत से हरवीर को जमीन में दे मारा, हरवीर का घमंड एक पल में ही मिटटी में मिला दिया, लेकिन गाय ने हरवीर को इतने पर ही नही छोड़ा. उसने हरवीर को जमीन पर पटकने के बाद ऐसी रगड लगाई कि हरवीर के मुंह से ‘बचाओ बचाओ’ की आवाजें आने लगी.
मोहन के घरवालों ने बड़ी मुश्किल से हरवीर को काली गाय से छुडवाया, हरवीर विना एक पल रुके सीधे अपने घर जा पहुंचे और एलान कर दिया कि आज से वे काली गाय की पूजा नही करेंगे. काली गाय का खोंफ दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा था, मोहन की माँ जानकी मोहल्ले के किसी भी आदमी या बच्चे को गाय के आस पास भी न जाने देतीं थीं, बच्चे मोहन के आंगन में खेलना नही चाहते थे. उन्हें डर था उस काली गाय का, जिसने हरवीर जैसे पुजारी की पूजा छुडवा दी.
मोहल्ले की महिलाएं जानकी देवी के पास बैठने आ जाया करतीं थी तो अब वे महिलाएं भी आना बंद हो गयी, गाय का इतना खौफ़ कि पडोस के गाँव में भी इस काली गाय की चर्चा थी. एकाध आदमी तो सिर्फ उसे देखने के लिए आता था, सोचता ऐसी कैसी गाय है जो किसी पर सम्हाली नही जाती.
और फिर एक दिन वो हुआ जो होना नही चाहिए था, मोहन की माँ जानकी देवी गाय का खूंटा बदल रही थी, लेकिन जैसे ही उन्होंने गाय की रस्सी खोल उसे दूसरे खूंटे पर ले जाना चाहा वैसे ही गाय ने ऐसी दौड़ लगाई कि पूरे घर के लोग कमरे में बंद हो गये, लेकिन जानकी देवी तो गाय के पास ही थी.
भयभीत तो जानकी देवी भी थी लेकिन उन्हें गाय को बांधना भी तो था, उन्हें डर था कि कहीं गाय नही बांधी तो किसी को मार न डाले, इसी डर के कारण वो गाय के पास डटी रहीं, लेकिन गाय आंगन में ऐसे चक्कर लगा रही थी मानो घोड़ो की रेस में उसे दौड़ाया जा रहा हो.
जानकी देवी हिम्मत कर गाय के पास जाने लगी, लेकिन गाय उनकी तरफ ही दौड़ने लगी जानकी देवी आँखें बंद कर खड़ी हो गयी. और गाय ने ऐसी छलांग लगाई कि वो जानकी देवी के सर के ऊपर होकर निकल गयी. सारे घर के हलक सूख गये, सबने देखा था कि किस प्रकार जानकी देवी बाल बाल बच गयी.
तभी जानकी देवी को ध्यान आया की वे गाय के लिए अगर कुछ खाने को दिया जाय तो ये शांत हो जायेगी, उन्होंने कमरे में बंद अपने बच्चों को आवाज लगाई कि दो रोटियां बाहर फेंक दें. पहले गाँव में किचन तो होती नही थी, रोटियां सुबह बनाकर एक डब्बे में रख रहने वाले कमरे में ही रख ली जाती थी.
बच्चों ने अंदर से दो की जगह चार रोटियां फेंक दी, सोचा गाय शांत हो जाय तो माँ की जान बच जायेगी, नही तो गाय के सर पर तो आज खून सवार है. रोटियां देख गाय उनकी तरफ दौड़ी, चारों रोटियाँ चार जगह पड़ी थी, गाय एक रोटी खाने में लगी इतनी देर में जानकी देवी ने बाकी की रोटियाँ उठाकर गाय के खूंटे के पास डाल दीं.
गाय एक रोटी खाने के बाद और रोटियां खाना चाहती थी उसने इधर उधर नजर दौडाई तो देखा कुछ रोटियां खूंटे के पास पड़ी हैं, वह तुरंत खूंटे के पास गयी और रोटियां खाने लगी, जानकी देवी ने तुरंत गाय की रस्सी उस खूंटे से बाँध दी. गाय के बांध दिए जाने पर पूरे घर की जान में जान आई.
सब लोग कमरों से निकल जानकी देवी के पास आ गये, और उनसे पूछने लगे कि कहीं कोई चोट वगैरह तो नही आई. जानकी देवी को गाय पर आज बहुत गुस्सा आ रहा था, आज उनका मन करता था कि गाय से पीछा छुड़ा ले नहीं तो ये किसी दिन बच्चो या उनको मार डालेगी.
पूरे घर ने उनके इस विचार पर मुहर लगा दी, अब गाय को बेचने की कवायद शुरू हुई, लेकिन कोई भी आदमी उस काली गाय को मुफ्त में भी लेने को तैयार न था. जिससे भी पूंछा जाता वो अपने हाथ खड़े कर देता और कहता कि मुझे मरना थोड़े ही है अभी.
मोहन की माँ जानकी देवी ने मोहन की नानी से कहा कि अपनी गाय बापस ले लो, लेकिन नानी ने तो जैसे तैसे अपना पीछा छुड़ाया था, वो अब दोबारा उस गाय को बापस नही लेना चाहती थी. चारो तरफ से मिली निराशा के बाद जानकी देवी ने निर्णय लिया कि इस गाय को कहीं दूर गाँव के आस पास छोड़ आया जाय, जिससे उस गाँव का आदमी उस गाय को पकड़ लेगा.
लेकिन समस्या फिर जैसे की तैसे, गाय को छोड़ने कैसे जाया जाय, अगर ये भाग छूटी और किसी को मारने लगी तो, फिर क्या होगा. लेकिन गाँव के कुछ बहादुर लोगों ने भरोसा दिया कि वे इस गाय को गाँव के बाहर तक छुडवा देंगें बाकी का आगे छोड़ने का काम मोहन के घर वालों को खुद करना होगा.
मोहन और उसकी माँ ने सोचा चलो ये भी कम नही, कम से कम गाय गाँव से तो बाहर चली जाय वाकी का जैसे तैसे उसे ले जाकर कहीं छोड़ आयेगे. गाय को लोगो ने चारो तरफ से अपने कब्जे में लिया फिर धीरे धीरे गाँव से बाहर ले चले, गाय जगह जगह पैर जमा देती जैसे वो इस घर से जाना ही न चाहती हो.
इधर मोहन की माँ भी लगातार रोये जा रही थी, उन्हें उस गाय के खूंटे को देख देख कर रोना आ रहा था, सोचती थी इतने प्यार से गाय लेकर आये लेकिन आज वो ऐसे ही छोड़नी पड़ रही है, लेकिन वो माँ करती भी क्या, अपने बच्चो को बचाए या उस गाय को घर में रखे.
गाय गाँव के बाहर पहुंच चुकी थी, गाँव के लोग वहीँ रुक गये, अब मोहन और उसके भाई को गाय कहीं दूर छोड कर आनी थी, गाँव से बाहर आते ही गाय इतनी सीधी हो गयी कि जिधर मोहन उसे ले जाता बड़े प्यार से वो उसके साथ चली जाती थी. मोहन को भी आज उस गाय के बिछुड़ने का गम था, लेकिन उस गाय ने जो सलूक आज जानकी देवी के साथ किया था वो भी तो माफ़ करने के काबिल नही था.
मोहन और उसका भाई गाय को सात आठ किलोमीटर दूर एक गाँव के पास ले पहुंचे और गाय के गले से रस्सी खोल दी. मोहन ने प्यार से एक डंडे से गाय को डराते हुए आगे को भगा दिया. आज गाय बहुत अजीब व्यवहार कर रही थी, क्योंकि और दिन गाय इतने पर लोगों को मारने लगती थी लेकिन आज डर से आगे दौड़ रही थी.
गाय के आगे जाने के बाद मोहन अपने भाई के साथ अपने गाँव चलने लगा, लेकिन थोड़ी दूर चलने के बाद सने मुड़कर देखा तो गाय उनके पीछे पीछे आ रही थी, मोहन को गुस्सा आया और उसने फिर गाय को दौड़ा दिया, उसने देखा कि गाय उनके साथ आना चाहती है, लेकिन अब गाय को घर में ले जाना ही गलत होगा यह सोच वह फिर से गाँव की तरफ चल दिया.
घर पहुंच मोहन ने गाय के खाली खूंटे को देखा, माँ ने देखा कि मोहन गाय को छोड़ आया है, घरवालों की आँखों में आसू थे. आज इस घर में खाना भी नही बना, काली गाय की यादें सबके दिलों पर अपना असर छोड़ गयीं थी.

धर्मेन्द्र राजमंगल

लेखक- कहानी और उपन्यास / प्रकाशित उपन्यास- मंगल बाज़ार, अमरबेल. amazon.in पर उपलब्ध. ईमेल- authordharmendrakumar@gmail.com