बाल कविता

काव्यमय कथा-12 : अंगूर खट्टे हैं

करते-करते सैर लोमड़ी,
एक बाग में जा पहुंची,
अंगूरों के गुच्छों वाली,
बेलें देखीं कुछ ऊंची.

अंगूरों को देख लोमड़ी,
झट खाने को ललचाई,
अंगूरों की लालच में तब,
उसने ऊंची कूद लगाई.

पहुंच न पाई फिर भी मूर्ख,
लालच छोड़ नहीं पाई,
और जोर से कूदी फिर भी,
ऊपर पहुंच नहीं पाई.

सारा बदन लगा जब दुखने,
बोली, ”अब मैं जाती हूं,
ये अंगूर हैं खट्टे भाई,
नहीं इनको मैं खाती हूं.”

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244