गीत/नवगीत

एक गीत….1222,1222,1222,1222 बह्र पर

 

कभी अहसास से मेरे तिरे अहसास मिल जाते ।
दिये जो जख्म हैं दिल पर उन्हें तुम काश सिल जाते ।

बड़ी नादाँन सी हसरत मचलती ही रही अक्सर।
विरह की एक चिंगारी सुलगती ही रही अक्सर ।
जो तुम मिलते खिजां के दौर में मधुमास खिल जाते ।
दिए जो जख्म हैं दिल पर उन्हें तुम काश सिल जाते………(१)

रहे खामोश तो हमदम हमारी जान जायेगी ।
अगर लब खोलते दुनिया हमें पहचान जायेगी ।
सुकूं मिलता नयन से जो तेरे आभास मिल जाते ।
दिए जो जख्म हैं दिल पर उन्हें तुम काश सिल जाते…..(२)

भुला पाती नही तुमको हमेशा याद करती हूँ ।
तुम्हें ही हर घड़ी दिल मे सनम आबाद करती हूँ ।
खुदा से हर घड़ी करती यही अरदास मिल जाते ।
दिए जो जख्म हैं दिल पर उन्हें तुम काश सिल जाते…..(३)

न जाने तुम हमें क्यूँकर नजरअंदाज करते हो
तुम्हारा नाम ले सुबहा का हम आगाज करते हैं ।
तेरी खातिर जमाने भर को नजरंदाज करते हैं ।
भले तुम दूर रहते पर जिगर के पास मिल जाते।
दिए जो जख्म हैं दिल पर उन्हें तुम काश सिल जाते ………(४)

……© अनहद गुंजन गीतिका ®

 

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*