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बाबर जिन्दा है

बाबर को अपने किये कृत्य अपकृत्य पर अफ़सोस हो या न हो लेकिन उसके वंशजो को उसके कृत्य पर बहुत नाज है। इतना तो बाबर को भी उम्मीद न रही होगी कि उसके वंशज ५०० साल बीत जाने के बाद भी उसके अपराध को न्यायोचित ठहराने में कोई कोर कसार न उठा रखेंगे। गौर करने की बात है कि तमाम विदेशी आक्रांता आये, मुग़ल आये, अंग्रेज आये लेकिन मुगलो को छोड़कर और सब धन- दौलत लूटे , हीरे मोती लूटे, जेंवर-गहने लुटे किसी मंदिर को कोई नुक्सान नहीं पहुचाये, जबकि सारे मुग़ल लुटेरे सबसे अधिक मंदिर और माँ-बहनो की इज्जत लुटे। इतिहास की इस सच्चाई को एक भी बाबर वादी सुनने समझने को तैयार नहीं है। ऐसे ऐसे तर्क दिए जा रहे है और इतनी ऊंची आवाज में दिए जा रहे है कि लगता है कि राम से पहले यहाँ बाबर आया था। काशी मथुरा अयोध्या तीनो में पहले मस्जिद था जिसे तोड़कर बाद में मंदिर बना दिया गया। १५२८ से लेकर १९४७ तक मुगलो और अंग्रेजो का राज रहा, किस सन में मंदिर बनवाया गया इसका कोई रिकार्ड इनके पास नहीं है। लेकिन मुह में इतना जोर है कि हिन्दू अपने ही घर में सहमा हुआ लगता है। अजीब स्थिति हो गई है यहाँ तो घर के लुटेरे को ही महिमा मंडित किया जा रहा है। आक्रांता के वंशज सामने खड़े है और हम उनसे मिमिया रहे है। मेरा स्पष्ट मत है की जो बाबर के कृत्य का बचाव कर रहे है वे सब बाबर के वंशज है और सारे के सारे दंड के भागी हैं।

राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय

रिटायर्ड उत्तर प्रदेश परिवहन निगम वाराणसी शिक्षा इंटरमीडिएट यू पी बोर्ड मोबाइल न. 9936759104