राजनीति

मसलों का देश

अगर इस देश को मसलों का देश कहे तो कुछ अतिसयोक्ति नहीं होगी. १९४७ से पहले एक मसला सिर्फ अंग्रेज थे. उसके बाद तीन मसले धर्मनिरपेछता , जातीय आरक्षन और छेत्रवाद पैदा हो गए. २०१४ , मोदी उदय के बाद तो मसले ही मसले पैदा हो गए. सूर्य नमस्कार , स्वच्छता अभियान , योगा , वन्देमातरम , भारतमाता की जय , सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी जैसे मसलो की भरमार हो गई. बस ध्यान रहे की यह सब मसले नहीं है इन्हें मसला बनाया गया है और इसे जेहन में रखकर पढ़ने पर ही इस लेख का मन्तब्य समझ में आएगा. पिछले ७० साल से देश एक ऐसे मसले को लेकर डिस्टर्ब है जो मसला है ही नहीं ! मसला तो वह होता है जो परिस्थिति बस यकायक क्रिएट हो जाता है जिसे कुछ बुद्धिमान लोग आपस में बैठकर आसानी से सुलझा लेते है. लेकिन जो जान बूझकर मसला बनाया जाता है वह मुद्दतो तक नहीं सुलझती. वह बस तभी सुलझती है जब उसे जिस प्रकार क्रिएट किया गया है ठीक उसी प्रकार से सुलझाया जाय. बाबर को बदनाम करना फिजूल है , वह तो एक लुटेरा और धर्मांध आक्रांता था और उसने वही किया जो जो एक आक्रांता करता है. लेकिन उसके अपकृत्य को जिस प्रकार आज कुछलोगों द्वारा महिमा मंडित किया जा रहा है और हम रिरिया रहे है वह हमारी उदारता को कम हमारी कायरता को ज्यादे प्रदर्शित कर रहा है. कैसी अद्भुत बात है की हम उस बाबर से ज्यादे आज के बाबरों से हार रहे हैं.

राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय

रिटायर्ड उत्तर प्रदेश परिवहन निगम वाराणसी शिक्षा इंटरमीडिएट यू पी बोर्ड मोबाइल न. 9936759104