हास्य व्यंग्य

गरमी मांगे एयरकंडीशनर

बड़े भाई लोग, बढ़ रही गरमी पर ऐसा गजब का व्यंग्य मार रहे हैं कि गरमी भी “देखो आगे-आगे होता है क्या” के अन्दाज में झल्लाई हुई फिर रही है! और इधर मैं, गरमी में किसान-गोष्ठी में घूमता फिर रहा हूँ। खैर, मैं मुद्दे की बात पर आता हूँ, वैसे सूरज जब सिर पर चढ़ जाए तभी गरमी चरम पर होती है, लेकिन यह तो हुई मौसम और एक सितारे के गति की बात! हाँ, इससे निकलता है सौ बात की एक बात, सितारा जब बुलन्दी पर होता है तो गरमी बढ़ती ही है, क्या मौसम और क्या आदमी! सितारे के इसी बात पर ध्यान आया कि, जिनका सितारा बुलन्दी पर होता है, उन्हीं के सिर गरमी चढ़कर बोलती भी है, बाकी की गरमी तो पसीना में बह जाती है।

मेरे सामने मंच के नीचे, किसान-गोष्ठी में बैठे हुए किसानों में कोई गरमी दिखाई नहीं दे रही है। ये बेचारे वैसे भी अपने खेतों में पसीना बहाकर मौसम की गरमी में ठंडा लेते होंगे, तभी गोष्ठी में इत्मीनान से बैठे हैं। मेरे साथ बैठे हुए इन किसानों के प्रतिनिधि ने बताया कि ये किसान उत्साही किसान हैं सबेरे-सबेरे फसल कटाई में पसीना बहा कर इस गोष्ठी में भाग ले रहे हैं। वाकई! ये किसान पसीना बहा लेते हैं तो इन किसान बेचारों को कहाँ से गरमी लगेगी! गरमी तो हम जैसों को लगती है। इस गरमी से आजिज मैं गोष्ठी में बैठे-बैठे ही, मन ही मन एक अदद एयरकंडीशनर की तमन्ना पाल रहा था। मतलब बिना एयरकंडीशनर में बैठे मेरी यह गरमी निकलने वाली नहीं है।

अब मुझे अपने लिए एक अदद एयरकंडीशनर का जुगाड़ करना है, तत्काल मेरा ध्यान अपने सितारे पर चला गया और मैंने इस सितारे को अपने सिर चढ़ाया। मैंने गरमी को सिर चढाने की प्रेरणा मौसम की गरमी से ही ग्रहण किया हुआ है। कारण, आप ने अब तक देखा हुआ है कि जब सूरज सिर पर चढ़ जाए तो गरमी अपने चरम पर होती है, फिर क्या होता है कि इस बढ़ी हुई गरमी से ही मौसम बदलने लगता है। मतलब, तब जोर का आँधी-पानी आता है और मौसम खुशगवार हो जाता है..! तो मैने भी अपनी गरमी बढ़ानी शुरु की, इसीलिए मैंने अपना सितारा अपने सिर पर चढ़ाया और गोष्ठी से लौट आया। आखिर, एयरकंडीशनर के लिए दिमाग को भी गरमी का एहसास भी तो कराना था, तभी तो यह दिमाग इसके जुगाड़ के बारे में कुछ कर पाएगा..!

अब आप जानते ही हैं कि बुलंद सितारों वालों के मातहत भी होते हैं। तो, एक अदद एयरकंडीशनर की तलाश में अपनी गरमी, विथ आँधी-तुफान, किसी मातहत पर निकालुंगा, उसे जोर का हड़काऊंगा। उस बेचारे मातहत के काम में इतना मीन-मेख निकाल दुंगा कि बेचारा वह मातहत पानी-पानी होकर मुझपर बरस पड़ेगा और इस तरह मेरे एयरकंडीशनर का आटोमेटिक ढंग से जुगाड़ हो जाएगा..! और फिर एयरकंडीशनर के ठंडकपने के लुत्फ लेने के साथ ही मेरे कड़कपने की यशकीर्ति भी अखबारों, मीडिया और सोशल-मीडिया के सहारे दिग्-दिगन्त तक फैलेगा तथा मुझे सेलीब्रिटी होने का एहसास भी घेलवा में मिलता रहेगा।

तो भाई, आपका तो नहीं पता, लेकिन मैंने अपने सितारे को सिर चढ़ाकर गरमी से निजात पाने के लिए एक अदद एयरकंडीशनर का जुगाड़ तो कर ही लिया।

भाई मेरे! यह बगैर पसीने वाली गरमी है, इसीलिए यही गरमी सितारों वालों के सिर चढ़कर बोलती है और जब ऐसा दिखे तो मान लीजिए कोई एयरकंडीशनर की तलाश में है।

*विनय कुमार तिवारी

जन्म 1967, ग्राम धौरहरा, मुंगरा बादशाहपुर, जौनपुर vinayktiwari.blogspot.com.