कुण्डली/छंद

मदिरा सवैया

मदिरा सवैया … ७ भगण एक गुरू
211 211 211 211 211 211 211 2
(1)
लेप दियो वृषभान सुता ,नवनीत मनोहर गाल सखी
रूठ गये नटनागर ली पग -धूरि उछालत ग्वाल सखी
खोंस लई मटकी पटकी दधि ,लेप दियो सब बाल सखी
लोट गये धरती पर मोहन , ढाँप लियो मुख भाल सखी
(2)
छाड़ि चले जमुना तट माधव ,मोहक तान सुनावत ना
बाल सखा बहु -भाँति मनावत ,शीश धरे पग मानत ना
खाय पछाड़ निढाल परे सब ,धेनु चरावन जावत ना
सूझत ना कछु श्याम बिना मन ,झूमत नाचत गावत ना

— लता यादव

लता यादव

अपने बारे में बताने लायक एसा कुछ भी नहीं । मध्यम वर्गीय परिवार में जनमी, बड़ी संतान, आकांक्षाओ का केंद्र बिन्दु । माता-पिता के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण उपचार, गृहकार्य एवं अपनी व दो भाइयों वएकबहन की पढ़ाई । बूढ़े दादाजी हम सबके रखवाले थे माता पिता दादाजी स्वयं काफी पढ़े लिखे थे, अतः घरमें पढ़़ाई का वातावरण था । मैंने विषम परिस्थितियों के बीच M.A.,B.Sc,L.T.किया लेखन का शौक पूरा न हो सका अब पति के देहावसान के बाद पुनः लिखना प्रारम्भ किया है । बस यही मेरी कहानी है