लघुकथा

आज का पंडित

ऋग्वेद के अनुसार आदिकालीन मानव के मुँह से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, जाँघों से वैश्य और पैरों से शूद्र की उत्पत्ति हुई । पुराण कहते हैं की वर्ण व्यवस्था त्रेता युग में नहीं थी परंतु द्वापर युग में आई । आरम्भ में वर्ण व्यवस्था व्यवसाय पर आधारित थी , धीरे धीरे यह कठोर होती गई और जन्मजात बन गई । ब्रह्मा जी के पुत्र मनु ने कुछ कठोर नियम बना दिए जिसका उद्देश्य उस समय उपयुक्त था ।

मनु ऋषि जानते थे कि मानव बार बार जन्म लेता है ।  वह चाहते थे कि ब्राह्मण दूसरे जन्म में भी ब्राह्मण के घर पैदा हो तो उसका निरंतर हर जन्म में ब्राह्मण के घर पैदा होने से विकास होगा। यदि वो एक बार ब्राह्मण के घर दूसरे  जन्म में क्षत्रिय के घर पैदा होगा तो उसका तेजी से विकास नहीं होगा । उन्होंने ऐसी स्थिति निर्मित करने के लिए  ऐसे नियम बनाये जिससे ब्राह्मण के मन में ब्राह्मणत्व कूट कूट के भर जाए  । ऐसा उन्होंने हर वर्ण के लिए किया ।

जब यह नियम समय के अनुरूप नहीं रहे, ब्राह्मण, क्षत्रियों ने दूसरे वर्ण कि स्त्रियों से सम्बन्ध बनाने शुरू कर दिए  तो उनसे  वर्ण संकर सन्तान  पैदा हुई  फिर मनु की बनाई परिकल्पना फेल होने लगी ।

आज के समाज में ब्राह्मण के घर पैदा होने पर गर्व करना या शूद्र के घर पैदा होने पर अपने को तुच्छ समझना बेमानी है

वह  स्कूल में  साथ साथ पढ़े थे । सौभाग्यवश एक ही कॉलेज में उन चारों को एडमिशन मिला । कॉलेज पहुँच कर यह दोस्ती और भी पक्की हो गयी । कॉलेज में उन  चारों की दोस्ती के बहुत चर्चे होते थे। इकट्ठे क्लास में जाना   इकट्ठे कॉलेज से गायब होकर सिनेमा घर में बैठना, या काफी हाउस में बैठकर काफी पीना । परीक्षाओं के समय एक दूसरे से पूछ पूछकर पढ़ना हर काम में यारी दोस्ती बहुत अच्छी चल रही थे ।  एक का नाम था धर्मपाल शर्मा दूसरे का दिलेर सिंह राजपूत तीसरे का मनीष अग्रवाल चौथे का  सुरेश वाल्मीक ।

धर्मपाल शर्मा को जब छात्र पंडित जी पंडित जी कह कर बुलाते तो उसका सीना  चौड़ा हो जाता । दिलेर सिंह अपने आप को राजपूत कहलवाना पसंद करता था मनीष अग्रवाल को  छात्र बनिया बनिया कह के बुलाते । सुरेश वाल्मीक का घर कॉलेज के पास ही था, जब कभी कॉलेज में थोड़ा अवकाश मिलता सब सुरेश के घर आ जाते । उसकी माँ उन्हें कभी खाना खिलाती कभी चाय-पानी ।  कॉलेज के दुसरे छात्र  उनसे कहते तुम लोग वाल्मीक के घर का खाना क्यों खाते हो वह तो अछूत है पर वो लोग ध्यान नहीं देते।

एक दिन कॉलेज में कुछ गुंडे किस्म के छात्र एक छात्रा के साथ बदतमीजी कर रहे थे , वाल्मीक ने उन्हें ऐसा करने से रोका । कुछ देर बाद वो अपने और साथियों को बुला लाया और वाल्मीक का कालर पकड़ लिया ।  झगड़ा बढ़ने पर मनीष ने भी वाल्मीक का साथ दिया और दोनों मिलकर उन पर टूट पड़े ।   दिलेर सिंह यह देख कर डर गया उसने वहां से भागने में ही अपनी भलाई समझी । धर्मपाल शर्मा सोचने लगा की आज मैं इन गुंडों से यदि भिड़ गया तो कल को यह बदला ले सकते हैं । भला मुझे इनका साथ दे के क्या फायदा होगा ? वो भी चुपचाप वहां से खिसक गया ।

इतने में कॉलेज के एक अध्यापक वहां से गुजर रहे थे वो रुक गए, उन्हें देखकर गुंडे छात्र वहां से भाग गए ।

कॉलेज ख़त्म हुआ  सब अपनी अपनी जिंदगी में व्यस्त हो गए , पर वो एक दूसरे से मिल लिया करते थे ।  सुरेश वाल्मीक को एक अच्छी सरकारी नौकरी मिल गयी, मनीष अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बटाने लगा, मनीष अग्रवाल के पिता का मुख्य बाजार में मेडिकल स्टोर था । कभी जब किसी के पास पैसे की कमी पड़ जाती तो मनीष सदैव पैसे से सभी की मदद करने को तत्पर रहता ।  दिलेर सिंह एक स्कूल में अध्यापक हो गया, धर्मपाल शर्मा  एक पॉल्ट्री फार्म में जिसमें चिकन काट कर पैक कर निर्यात किया जाता था सेल्समेन बन गया । उसका कहना था इस काम में पैसा खूब है ।

सुरेश नौकरी के बाद एक अनाथालय में स्वयंसेवक का कार्य करता, अनाथ बच्चों को पढ़ाता ,उनके साथ खेलता  उन्हें जीवन में कुछ बनने के लिए प्रेरित करता

दिलेर सिंह को यदि परीक्षा के समय नक़ल करने वाले छात्र धमकाते तो वो डर जाता और उनकी तरफ देखता भी नहीं कभी कोई छात्र यदि किसी छात्रा से छेड़छाड़ करते दिखते तो दिलेर सिंह जल्दी वहां से खिसक जाता  ।

एक दिन धर्मपाल शर्मा  के पोल्ट्री फार्म के पास से गुजरते हुए मनीष की कार पंक्चर हो गयी। वो धर्मपाल के पास पहुंच और कहा की क्या मेरी कुछ मदद कर सकते हो ?  धर्मपाल सोचने लगा मैं इसे अपनी कार क्यों दूं मुझे इससे क्या फायदा होगा, क्या यह कभी मेरी मदद करेगा ? यदि मैं अपने काम को छोड़कर इसके साथ जाऊंगा तो मेरी आज की आमदनी कम हो जाएगी । उसने बहाना बना दिया की आज तो मैं खुद किसी की कार से आया हूँ , मैंने कल ही कुछ घण्टे की छुट्टी ली थी इसलिए आज तुम्हारे साथ भी नहीं चल सकूंगा । मनीष काफी चलने के बाद एक ऑटो रिक्शा मिलने पर घर पहुंचा ।

सुरेश वाल्मीक ने एक दिन मनीष से कहा की मैं एक अनाथालय में काम करता हूँ , वहां एक होनहार लड़का है छोटी उम्र में अनाथ हो गया पर बहुत मेहनती और ईमानदार है क्यों ना हम लोग उसे किसी अच्छे कॉलेज में प्रवेश दिलवाने के लिए प्रयत्न करें । मनीष उसकी बात से सहमत हो गया । कॉलेज के बाद दोनों ने उसे प्रतियोगी परीक्षा के लिए दिल्ली के कॉलेज में भिजवाया , उन दोनों के कारण आज वो लड़का आईएएस अफसर बन चुका है ।

मेरे मन में एक विचार आता है चारों में से शूद्र कौन है और कौन पंडित, क्षत्रिय, वैश्य है ।

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।