गीतिका/ग़ज़ल

एक अवधी ग़ज़ल

कोई  पक्का  मकान  थोरै   है ।
दिन दशा कुछ ठिकान थोरै है ।।

सिर्फ कुर्सी मा जान है अटकी ।
ऊ दलित का मुहान थोरै है ।।

ई वी ऍम में कहाँ घुसे हाथी।
छोटा मोटा निशान थोरै है।।

रोज घुड़की है देत ऐटम का ।
तुमसे जनता डेरान थोरै है ।।

लै लिहिस कर्ज पर नया टक्टर।
कौनो गन्ना बिकान थोरै है ।।

वोट खातिर पड़ा हैं चक्कर मा ।
हमरे खातिर हितान थोरै हैं ।।

रोज दाउद पकड़ि रहे तुम तो।
कौनो घर मा लुकान थोरै है।।

नोट बन्दी पे है बड़ा हल्ला ।
एको रुपया हेरान थोरै है।।

है कसाई पे अब नज़र टेढ़ी।
राह तनिको भुलान थोरै है ।।

अब तो सारा हिसाब हो जाई ।
तुम से अफसर दबान थोरै है ।।

है बड़े काम का छोटका योगी।
अइसे सीना उतान थोरै है ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

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