कविता

नकली चेहरा खामोश ज़ुबान

 

यह चेहरा और यह जुबान
क्यों इतने मज़बूर
क्यों सच्चाई से दूर
बनावटी मुस्कराहट ,
जुबान खामोश रहने को मज़बूर ,
क्यों इतने बनावटी, इतने लाचार,
दिल और दिमाग की बात
यह चेहरा और यह जुबान
दोना नकारने के लिए तैयार ,.
दिल सही महसूस करता है
दिमाग सही सोचता है.
पर इन दोनों के बीच
यह बनावटी चेहरा ,
और यह झूठी या खामोश जुबान,
रह जातें हैं .दोनों फंस कर
कुछ रिश्ते सम्भालने के लिए,
किसी अनहोनी को टालने के लिए
सच
यह चेहरा और यह जुबान
कितने मज़बूर,
सच्चाई से दूर, —–.जय प्रकाश भाटिया
३०/३/२०१७

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845