कविता

ज़िन्दगी ।

शिकायतों और उम्मीदों के बीच
कहीं एक पतला सा धागा है
बस इतनी ही है ज़िन्दगी

उम्मीदों की डोरियों से जब
दूसरों के मन बंध जाते हैं
तब शिकायतें सिरों पर टिकती नहीं हैं
अक्सर फिसल जाया करती हैं
ज़िन्दगी की डोर पर से
बस ये ही तो है ज़िन्दगी!!
जब शिकायतें फिसलती रहती हों ज़िन्दगी के रेशमी धागे से ……..

जब इस कच्चे रेशमी धागे में शिकायतें बंधने लगती हैं
फिर ज़िन्दगी की डोर बढ़ती नहीं है
क्योंकि ये गांठे कभी नहीं खुलती ,कभी भी नहीं।
यूँ तो इस कच्चे धागे से पहाड़ जैसे बजन भी उठा लिए जाते हैं
जब उम्मीदों के धागे पर प्रेम का मोती आके अटक जाता है कहीं
मगर शिकायतों की गांठों भरे धागे पर
प्रेम के मोती खिसकते नहीं हैं
प्रेम और शिकायतों की जद्दोजहद में
रेशम की नाजुक डोर अक्सर टूट जाया करती है
और प्रेम के सुन्दर मोती बिखर जाते हैं …………………………………..
ये भी है ज़िन्दगी …………………….

अंशु प्रधान