कविता

यादों की गठरी

उन्हें याद नहीं आती हमारी, गुरुर में,
वो खोये है जाने किस सुरूर में।
जिस वक़्त के लम्हात ने हमको रुलाया है,
उस वक़्त का झोंका तेरी गली में आया है।
इस बार तेरी यादों की गठरी बनाएंगे,
ख़ुद भी जलेंगे और तेरी यादें जलाएँगे।
इस बार जो हम रूठे तो ऐसे रूठ जाएंगे
वहां चले जाएगे जहां आप मनाने नही आ पाएंगे।
हर बार हम रोये तो तुम कीमत न जानोगी,
हमारी याद मैं तुम्हें रुलाकर अश्कों की कीमत बताएंगे।

विनोद दवे

नाम = विनोदकुमारदवे परिचय = एक कविता संग्रह 'अच्छे दिनों के इंतज़ार में' सृजनलोक प्रकाशन से प्रकाशित। अध्यापन के क्षेत्र में कार्यरत। विनोद कुमार दवे 206 बड़ी ब्रह्मपुरी मुकाम पोस्ट=भाटून्द तहसील =बाली जिला= पाली राजस्थान 306707 मोबाइल=9166280718 ईमेल = davevinod14@gmail.com