संस्मरण

नागमणि –एक रहस्य ( भाग –४ )

दुसरे दिन गुरूजी निर्धारित समय पर हमारे घर पर आ गए । घर पर जलपान वगैरह कराकर हम साथ में ही घर से बाहर निकले । मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि गुरूजी ने मुझसे एक बार भी यह नहीं पुछा कि कहाँ जाना है या कहाँ जा रहे हैं  ?
कुछ ही देर में मैं अपने उस मित्र के पास पहुँच गया जिसके पास वह नाग मणि थी ।
दरअसल कल गुरूजी की बात सुनकर साँपों के बारे में उनकी महारत देखकर सोच लिया था कम से कम एक बार इन्हें वह नाग मणि दिखाकर इनकी राय जानी जाय ।
औपचारिक दुआ सलाम के बाद मैंने गुरूजी का परिचय उनसे कराया और अपनी इच्छा भी बताई । तुरंत ही उन्होंने कहा ” कोई बात नहीं ! अगर तुम कहते हो तो दिखाने में हर्ज ही क्या है ? वैसे मैं तुमको एक बात बताने ही वाला था । लेकिन चलो ! पहले देखते हैं तुम्हारे गुरूजी क्या बताते हैं ? ”
कहते हुए मित्र वह मणि लाने घर में चले गया । कुछ ही मिनटों में जब वह लौटा तब वही डिबिया उसके हाथों में थी ।
डिबिया खोलकर उसमें से वह मणि निकाल कर मित्र ने गुरूजी के हाथों पर रख दिया ।
गुरूजी ने अपनी हथेली पर रखी हुयी मणि उलट पुलट कर देखा और फिर उसे अपनी आँखों से छुआते हुए माथे से लगा लिया ।
हम लोग उनकी हर हरकत को खामोश रहकर निहार रहे थे । कुछ ही पलों में वो उत्तेजित सा नजर आने लगे । मुझसे रहा नहीं गया । ख़ामोशी भंग करते हुए मैंने पुछ ही लिया ” गुरूजी ! यह क्या है ? ”
अपनी तन्द्रा से बाहर आते हुए गुरूजी ने मुस्कुराते हुए पुछा ” पहले तो यह बताओ ! यह तुम्हें मिला कहाँ ? ”
बात टालने की गरज से मैंने बताया ” यह एक लम्बी कहानी है गुरूजी ! क्या करेंगे सुनकर ? बस इतना बता दो यह है क्या चीज ? ”
अपनी धीर गंभीर चेहरे पर मुस्कान बिखेरते हुए गुरूजी बोले ” तुम लोग खुशकिस्मत हो और तुम लोगों से मिलकर मैं भी अपने आपको खुशकिस्मत मान रहा हूँ जो इस दिव्य वस्तु के दर्शन हो गए । यह बहुत ही दुर्लभ नागमणि है । लेकिन अफसोस यह अब मृतप्राय है । जिसने भी इसे अब तक रखा था इसके साथ बड़ा ही अत्याचार किया है । लेकिन इसमें एक प्रतिशत अभी भी जान बाकी है । देखो ! मेरी ओर देखो ! मेरे रोंगटे खड़े हो गए हैं इसकी दुर्दशा देखकर ! ”
हम तो लगातार उनकी तरफ देख ही रहे थे । वाकई उनके हाथों पे रोये खड़े हो गए थे ।
उनकी बातें सुनकर हमें अब पूरा यकिन हो गया था कि यह वाकई नागमणि ही है ।
मेरे मित्र ने पुछा ‘ गुरूजी ! अब इसका क्या कर सकते हैं ? ”
उत्तर मिला ” अब इसका क्या करना है ? इस हालत में भी जहाँ यह चीज रहेगी वहां कुछ न कुछ फायदा ही करेगी ।  ” फिर अचानक जैसे उन्हें कुछ याद आया हो बोल पड़े ” हाँ ! अगर तुम कहो तो मैं कुछ कोशिश करूँ ? ”
उनकी बात सुनकर हम लोग चौंक पड़े थे । मैं बोल पड़ा ” कैसी कोशिश गुरूजी ? ”
गुरूजी मुस्कुराये ।  बोले ” अभी अभी मुझे ध्यान आया कि इस इलाके में इच्छाधारी नाग भी रहता है । और अगर वह आकर इस मणि पर फूंक दे तो शायद इसमें फिर से जान आ सकती है । इसमें सफलता पचास फीसदी ही मिल सकती है । वैसे मेरे ख्याल से कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है । आगे आप लोगों की मर्जी । ”
अब हमारी उत्सुकता बढ़ते जा रही थी ” वो तो ठीक है गुरूजी ! लेकिन हम लोगों को क्या करना होगा ? ”
गुरूजी हँसे ” अरे ! अजीब बात है । तुम लोग कर ही क्या सकते हो ? जो भी करना है मैं ही करूँगा उसकी मर्जी से । आप लोगों को सिर्फ मेरे साथ रहना है । ”
अब हमें अपनी गलती महसूस हुयी । मैं बोला ” हमारे कहने का मतलब खर्चा क्या होगा ? ”
गुरूजी बोले ” कोई खास खर्चा नहीं है । आपको सिर्फ एक बर्तन और तीन लीटर शुद्ध और साफ़ दूध चाहिए । बस ! हाँ ! ,एक बात और जब मैं इस पर क्रिया करूँगा तब से चालीस दिन तक आपको इसकी पवित्रता का पूरा ध्यान रखना होगा । मतलब जहाँ भी तुम इसे रखोगे वह जगह शुद्ध और पवित्र होनी चाहिए ।  कर सकोगे तो बोलो ! ”
मेरे मित्र ने बताया ” यह तो कोई बड़ी बात नहीं है । आप जैसा कहोगे हम लोग करने के लिए तैयार हैं । ”
तभी मैंने पुछ लिया ” वो तो सब ठीक है लेकिन इसे किया कब जा सकता है ? मेरा मतलब है किस दिन किया जाना चाहिए ? ”
गुरूजी बोले ” यूँ तो मुझे इसके लिए कुछ नहीं करना है फिर भी यदि दिन सोमवार हो तो मेरे लिए नाग राज को मनाना थोडा आसान हो जायेगा । और फिर आपको कोई सामग्री भी तो नहीं लगने वाली है तो अगर आप लोग तैयार हों तो परसों ही सोमवार है । क्यों न परसों ही कर लिया जाये ? ”
अचानक जैसे मुझे कुछ ध्यान आया । मैं पुछ बैठा ” लेकिन गुरूजी ! ये तो आपने बताया ही नहीं कि आखिर यह विधि आप करेंगे कहाँ ? ”
गुरूजी ने कहा ” अच्छा हुआ आपने पुछ लिया । दरअसल मैं बताना भूल गया था कि यह विधि करने के लिए तालाब और शिवमंदिर अवश्य होना चाहिए । ”
मैंने उन्हें याद दिलाया ” जहाँ आपने इच्छाधारी नाग के आने की बात कही थी वह मंदिर कैसा रहेगा ? ”
गुरूजी ने कुछ याद करते हुए बताया ” हाँ ! वहीँ न जहाँ कल हम लोग दर्शन किये थे । वह मंदिर तो बड़ा सुन्दर है लेकिन एक दिक्कत आएगी वहां पर । वहां मंदिर के आसपास कोई तालाब नहीं है और बिना पानी के यह विधि नहीं हो सकती । कोई ऐसा मंदिर जहाँ नजदीक ही तालाब हो तो अच्छा रहेगा  । ” फिर अचानक ही जैसे उन्हें कुछ याद आया ” ,जब मैं बाबूजी के यहाँ से आपके घर की तरफ आता हूँ तो रास्ते में एक बड़ा सा तालाब पड़ता है और उसके किनारे एक मंदिर भी है । अगर तुम लोगों को कोई दिक्कत न हो तो वही मंदिर इस काम के लिए ठीक रहेगा । ”
मेरे ध्यान में वह जगह थी लेकिन मैंने जानबूझ कर उसकी चर्चा नहीं की थी । मैं नहीं चाहता था कि मैं वहां कोई तांत्रिक क्रिया करते हुए लोगों की नज़रों में आऊं । वहां अधिकांश लोग पहचानने वाले मिल जाते और फिर जितने मुंह उतनी बातें ।
मैंने अपनी आशंका गुरूजी को बताई । सुनकर वह मुस्कुराये और बोले ” आप क्या इसे खेल समझते हैं । यह बहुत ही बड़ी और खतरनाक क्रिया है जिसके लिए खुद ही शांत और एकांत वातावरण की जरुरत है जो दिन में सम्भव ही नहीं है । यह क्रिया हमें रात एक बजे से तीन बजे के बिच ही करनी है । और मैं समझता हूँ कि रात एक से तीन के बिच उस मंदिर के आसपास भी कोई नहीं आता होगा ।”

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।