गीतिका/ग़ज़ल

आ गया है फिर सिकन्दर देखिये

आ गया है फिर सिकन्दर देखिये ।
हारते पोरस का मंजर देखिये ।।

लुट रही थी आबरू सड़को पे तब ।
रोमियों को अब बुलाकर देखिये ।।

गाँव जीता था अंधेरों में कभी।
रौशनी है गाँव जाकर देखिये ।।

सब मवाली भाग कर जाने लगे ।
अब चमन में सर उठाकर देखिये ।।

बच रहे मासूम कटने से यहाँ ।
पाप का घटता समंदर देखिये ।।

बन्द होगी वह वसूली इस तरह।
दिख रही खाकी में अंतर देखिये ।।

खूब सी ऍम ओ मरे थे लूट में ।
जां बचाते आज रहबर देखिये ।।

हाथियों ने खा लिया गैरों का हक़।
पेट में क्या क्या है अंदर देखिये ।।

आ रहे उम्मीद से मिलने बहुत ।
चोर के बचने का ऑफर देखिये ।।

थी वो अय्यासी में डूबी सल्तनत ।
हुक्मरां का सर मुड़ाकर देखिये ।।

ख़ास मजहब से लुटी है औरतें ।
दीजिये हक़ फिर मुकद्दर देखिये ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com