गीत/नवगीत

गीत : सत्ता का लकवा मार गया

(कश्मीर में जेहादियों द्वारा सैनिकों को थप्पड़-लात मारकर अपमानित करने पर एक सैनिक की सरकार से अपील को बयां करती कविता)

दिल्ली में बैठे शेरों को सत्ता का लकवा मार गया
इस राजनीति के चक्कर में सैनिक का साहस हार गया

मैं हूँ जवान उस भारत का, जो “जय जवान” का पोषक है
जो स्वाभिमान का वाहक है जो दृढ़ता का उद्घोषक है

मैं हूँ जवान उस भारत का, जो शक्ति शौर्य की भाषा है
जो संप्रभुता का रक्षक है, जो संबल की परिभाषा है

उस भारत की ही धरती पर ये फिर कैसी लाचारी है
हम सैनिक कैसे दीन हुए, अब कहाँ गयी खुद्दारी है?

“कश्मीर हमारा” कहते हो, पर याचक जैसे दिखते हो
तुम राष्ट्रवाद के थैले में, गठबंधन करके बिकते हो

वर्दी सौंपी, हथियार दिए, पर अधिकारों से रीते हैं
हम सैनिक घुट घुट रहते है, कायर का जीवन जीते हैं

छप्पन इंची वालों ने कुछ ऐसे हमको सम्मान दिए
कागज़ की कश्ती सौंपी है, अंगारों के तूफ़ान दिए

हर हर मोदी घर घर मोदी, यह नारा सिर के पार गया
इक दो कौड़ी का जेहादी, सैनिक को थप्पड़ मार गया

अब वक्ष ठोंकना बंद करो, घाटी में खड़े सवालों पर
ये थप्पड़ नहीं तमाचा है भारत माता के गालों पर

सच तो ये है दिल्ली वालों, साहस संयम से हार गया
इक पत्थरबाज तुम्हारे सब, कपड़ों को आज उतार गया

इस नौबत को लाने वालों, थोड़ा सा शर्म किये होते
तुम काश्मीर में सैनिक बन, केवल इक दिवस जिए होते

इस राजनीति ने घाटी को, सरदर्द बनाकर छोड़ा है
भारत के वीर जवानों को नामर्द बनाकर छोड़ा है

अब और नहीं लाचार करो, हम जीते जी मर जायेंगे
दर्पण में देख न पाएंगे, निज वर्दी पर शर्मायेंगे

या तो कश्मीर उन्हें दे दो, या आर पार का काम करो
सेना को दो ज़िम्मेदारी, तुम दिल्ली में आराम करो

थप्पड़ खाएं गद्दारों के, हम इतने भी मजबूर नहीं
हम भारत माँ के सैनिक हैं, कोई बंधुआ मजदूर नहीं

मत छुट्टी दो, मत भत्ता दो, बस काम यही अब करने दो
वेतन आधा कर दो, लेकिन कुत्तों में गोली भरने दो

भारत का आँचल स्वच्छ रहे, हम दागी भी हो सकते हैं
दिल्ली गर यूँ ही मौन रही, हम बागी भी हो सकते हैं

— कवि गौरव चौहान