लघुकथा

लघुकथा – अपना अपना डर

आज बेटी हास्टल नही पहुंची, माँ और पापा का दिल किसी अनजान घटना की आशंका से जोरों से धडक रहा था, काल भी नही लग रहा था, स्विच आफ बता रहा था। हास्टल पंहुच कर पता चला दोपहर की एन्ट्री से बापस नही आई। जैसे जैसे समय गुजर रहा था सीने में दर्द उठता जा रहा था, पूरी रात इसी भय मे निकल गई क्या पता क्या अनहोनी हुई है। सुबह के 11 बजे चुके थे पर कुछ पता न चला। सारी सहेलियों को काल करके पूछ चुके थे पर कुछ अता पता नही।
“मुझे लगता है रिपोर्ट करवा देनी चाहिए “माँ बोली।

“कैसी बातें करती हो –एक बार पुलिस केस बन गया तो जानती हो कितनी बदनामी होगी ” पिता ने मां की बात को काटते हुए कहा।

“पर बेटी को कुछ हो गया तो,, बदनामी और बेटी दोनों से जाओगे ”

“अभी 24 घंटे पूरे नही हुये हैं, मुझे लगता है एक दो घंटे और इंतजार करना चाहिए,, पुलिस भी 24 घंटे के बाद ही रिपोर्ट लेती है ”

दोनों की बैचैनी बडती जा रही थी,,पिछले कई घंटों से डर और चिन्ता में पानी भी हलक से नही उतरा था। तभी अचानक से रिंग हुई, दोनो की धडकन रूक गई। उस तरफ से बेटी बोल रही थी —“कहां हो तुम,, कैसी हो तुम,, ”

“माँ मे ठीक हू,, मेरी कोचिंग मे मेरी एक सहेली का एक्सीडेंट हो गया था,,, उस समय मैं ही साथ थी उसके, फिर मेरा भी फोन स्विच ऑफ हो गया, इतना समय नहीं था कि हास्टल जाकर किसी को बता सकूं, अभी हास्पिटल से बापस आई। फोन चार्ज किया तब आपको बता पाई, sorry माँ!”

“तो किसी और के नंबर से काल कर लेती, तुमको पता है हम लोग कितना डर गयी थे ”

“माँ….. नंबर याद नहीं था,,, सब मोबाइल में ही सेव है ”

“पागल लडकी, तेरी इस हरकत से मैं और तेरे पापा कितना परेशान हैं इसका अंदाजा नहीं है तुमको। चल रख फोन हम लोग आते हैं हास्टल।”

दोनो के दिलों की धड़कन इस तरह शांत हो गई जैसे तेज तूफान के बाद आई शान्ति। डर दोनो का एक सा था।
बाप को अपनी इज्जत का डर, कि कुछ ऊंच-नीच हो गई, तो? माँ को इस बात का डर कि कहीं उसको कुछ हो गया तो?

— रजनी

रजनी बिलगैयाँ

शिक्षा : पोस्ट ग्रेजुएट कामर्स, गृहणी पति व्यवसायी है, तीन बेटियां एक बेटा, निवास : बीना, जिला सागर