गीतिका/ग़ज़ल

#गजल 212 212 1222

तुझ पे दिल हारकर दिखाना है।
नाम लब पर तेरा सजाना है ।

मेरे सागर नदी बनूं तेरी ।
सिलसिला बस यही निभाना है ।

गम मिले या मिले ख़ुशी अब तो।
साथ जीवन तेरे बिताना है।

जिंदगी बिन तेरे अधूरी सी ।
हर कदम साथ ही बढ़ाना है।

दूर सबसे नजर छुपाकर के।
आशियां प्यार का बनाना है।

मीत समझो जरा इशारा भी ।
दूर तुमसे न हमको जाना है ।

लव खुले जब कभी भी मेरे तो ।
तेरी चाहत का बस तराना है ।

फैसला तुझपे दिल की कश्ती का ।
पार करना है या डुबाना है ।

इश्क “अनहद” हदों में क्यूँ बाँधे ।
कितना जालिम हुआ जमाना है ।

……अनहद गुंजन गीतिका

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*