राजनीति

सुकमा में नक्सलवादी हमला बेहद घातक व दुःखद

काफी समय से शांत चल रहे वामपंथी नक्सलवादियों ने लम्बे समय के बाद एक बार फिर अपने खूनी खेल को अंजाम देकर अपनी उपस्थिति को दर्ज कराने का प्रयास किया है। सुकमा में गांव वालों को ढाल बनाकर जिस प्रकार से हमला किया गया वह बेहद कायराना व क्रूरतापूर्वक कृत्य है। अब समय आ गया है कि नक्सलवादियो पर भी निर्णायक सर्जिकल स्ट्राइक की जाये और नक्सलवाद पर ढीली ढाली नीतियों का पूरी तरह से त्याग कर दिया जाये। सुकमा हमले में जो सबसे नयी बात उजागर हो रही है वह यह है कि उसमें जिन 300 नक्सलवादियों ने हमला किया उनमें 200 महिला कमांडो भी थीं। एक प्रकार से देखा जाये तो अब नक्सलवादियों के बीच में भी महिला सशक्तीकरण लागू हो गया है। वामपंथी महिला कमांडो ने सीआरपीएफ के जवानों पर बेहद वहशियाना अंदाज में क्रूरतम अंदाज में हमला किया।

यह हमला विगत वर्ष उरी सेक्टर में भारतीय सेना के 18 जवानों की शहादत से भी बड़ा हमला है। जब हमारी सेना 18 जवानों की शहादत का बदला सीमा पार जाकर ले सकती है तो फिर भारतीय जाबांज यहां के जंगलों व गुफाओं में छिपे बैठे खूंखार नक्सलवादियों को समाप्त क्यों नहीं कर सकती? आखिर हम कब तक छत्तीसगढ़ के सुकमा से लेकर कश्मीर की वादियों तक सेना के जवानों की शहादत को देखते रहेंगे। हमारे देश में कुछ पंक्तियां एक प्रकार से रट सी गयी है। जब भी देश में इस प्रकार की कोई शर्मनाक वारदात हो जाती है तो सभी नेता घटना की निंदा करते हैं और टीवी चैनलों पर जवानों की शहादत पर दुःख व्यक्त किया जाता है तथा सरकारों की नाकामी पर इस्तीफा मांगने का दौर शुरू हो जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि क्या किसी घटना के घटित हो जाने के बाद केवल राज्य सरकारों और संबंधित अधिकारियों के इस्तीफे से समस्या का समाधान संभव है। सुकमा हमले में सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि हमारी इंटेलिजेंस एजेंसी कैसे नाकाम हो गयी। केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी सुकमा हमले को एक बहुत बड़ी चूक माना है क्योंकि केंद्रीय खुफिया एजेंसियां इस बात के इनपुट लगातार भेज रही थीं कि नक्सलवादी किसी बड़े हमले को अंजाम दे सकते हैं। आखिरकार सुकमा में नक्सलवादियों ने अपने हमले को अंजाम दे ही दिया। यह घटना खुफिया तंत्र की बहुत बड़ी नाकामी है।

नक्सलवादियो ने एक प्रकार से विकास पर हमला बोला है। जिस स्थान पर हमला किया गया वहां सरकार की ओर से सड़कों और पुलों का निर्माण किया जा रहा था। सीआरपीएफ की 74वीं बटालियन के जवानों को सड़क निर्माण परियोजना की कांबिंग का काम सौंपा गया था। तभी घात लगाकर बैठे नक्सलियों ने स्थानीय गांव वालों को लोकेशन का पता लगाने के लिए भेजा। लोकेशन का पता चलने के बाद नक्सलवादियां ने चिंतागुफा-बुर्कापाल भेजी इलाके के पास घात लगाकर हमला किया। नक्सली छोटे-छोटे समूहों में बंट गये थे। आईडी ब्लास्ट करने के बाद उन्होंने अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें 26 जवान शहीद हो गये और 6 घायल हो गये। ये नक्सलवादी अपने साथ जवानों के कई हथियार भी लूटकर ले गये। नक्सलवादियों ने इस हमले में अति आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया। यह हमला व मुठभेड़़ तीन घंटे से भी अधिक समय तक चली।

बताया जा रहा है कि उक्त भयानक हमले के पीछे कुख्यात नक्सली नेता कमांडर हिडमा का हाथ बताया जा रहा है। सूत्रों के अनुसार यह भी पता चला है कि नक्सली संगठन पीपुल्स लिबरेशन आफ गुरिल्ला आर्मी ने इस हमले को अंजाम दिया है। वामपंथी आतंकवाद के जानकारों का भी मानना है कि इन लोगों ने अपनी उपस्थिति को दर्ज कराने के लिए ही इस भयानक हमले को अंजाम दिया है कि जिससे देश के सुरक्षाबलों व सरकार का मनोबल ध्वस्त हो जाये। यह हमला निश्चय ही केंद्र व राज्य सरकार तथा सभी सुरक्षाबलों व खुफिया एजेेंसियों के लिए भी एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर सामने आया है। इस हमले से एक बात साफ हो गयी है कि वह इस समय नक्सल प्रभावित सभी राज्यों में गहरे दबाव में आ गये हैं। ओडिशा व महाराष्ट्र आदि में नक्सलवादियों पर गहरा दबाव बना हुआ है तथा एक के बाद बड़े नक्सलवादी कमांडर सरकार की नीतियों के तहत आत्मसमर्पण करके समाज की मुख्यधारा में आने की कोशिश करने लग गये थे। अब तक काफी संख्या मे नक्सलवादी आत्मसपर्मण कर चुके हैं। यह उसी का बदला है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि सुकमा हमले से यह साबित हो रहा है कि वामपंथी आतंकवादी विकास के शत्रु बन गये हैं। ये लोग विकास नहीं चाहते अपितु गरीबों व आदिवासियों को अपनी ढाल बनाकर अपने एजेंडे को लागू करवाना चाहते हैं। नकसलवादियों का यह हमला एक प्रकार से देश के खिलाफ छेड़ा गया प्रत्यक्ष युद्ध है। इस युद्ध को अब देश के सबसे मजबूत प्रधानमंत्री के नेतृत्व में समाप्त करने का समय आ गया है। नक्सलवादियों के प्रति किसी भी प्रकार के रहम की कोई आवश्यकता नहीं है।

मृत्युंजय दीक्षित