धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ऊर्जा

अध्यात्म मानता है कि 84 लाख योनियों मे प्रकृति की सर्वोत्तम व विवेकशील कृति के रूप मे मनुष्य का जन्म हुआ है।यह मानव काया जिसमें त्याग, दया, स्नेह, प्रेम, सहनशीलता जैसे दूर्लभ गुणों का समावेश होता है उसी काया के साथ राम, कृष्ण, बुद्ध, यीशु, मोहम्मद साहब, गोविंद सिंह सरीखे महान आत्माओ का अवतरण हुआ और उन्हीं मानवीय गुणों के कारण वे वंदनीय व पूजनीय बने।इसमे कोई अतिश्योक्ति नही कि मानव की प्राकृतिक गुणों ने ही समय-समय पर मनुष्यों को देवताओ के श्रेणी मे पहुँचा दिया है।किंतु वर्तमान मे मनुष्य अपने कर्मो से दैवीय अहमियत तो दुर मानवीय स्तर से भी पतनोन्मुख हो रहा है।वर्तमान समाज मे क्यों बेटों के अपने पारिवारिक जीवन तथा हृदय मे अपने जननी व जनक के लिए कोई स्थान नही रह गया है? क्यों हम अपने स्वार्थ के लिए सामने वाले का अहित करने से पहले क्षण भर के लिए सोचते तक नहीं? क्यों सड़क पर घायल अपरिचित को मदद करने की बजाय तमाशाबीन बन अपनी राह पकड़ लेते है? क्यों रेल-दूर्घटना के यात्रियों या केदारनाथ त्रासदी  जैसे आपदा मे फंसे जरूरतमंदो  को बचाने की बजाय उनकी संपत्ति व धन लुटने के फिराक मे रहते है? क्यों निःस्वार्थ किसी की मदद करने से अपना पल्ला झाड़ लेते है?शायद  इन सारे क्यों का जवाब एक ही यक्षप्रश्न मे विधमान है कि क्या वास्तव मे हम मानव है? अपने अंदर यदि हम ढुंढे तो सारे प्रश्नों का जवाब स्वतः ही मिल जाता है। शास्त्रों मे “अहं ब्रह्मअसि” का उल्लेख मिलता है अर्थात मै ही ब्रह्म हूं।ये पंक्तियाँ मनुष्य को उनके सुह्रदय, दयालू, सहनशील,परोपकारी स्वभाव के कारण ईश्वपरीय सत्ता के समकक्ष पहुँचा देता है।मुद्दा ईश्वर बनने का नही है मुद्दा तो है महज एक आम इंसान बनने का।

कभी किसी भूखे इंसान को भरपेट खाना तो खिलाइए, कभी किसी निर्धन की बेटी के शादी मे मदद के लिए शरीक होकर  तो देखिए,  कभी वृद्ध माताजी-पिताजी से श्रद्धाभाव से वार्तालाप कर के तो देखिए, किसी घायल को अस्पताल तक तो पहुँचाइए , किसी निर्धन की अंधियारी झोपड़ी मे एक दीप  जलाकर तो देखिए, परस्त्री के प्रति सम्मान भाव तो जगाइए, परमार्थ भाव को हृदय मे स्थान तो दीजिए, निःस्वार्थ निःशक्तो की बैशाखी तो बनकर देखिए, कभी अपने व्यस्त जीवन के कुछ पल मानव उत्थान के लिए खर्च करके तो देखिए!

आप स्वयं मे स्वतः नई ऊर्जा का संचार व आत्मसंतोष की अनुभूति महसूस करेंगे। बंधु कभी गैरो के लिए भी महान बनकर तो देखिए। भगवान ना सही परन्तु इंसान बनकर तो देखिए।।

@विनोद कुमार विक्की

विनोद कुमार विक्की

शिक्षा:-एमएससी(बी.एड.) स्वतंत्र पत्रकार सह व्यंग्यकार, महेशखूंट बाजार, खगडिया (बिहार) 851213