हास्य व्यंग्य

” भमरा पार्टी दिवस “

दीवाली का दिन था। हर तरफ गहमा गहमी थी। भमरा लोग हर साल इसी दिन पार्टी का प्रोग्राम किया करते थे। क्योंकि भमरों की संख्या अब बढ़ गई थी, इस लिए इस वर्ष उन्होंने एक पार्क में पार्टी का प्रोग्राम बना लिया। रंग बिरंगे कपड़ों में हर कोई चहक रहा था, सब भमरा बच्चे फूलों के ऊपर उडारिआं ला रहे थे और खूब हंस रहे थे। खाने पीने का प्रोग्राम एक बड़े टैंट के नीचे किया गया था। तरह तरह की मठाईओं में से दूर दूर तक महक आ रही थी। कुछ भमरा लोग टैंट में बैठे खा पी रहे थे, कुछ बूढ़े भमरे एक तरफ बैठे बातों में मगन थे। पार्क के बाहर सड़क पर कारें इधर उधर दौड़ रही थीं। दूर से एक बहुत बड़ी कार तेजी से आ रही थी। पार्क के गेट पर यह कार आ कर रुक गई। इस में दो मोटे मच्छर सफ़ेद धोतिओं में बैठे थे जो किसी सिआसी पार्टी में लैक्चर दे कर आये थे । कार का शीशा खोल कर दोनों ने गेट पर लगे बोर्ड पर धियान से देखा जिस पर लिखा हुआ था ” भमरा पार्टी दिवस “, दोनों ने एक दूसरे के मुंह की तरफ देखा और दोनों मुस्करा उठे। एक बोला, ” यार हम भी भमरों जैसे ही मोटे हैं, क्यों ना हम यहां ही कुछ खा पी लें !”, हाँ ! लोगों का खून चूस चूस कर मुंह कुछ कड़वा हो गया है, मैं भी चाहता हूँ कुछ मुंह मीठा कर लें, दूसरा मच्छर बोला।
गाड़ी वहीँ पार्क करके दोनों मच्छर, गेट से पार्क में दाखल हो गए। यार ! कुछ डर भी लगता है, कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए,एक मच्छर बोला। फ़िक्र नौट भाई, कुछ नहीं होगा। दोनों टैंट के अंदर दाखल हो गए और एक टेबल के पास कुर्सिओं पर बैठ गए और मठाई का इंतज़ार करने लगे। टेबल की दुसरी तरफ बैठे दो बज़ुर्ग भमरों ने अपने मोटे शीशों वाली ऐनक के नीचे से देख कर मच्छरों को पुछा, ” भाई आप कौन हो ! “, “हम जी पतंगे हैं, बाहर बोर्ड लगा देख कर आ गए क्योंकि भमरों में हमारी बहुत सी रिश्तेदारिआं हैं, सोचा शायद कोई रिश्तेदार मिल जाए” , ” तब तो आप को यह भी विदित होगा कि हर एक को पहले कुछ काम करना पड़ता है, क्या आप कुछ गंदे बर्तन साफ़ कर सकते हो ?” एक बज़ुर्ग भमरा बोला। सुन कर दोनों मच्छर बर्तन साफ़ करने के लिए वहां चले गए यहां, खाने पीने के बाद की गंदी पलेटें पडी थीं। दोनों मच्छर इतना सारा गंद देख कर झूम उठे और गंदे पानी पर बैठ गए। गंद का उन को इतना लुतफ आ रहा था कि मस्ती में उन की आँखें बंद हो रही थी। वोह दोनों बज़ुर्ग भमरे चुपके से दोनों मच्छरों को देख रहे थे। मज़ा आ गया यार ! चल अब टैंट में चल कर मठाई खाते हैं। जब वापस टैंट में आये तो एक बज़ुर्ग भमरा बोला, ” अभी एक काम और आप को करना होगा, शाम हो गई है, दीवाली का दिन है, जाओ शहर के ऊपर घूम कर बताओ की कितने घरों पर दिए जल रहे हैं “, दोनों मच्छर उड़ कर शहर का चक्क्र लगाने लगे और जल्दी ही वापस आ गए। दोनों ने सारा हिसाब करके बता दिया कि इतने घरों पर दिए जल रहे हैं और इतनों पर अभी कोई दिया नहीं जल रहा।
बज़ुर्ग भमरे गुस्से में बोल उठे, ” हमारे बाल धुप में चिट्टे नहीं हुए हैं, अगर तुम पतंगे होते तो वहीँ किसी दिए पर जल कर मर जाते, तुम दगाबाज़ मच्छर हो, जो लोगों का खून चूसते हो, जाओ भाग जाओ यहां से “, दोनों मच्छर धोतीआं पकड़ कर भागने लगे। कुछ युवा भमरे यह सब देख रहे थे और मच्छरों के पीछे दौड़ पड़े। मच्छर जल्दी जल्दी कार में बैठ गए लेकिन इस से पहले युवा भमरों ने गाड़ी पर पत्थर मारने शुरू कर दिए। कार के शीशे टूट गए। यह तो अच्छा हुआ, युवा भमरों से पहले ही वोह उड़न खटोला हो गए, वरना आज दोनों की मुरमत हो जाती। कुछ दूर जा कर एक मच्छर बोला, ” यार, मुझे तो पहले ही डर लगता था, लेकिन तू माना ही नहीं था “, ” हा हा हा, घबराता क्यों है, सिआसत में ऐसा तो होता ही रहता है लेकिन जो मर्ज़ी हो जाए, खून तो हम चूसते ही रहेंगे ” और दोनों मच्छर हंसने लगे।