कविता

// अहा ! जीवन..//

हे जीवन ! तुम मन हो !
मानसिक क्रीड़ा हो !
प्राकृतिक नियमों को
कभी तिरस्कार करते हो
तो कभी स्वीकार
कभी स्वीकार करते हो
तो कभी तिरस्कार
तुम्हारी सोच – समझ में
रच पाते हो ! नियम !
अपनी ओर से अनेक
बुद्धि के खेल में
रोते – रूलाते
अपने को अजेय मानते
वाद -विवादों में, भेद – विभेदों में
द्वंद्वात्मकता का मंथन किये हो !
एकता की साधना में
तथ्य दीप के सामने
उलझनों से मुक्त होते – होते
दीप बुझा के
क्यों ,अनायास सिकुड़ जाते हो
नये उलझनों में !
यह बड़ी विचित्रता है तुम्हारी !

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।