ब्लॉग/परिचर्चा

फौज–इन–कश्मीर

कश्मीर के हालात गाहे बगाहे समाचारों की सुर्खियां बनते रहती हैं । हमारे देश में आतंकवाद की समस्या कोई नई नहीं है । अस्सी के दशक में पंजाब आतंकवाद से ग्रस्त था जिसका अंत 1984 में आपरेशन ब्लू स्टार के जरिये भिंडरावाला के खात्मे से हुआ । अपने इस नाकाम मंसूबे में मुंह की खाने के बाद पाकिस्तान अपने दूसरे मिशन में लग गया और फलस्वरूप नब्बे के दशक में ही कश्मीर में आतंकवाद के दौर का आगाज हो गया ।
 कश्मीर में आतंक वादियों द्वारा अमेरिकी पत्रकार पर्ल की हत्या को बड़ी घटना मानते हुए इस पर व्यापक कार्रवाई की गई और कुछ आतंकियों की गिरफ्तारी भी की गई । 1989 में वी पी सिंह सरकार में तत्कालीन गृह मंत्री स्व . मुफ़्ती मोहम्मद सईद की बड़ी बेटी रुबिया सईद का आतंकवादियों ने अपहरण कर लिया जिसके ऐवज में भारत सरकार को छह खूंखार आतंकवादियों को रिहा करना पड़ा था । भारत के लिए यह एक शर्मनाक घटना थी । लेकिन इस घटना से आतंकवादियों के हौसले बुलंद हो गये ।
 इसके बाद भारत में आतंकी हमलों की एक लंबी कड़ी इतिहास में है जिसे पाकिस्तान की कश्मीर को लेकर उसके मन में बढ़ रही कुंठा का दुष्परिणाम माना जाता है । रुबिया सईद के अपहरण कांड के बाद कुछ दिनों की ही खामोशी के बाद पाकिस्तानी आतंकवादियों ने कंधार विमान अपहरण कांड को अंजाम दिया । कारगिल युद्ध की हकीकत पूरी दुनिया को पता ही है । गुजरात अक्षरधाम हमला हो या संसद हमला या फिर बहुचर्चित मुम्बई हमला इन सभी हमलों के पीछे  पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी और उसके प्रायोजित आतंकवादियों का हाथ रहा है इसके कई दस्तावेजी सबूत के अलावा जिंदा सबूत भी पाकिस्तान को पेश किया जा चुका है । लेकिन पाकिस्तान है कि उसने खुद को ‘ पाजिस्तान ‘ बने रहने का ठान लिया है लिहाजा उसके सामने इन सारे सबूतों को नकारने के अलावा और कोई चारा भी नहीं है । हालांकि उसके पाले हुए ये सांप कभी कभार उसे भी डसने से बाज नहीं आते लेकिन कश्मीर पाजिस्तान का वह सपना है जिसके लिए वह अपनी पूरी कौम को भी मिटाने पर आमादा है ।
 इसी कड़ी में अब कश्मीर में आतंकवाद का यह जहर पाजिस्तान कश्मीर के स्थानीय लोगों की नसों तक पहुंचाने में कामयाब हो गया प्रतीत होता है । आतंकवादियों की मदद के लिए तत्पर ये स्थानीय लोग अब पत्थरबाजी पर आमादा हो गए हैं । और इन पत्थरबाजों के सामने हमारी विश्व की सबसे ताकतवर सेनाओं में से एक गिनी जानेवाली सेना के जवान किसी निरीह जानवर की तरह से राजनीतिज्ञों के स्वार्थ की वेदी पर बलि चढ़ने को मजबूर प्रतित हो रहे हैं ।  यह समझ में नहीं आता कि  ‘ चाहे जो हो जाये हिंसा पर आमादा जनसमूह पर कोई कार्रवाई नहीं कि जाएगी ‘ यह किसका फैसला है  ? क्या केंद्र सरकार का ? इस पर यकीन करना मुश्किल है । तब क्या राज्य सरकार सेना के आड़े आ रही है ? यह भी नहीं हो सकता । सेना पूरी तरह से केंद्र का  विषय है जिसमें राज्य सरकार का कोई रोल नहीं होता । केंद्र और राज्य में सत्ताधारी पक्ष प्रखर राष्ट्रवाद और देशभक्ति का मुखर हिमायती रहा है । ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर कश्मीर में इस हालात के लिए विशेषकर सेना की दुर्गति के लिए कौन जिम्मेदार है ? सोशल मीडिया पर वायरल सेना के जवानों की दुर्दशा और वहां के आवाम की सेना के साथ हो रहे बर्ताव को देखकर किसी भी देशप्रेमी का खून खौलना लाजिमी है । लेकिन क्या हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि आखिर ऐसा क्यों ? और ऐसा कब तक चलेगा ? हमें और कितने जवानों के शहीद होने का इंतजार है ?  आखिर कभी न कभी तो इस पर वीराम लगाना ही पड़ेगा ।
उपरोक्त परिस्थितियों को देखते हुए मन में पंचतंत्र की एक कहानी बार बार याद आ रही है ।
  आइये ! पहले इस कहानी पर नजर डालें ।
 एक विषधर नाग अपने दंश के दुष्परिणामों से चिंतित था । उसके डसने से मासूम इंसान या जानवर की मौत उसे अंदर तक झकजोर देती ।
एक दिन वह एक साधु के आश्रम में पहुंचा और उनसे अपनी समस्या बताई और पुछा ” महाराज ! मैं ऐसा क्या करूँ जिससे मुझपर यह पश्चात्ताप करने की घड़ी कभी नहीं आये । “
 साधु महाराज ने उसे प्रेम से समझाया ” इसमें कैसी मुश्किल ? तुम्हारे दुख का कारण है तुम्हारा क्रोध । बस इस क्रोध को त्याग दो । क्रोध का त्याग करते ही तुम किसी को भी काटना छोड़ दोगे । “
  ” जो आज्ञा महाराज ! ” कहकर नाग साधु को प्रणाम करके वापस आ गया ।
 दूसरे दिन से साधु के निर्देश अनुसार उसने किसी को भी काटना छोड़ दिया । उसे देखते ही लोग डर जाते वहीं नाग खुद भी उनके रास्ते से हटकर परे हो जाता । उसकी खामोशी लोगों के बीच चर्चा की वजह बन गयी । धीरे धीरे लोग अब उसकी तरफ से बेखौफ हो गए । कई बार तो लोग उसे लांघकर भी चले जाते । कुछ दिन बीते ।  एक दिन  कुछ बच्चों के झुंड ने उसे घेर लिया और पत्थर मारने लगे । नाग ने किसी तरह झाड़ियों में भाग कर छिप कर अपनी जान बचाई । उसके अहिंसावादी विचार से आज उसकी जान पर बन आयी थी ।
 नाग पुनः उसी साधु की कुटिया में हाजिर हुआ । उसे देखकर साधु महाराज मुस्कुराए ” कहो ! कैसे आना हुआ ? “
 नाग ने संक्षेप में अपनी पूरी रामकहानी उन्हें बताई । यह भी बताया आज कैसे उसकी जान जाते जाते बची है । उसकी पूरी बात सुनकर साधु महाराज मुस्कुराए और बोले ” मैंने तुम्हें काटने को मना किया था फुफकारने को थोड़े ही मना किया था ?   अब जाओ ! पहले तो काटो मत लेकिन कोई उद्दंडता दिखाए तो उसे फुफकार कर डराओ और अगर फिर भी कोई नहीं माने तो फिर काटने में कोई बुराई नहीं है । आखिर कुदरत ने तुम्हें इसीलिए अपनी रक्षा के लिए जहर दिया है । अंत में उसका इस्तेमाल करना ही चाहिए । “
 साधु महाराज से नया मंत्र पाकर अब वह नाग बहुत खुश था । अब कोई उसके सामने पड़ने की हिम्मत नहीं करता था । बच्चे भी अब उससे डरने लगे थे ।
 क्या हमारी फौज को यह गुरुमंत्र नहीं दिया जा  सकता ?

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।