कविता

मां

माँ  ममता की मूरत 
ऑचल मे समाहित उनके
प्रेम रस की धारा
बच्चो की यह दाता
इनको चूने है विधाता
गर्भ मे नौ माह रखती
फिर बच्चो को जन्म देती
बड़े प्यार से पालती माँ 
अपने ही ऑचल मे छुपा रखती माँ 
दुनियां के नजरो से बचाने के लिए 
काला टीका लगाती माँ 
अंगुली पकड़ चलना सिखायी
अच्छे बुरे का फर्क बताती
हर सुख दुख मे साथ देकर
मनोबल  ऊंचा रखती माँ 
आज हमारी बारी आयी
माँ का साथ देने को
कितना भी कुछ क्यो न कर दे
लेकिन माँ का कर्ज न चुका पायेंगे 
इसलिये जितना हो सके हमसे
उतना माँ का सेवा करें ।
निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४