लघुकथा

खुशी हो या गम

आज हरिया बहुत खुश था । आज बड़े दिनों बाद बड़े जुगाड़ से उसकी पदोन्नति हुई थी । उसके साथी कमल ‘ अमीर ‘ सरजू और गणेश भी उसकी खुशी में शामिल होने उसके घर आ पहुंचे थे ।
 उनको देखकर उत्साहित हरिया बोला ” चलो यार ! आज इसी खुशी के मौके पर कुछ जश्न हो जाये । ठेके पर चलते हैं जश्न मनाते हैं । “
सभी मित्र तैयार हो गए ” हाँ हाँ ! चलो ! “
 सभी मित्र नजदीक ही शराब के ठेके पर पहुंच गए और जम कर गला तर करने लगे । कुछ देर तक सभी शराब पीते रहे और हरिया की पदोन्नति का जश्न मनाते रहे ।
 तभी हरिया ने देखा शेठ रामलाल ठेके में प्रवेश कर रहे हैं । उनके चेहरे पर उदासी पसरी हुई थी और चेहरे पर तनाव साफ नजर आ रहा था । हरिया से थोड़ी जान पहचान थी सो आगे बढ़ कर उसने रामलाल को नमस्ते किया और यूँ ही शिष्टाचार वश उनका कुशलक्षेम पुछ लिया । शेठ रामलाल ने बुझे मन से जवाब दिया ” आज मुझे व्यापार में बड़ा तगड़ा घाटा लगा है सो सोचा थोड़ी देर ठेके पर ही बिताकर गम कम कर लूं  । “
 थोड़ी देर बाद हरिया और उसकी मित्र मंडली शेठ रामलाल के साथ बैठे जाम पर जाम खाली किये जा रहे थे । उनके बीच अब खुशी और गम का कोई फर्क शेष नहीं रह गया था ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।