सामाजिक

सवाल यह कि इस घटना से कितने लोगों के दिल दहले?

हरियाणा में हुई इस क्रूर घटना के बाद मुझे सोशल मीडिया पर कोई खास प्रतिक्रियाएं दिखाई नहीं दी. इस घटना से कहीं ज्यादा केजरीवाल, लालू और ईवीएम आदि का मामला उठता नजर आया. ऐसा नहीं कि रोहतक की इस युवती के साथ 2012 की निर्भया से कम क्रूरता हुई बल्कि उससे कहीं ज्यादा हुई. निर्भया को तो अंतिम समय में हॉस्पिटल भी नसीब हो गया था.  लेकिन उसकी  लाश को जंगली जानवर नोचते  रहे.

पिछले दिनों निर्भया बलात्कार और हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच ने कहा था कि जिस तरह इस घटना को अंजाम दिया गया, ऐसा लगता है कि यह दूसरी दुनिया की कहानी है. सेक्स और हिंसा की भूख के चलते इस तरह के जघन्ययतम अपराध को अंजाम दिया गया अत: आरोपियों को फांसी दी जाये.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद निर्भया की मां ने भी कहा था कि इससे देश में यह जरूरी संदेश जाएगा कि ऐसा कांड करने वालों की खैर नहीं है. इससे युवतियां निर्भय होंगी. लेकिन हरियाणा की ताजा निर्मम और दिल दहला देने वाली घटना का संदेश है कि वैसा नहीं हुआ. बल्कि अभी भी देश में अपराधी ही निर्भय हैं. हरियाणा के रोहतक जिले में 23 साल की एक युवती के साथ गैंगरेप हुआ.फिर उसकी बर्बर तरीके से हत्या कर दी गई. उसका क्षत-विक्षत शव पाया गया. यहाँ तक की उसके शव के कुछ हिस्से कुत्ते खा गए थे.

शुरुआत में मीडिया इस घटने को पहले तो जातिवाद से जोड़कर देख रही थी लेकिन जब पता चला कि आरोपी भी उसी जाति का है तो इसे दिल देहला देने वाली घटना बताकर अपने काम से इतिश्री करती नजर आई. पर सवाल यह कि इस घटना से कितने लोगों के दिल दहले?

भारतीय समाज का बड़ा हिस्सा अभी भी रेप को सेक्स से जोड़कर देखता है लेकिन पिछले वर्ष दिसंबर में ब्रिटेन में संसद के निचले सदन (हाउस ऑफ कॉमन्स) की बहस में जब एक महिला सांसद ने जब खुद से जुडी रेप की बात बताई तो उस वक्त पूरे सदन में सन्नाटा था. उसने बताया कि जब में छोटी थी तब मेरा रेप हुआ था.  “मैंने अपने माँ-बाप, पुलिस किसी को कुछ नहीं बताया, सब अपने अंदर दबा कर रखा. मुझे अपने आप में अपवित्र महसूस होता रहा. मेरी माँ की कैंसर से मौत हो गई, लेकिन मैं चाहकर भी उन्हें यह बात बताने की हिम्मत नहीं कर पाई. जब मेरी शादी हुई तो मैंने अपने पति को सब कुछ बताया.” इसके फौरन बाद कई सांसद उनके पास गए और उनकी पीठ पर हल्के से हाथ रखा और उसके प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की.

यह प्रसंग यहाँ जरूरी इसलिए की यदि घटना भारत में होती तो क्या कोई महिला संसद में यह सब बता पाती? या अपने पति से यह सब साझा करती? यदि साझा करती तो क्या उसे यह भावनात्मक स्नेह स्पर्श मिल पाता? या फिर तिरस्कार कर बहिस्कृत कर दी जाती इस सवाल का जवाब हम सबकी अंतरात्मा जानती है.

फिर भी यदि भारत में पुरुष की बात छोड़कर देखे तो यहाँ बड़ी संख्या में महिलाएं सोशल मीडिया का इस्तेमाल करती है. मुझे कोई एक दो पोस्ट ही नजर आई जिसमें हरियाणा की इस घटना पर दुःख जताया. इसे क्या समझा जाये कि ऐसे मामलों के लिए हमारे पास समय और संवेदना दोनों की भारी कमी हो गयी है?

क्या बस हम अपना एक नजरिया लेकर जिन्दगी जीने लगे. लड़की कामकाजी है तो जाहिर से बात है गलत ही होगी. बॉस के साथ नहीं तो स्टाफ के किसी सदस्य के साथ चक्कर जरुर होगा. अगर उनके पास महंगा मोबाइल है तो इसका मतलब हुआ कि वो किसी अच्छे लड़के के साथ सेट हैं और अगर ज्यादा महंगा मोबाइल है तो सीधे शब्दों में उन्हें बदचलन मान लिया जाता है. थोड़े कम या टाइट कपडे है तो चालू किस्म की होगी आदि-आदि धारणाओं को बल मिलते ही उसे चरित्रहीनता के शब्दों से कमजोर कर उससे प्रेम या यौन संबध स्थापित करने के लिए निवेदन किया जाता है. यदि लड़की मना कर दे तो फिर यह लोग इसे आत्मसम्मान का सवाल बना लेते है कि एक लड़की होकर तेरी हिम्मत कैसे हुई?  फिर तेजाब की बोतल या अपने जैसी विचारधारा के लोगों से मिलकर रेप या फिर रेप के बाद हत्या कर दी जाती है.

हरियाणा की इस घटना में भी यही सब हुआ आरोपी ने पीड़िता पर शादी करने का दबाव भी डाला था, लेकिन पीड़िता ने उसका निवेदन ठुकरा दिया था. बस इसके बाद उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म की साजिश रची गयी.

आज पीडिता के घर के बाहर दूरदराज से लोग सांत्वना देने आ रहे हैं जिनमें अधिकतर कुछ ऐसे भी हैं जिनका किसी न किसी राजनीतिक दल से ताल्लुक दिखता है. कोई कठोर कानून की मांग कर रहा है तो कोई इसकी कृत्य की निंदा कर रहा है

लेकिन सवाल वही स्थिर खड़ा है क्या निंदा की आवाज, कठोर कानून की धमक और सुप्रीम कोर्ट के फैसले की गूंज इन आरोपियों तक पहुँच रही है?

मुझे नहीं लगता क्योंकि अधिकांश मामलों में आरोपी ऐसे क्षेत्रों से आते है जो टीवी पर समाचारों, अखबारों या ऐसी घटनाओं पर कभी चर्चा सुनते या करते हो. उनकी नजर में महिला एक कामुक देह है जो सिर्फ पुरुष की कामना को त्रप्त करने के लिए बनी है.

कानून पहले भी कम सख्त नहीं थे. आज और भी ज्यादा सख्त है पर मुझे लगता जब तक महिलाओं को स्वतन्त्र देह के बजाय इज्जत और यौन प्रतीक समझा जाता रहेगा, ऐसी घटनाओं को रोकना मुश्किल बना रहेगा. जब तक हम एक घटना की निंदा कर हटेंगे अगली घटना सामने मुंह खोले खड़ी होती रहेगी..

राजीव चौधरी

राजीव चौधरी

स्वतन्त्र लेखन के साथ उपन्यास लिखना, दैनिक जागरण, नवभारत टाइम्स के लिए ब्लॉग लिखना