लघुकथा

चॉकलेट

 किशोर की एक छोटी सी परचून की दुकान थी । अचानक उसकी नजर दुकान के सामने रखे खोखे में से चॉकलेट के  चोरी की कोशिश कर रहे दो अधनंगे गंदे से भिखारी जैसे बच्चों पर पड़ी । एक पांच तथा दुसरा सात वर्षीय बालक था । इससे पहले कि दोनों  चॉकलेट लेकर  भाग पाते किशोर ने उन्हें दबोच लिया और कई तमाचे उन्हें रसीद कर दिये । लोगों की भीड़ जमा हो गयी । भीड़ में शामिल लोग भी किशोर की तारीफ करते हुए उसे कई तरह की सलाह दे रहे थे । कोई कह रहा था ‘ पुलिस में दे दो ‘ तो कोई कहता ‘ अरे पुलिस वाले कुछ नहीं करेंगे । पैसे लेकर इसे छोड़ देंगे । ‘ तो कोई बता रहा था ‘ इन्हें कड़ी सजा दो । ‘
 भीड़ में शामिल सभी उन मासूमों की भुख और अवस्था पर ध्यान दिए बिना उन्हें दंडित होते देख खुश हो रहे थे । किशोर ने बाकायदा उन्हें गंजा करवाकर चिथड़े से कपड़े भी उतरवा लिये और जूतों की माला पहनाकर उन्हें पीछे से मारते हुए आगे चलने का आदेश दिया ।
 भीड़ देखकर ठाकुर रामलाल कार से नीचे उतरे । उनका दो वर्षीय पोता उनकी गोद में था । किशोर से पूरा वाकया जानना चाहा । किशोर ने उन्हें बताया ” ठाकुर जी ! देखिए क्या जमाना आ गया है । इतने छोटे छोटे बच्चे भी अब चोरी करने लगे हैं । लेकिन इन्हें भी ऐसा सबक दिया है कि आगे जिंदगी में कभी भी चोरी नहीं करेंगे । ” तभी उसका ध्यान ठाकुर की गोदी में खेल रहे उनके पोते पर पड़ी । तुरंत ही अपने बेटे को आवाज लगाई ” अरे ! राजू ! एक कैडबरी लाना । ” और राजू के चॉकलेट लाते ही किशोर आग्रहपूर्वक कैडबरी ठाकुर के पोते को देते हुए बहुत खुश दिख रहा था ।
 सिसक रहे दोनों बच्चे हसरत भरी नजरों से किशोर के हाथों में रखे उस चॉकलेट को देख रहे थे जिन्हें ठाकुर का पोता बार बार उठाकर फेंक रहा था फिर भी किशोर उसे चॉकलेट देने की कोशिश किये जा रहा था ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।