गीतिका/ग़ज़ल

सुन लिया उसने भी कल मेरी ग़ज़ल

2122 2122 212
कर गई अपनी पहल मेरी ग़ज़ल।
सुन लिया उसने भी कल मेरी ग़ज़ल।।

हर्फ़ चेहरे पर उभर कर आ गए ।
इश्क पर रखती दखल मेरी ग़ज़ल।।

सुर्खरूं होती गई वह बे हिसाब ।
होठ पर जाती मचल मेरी ग़ज़ल ।।

तोड़ ले कोई भी गुल को शाख से ।
है कहाँ इतनी सरल मेरी ग़ज़ल ।।

यूँ नज़र मत आइये मुझको सनम ।
देखकर जाती बदल मेरी ग़ज़ल ।।

मत कहो उसको फरेबी तुम कभी ।
बात पर रहती अटल मेरी ग़ज़ल ।।

शेर की गहराइयों में डूब कर ।
फिर गई थोड़ी सँभल मेरी ग़ज़ल।।

उसकी सूरत देख कर जब भी लिखी ।
फिर खिली जैसे कंवल मेरी ग़ज़ल।।

कुछ उसूलों के तले यह दब गई ।
पी रही अब तक गरल मेरी ग़ज़ल ।।

बह्र हो या काफ़िया या वज़्न हो ।
बाद मुद्दत के सफल मेरी गज़ल ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com