गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

वज़्न – 221 1222 221 1222
पिजरे से परिंदे को आज़ाद नहीं करते ।
कुछ लोग मुहब्बत को आबाद नहीं करते ।।

फ़ितरत है पतंगों की शम्मा पे मचलने की ।
ऐसे जुनूं पे आलिम इमदाद नहीं करते ।।

वह दर्द मिटाने का वादा किया था वरना ।
रह रह के मुकद्दर को हम याद नही करते ।।

ज़ालिम की अदालत में सच पे गिरी है बिजली।
मालूम  अगर  होता फरियाद  नही  करते ।।

वो साथ निभाएंगे कहना है बहुत मुश्किल ।
वो वक्त कभी हम पर बर्बाद नहीं करते ।।

हसरत ही मिटा बैठे कुछ लोग ज़माने में ।
खुशियों की तमन्ना को ईज़ाद नहीं करते ।।

दरिया का समंदर से मिलने का इरादा है ।
बेबाक भरोसे पर सम्वाद नहीं करते ।।

देखेंगे नहीं मुझको गर राज पता होता ।
महफ़िल की बड़ी लम्बी तादाद नहीं करते ।।

नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक naveentripathi35@gmail.com