ब्लॉग/परिचर्चा

जो दर्द देता है वही दवा भी

अब तक तो आप लोग जान ही गए हैं कि, मीता मेरी अंतरंग सखी है. आम तौर पर मीता उसे कहते हैं जो, हमनाम भी हो और अंतरंग मित्र भी. पर, यहां तो उसका नाम ही मीता था. मीता मुझे हर बात बताती है. हम शाम को सैर पर इकट्ठे जाती हैं, इसलिए वह कहीं भी जाने से पूर्व मुझे अवश्य सूचित करती है. उसकी यह मान्यता उसे और मुझे भी बहुत राहत देती है कि,

“ज़िंदगी में सुख भी बहुत हैं तो, परेशानियां भी बहुत हैं,
ज़िंदगी में लाभ भी बहुत हैं तो, हानियां भी बहुत हैं ।
क्या हुआ जो, प्रभु ने थोड़े ग़म दे दिए,
उसकी हम पर मेहरबानियां भी बहुत हैं ॥”

यह न केवल मान्यता है उसकी, बल्कि बहुत धैर्य से सुख-दुख में वह इसको भूलती भी नहीं है. एक दिन उसके हॉर्ट पेशेंट पतिदेव की सुबह-सुबह तबियत ज़रा-सी नासाज़ हो गई तो, वह तुरंत मुझे फोन पर सूचित करके गाड़ी में पतिदेव को अस्पताल ले गई. वहां उनको एडमिट करके इलाज किया जा रहा था. तुरंत ही हालत कंट्रोल में आ गई और डॉक्टर ने निश्चिंत हो जाने के लिए कहा. हमारी रोज़ बात होती रही पर, उसके घर वापिस आने के कुछ दिन बाद सैर पर जो, आपबीती उसने सुनाई वह, अद्भुत थी. प्रस्तुत है उसी की ज़ुबानी-

“मैंने अस्पताल पहुंचकर शीघ्र ही वहां पड़ी व्हील चेयर पर उन्हें बिठाया और इमरजैंसी में ले गई. वहां काउंटर पर अपना टोकन कार्ड दिखाकर उन्हें आश्वस्त किया कि, हम उनके पैनल पर हैं, बाकी बात बाद में आके करूंगी. तब तक उन्हें इमरजैंसी में बैड पर लिटाकर उनका चैकअप भी शुरु कर दिया गया था. हॉर्ट स्पैशलिस्ट ने पेशेंट से तकलीफ़ पूछकर टैस्ट शुरु कर दिए. मीता के मन में अटल विश्वास था कि,

 

“धीरज रख वो रहमत की बरखा बरसा भी देगा,
जिस प्रभु ने दर्द दिया है, वो ही दवा भी देगा.”

 

सचमुच थोड़ी देर बाद ही डॉक्टर ने उसको और पेशेंट को आश्वस्त किया कि, हॉर्ट की तकलीफ़ का कोई आसार नहीं है और केवल मात्र कुपाचन की ही समस्या है. इसलिए, चिंता की कोई बात नहीं है. ”उन्होंने मुझे काउंटर पर जाकर आवश्यक कार्यवाही पूरी करने को कहा.” मीता की आपबीती जारी थी- ”वहां मेरी मुलाकात अदीप भाई से हुई. अदीप भाई का व्यक्तित्व तो देखते ही बनता था. गोरा-चिट्टा-बांका नौजवान और सूरत जैसी ही सीरत भी. अपने काम के प्रति बेहद समर्पित और हर सहायता के लिए तैयार. मुझको बहुत परेशान देखकर वे बार-बार गॉर्ड को कहकर दो मिनट के लिए मुझे अंदर जाने की इजाज़त दिलवा देते थे और खुद भी हमदर्दी प्रकट करते. उन्हीं से उन्हें पता चला कि, थोड़ी देर बाद मेरे पतिदेव को आई.सी.यू. में शिफ़्ट करेंगे. अब मुझे यह सोचकर बहुत चिंता लगी कि, आई.सी.यू. में शिफ़्ट करने के बाद तो मुझको अकेला ही रहना पड़ेगा. अदीप भाई ने ही मेरी यह चिंता भी यह बताकर मुझे निश्चिंत कर दिया कि, भले ही लॉबी में एक व्यक्ति को ही रहने की इजाज़त है पर, वहां पर सब इंतज़ाम है और कंबल वगैरह भी मिल जाएगा. मेरे को जो सखी कार में लाई थी, मैंने उसे समय रहते घर जाने को भेज दिया. अब मैंने अदीप भाई की तरफ़ ध्यान से देखा तो, मैंने नोट किया कि, उनके एक कान में चमकता हुआ डायमंड था. मैंने क्योरिसिटी के कारण उनसे इसका कारण पूछा, वे बताने से बचना चाह रहे थे इसलिए कहने लगे कि, बचपन में ही उनका कान छिदवा दिया गया. एक बार और पूछने पर कहने लगे कि, कहते हैं कि, इससे गुस्सा कम आता है. मैंने उनसे कहा कि, अपनी ममी से पूछकर बताएं, कुछ और कारण होगा. अगले दिन उन्होंने मुझको फोन करके बताया कि, बचपन में अदीप भाई की ही बहुत इच्छा थी कि, उनका कनछेदन करवाया जाए.”

 

”सचमुच ही थोड़ी देर बाद मेरे पतिदेव को आई.सी.यू. में शिफ़्ट कर दिया गया. अदीप भाई ने उस समय भी मेरी बहुत सहायता की. पतिदेव को आई.सी.यू. में सैटिल करके मैं लॉबी में चली गई. वहां ड्यूटी पर नारायाण सिह तैनात थे. वे भी अच्छे सहायक बने और कम्फ़र्टेबिल सीट दिलाकर कम्बल भी दिलवा दिया. सुबह वहां मीनाक्षी की ड्यूटी लगी, वह भी बहुत अच्छी थी.”

 

”अगले दिन मेरे पतिदेव को प्राईवेट रूम में शिफ़्ट कर दिया गया. वहां बारी-बारी से आने वाली जो सिस्टर्स व अन्य स्टॉफ-मेम्बर्स थीं, वे भी इतनी अच्छी थीं, कि उनका नाम भूलना भी नामुमकिन है. उनका नाम था-
‘इंछु, माया, श्रन्गी, विष्णु शर्मा, मानसी, रुखसाना, शुनामिते बत्रा’. अंत तक उन्होंने मेरी अच्छी तरह सहायता की और मुझे एक पल को भी अकेले होने का अहसास नहीं होने दिया. जब तक हमें वहां रहना था, समय बहुत आराम से बीता और अस्पताल से समय पर छुट्टी दिलवाने व बिल बनवाने में भी मेरी बहुत मदद की. परमात्मा उनका भी भला करे.”

 

तो यह थी मीता की कहानी,
उसी की ज़ुबानी,
जिसने हमें सिखाया कि
‘जो दर्द देता है वही दवा भी’,
ऐ बंदे मत डर, न कर तू कोई नादानी.’

 

 

एक बात और-
मीता पहले इंटरनेट का बिलकुल प्रयोग नहीं करती थी, फिर करने लगी तो करती ही चली गई. इससे उसकी तबियत पर भी असर पड़ने लग गया था. अब इंटरनेट पर तो नित नए परिवर्तन आते ही रहते हैं. फिर एक समय ऐसा आया, कि उसने इंटरनेट का प्रयोग सीमित कर दिया. इससे उसे राहत मिली और घर के बहुत-से काम भी पूरे हो गए.

 

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244