कविता

मानवता

मानवता है धर्म मनुष्य का,फिर क्यों इससे बेजार हुआ
जाति,धर्म,संम्प्रदाय,वर्ण से,भला किसी का उद्धार हुआ,

ईमानदारी ना रही  कहीं भी, अच्छाई भी  बिलख रही
भाईचारा सहयोग मदद   सब, बंद गठरी  सिसक  रही,

ऊँच-नीच का दानव भी, गुर्रा  रहा कुछ यूँ  समाज  में
नफरत, दंग, फसाद  से  ग्रसित, जूझ  रहा  समाज  ये,

संस्कारों का निकल रहा जनाजा,मर्यादायें भंग  हो रही
धूमिल हुये  सब रिश्ते नाते, मानवता  देख दंग  हो रही,

मानवीय मूल्यों का ऐसे , निसदिन भारी पतन  हो  रहा
मूक खडा मानवीय समाज, गर्द में जाकर सिमट  रहा

प्रकृति से कुछ तुम यूं सीखो, मानवता का धर्म निभाना
धूप,वायु समान देती सभी को,उसने भेदभाव ना जाना,

लक्ष्मी थपलियाल

लक्ष्मी थपलियाल

पिता का नाम :- श्री गिरीश प्रसाद गौड माता का नाम:-श्रीमती मीना गौड जन्म तिथि:- २-६-१९७८ जन्म स्थान:-देहरादून,उत्तराखंड शिक्षा:-पोस्ट ग्रेजुएट समाजशास्त्र विषय से व्यवसाय:-स्व व्यवसाय मोबाइल न. ८९५८९३३३३५