कविता

कविता : उम्र की सुराही से

उम्र  की सुराही से
रिस रहा है
लम्हा लम्हा
बूँद बूँद
और
हमें मालूम तक नहीं पड़ता
…..
कितनी स्मृतियाँ
पुरानी किताब के
जर्द पन्ने की तरह
धूमिल पड़ गई
हमें मालूम तक नहीं पड़ता
…….
बिना मिले , बिना देखे
कितने अनमोल रिश्ते
औपचारिकता में
तब्दील हो जाते है
हमें मालूम तक नहीं पड़ता.
……
हमें मालूम तक नहीं पड़ता
कल  कौन ,  कब,   कहाँ
साथ   छोड़   जाएगा
या
कोई
कब
कहाँ
नया
हमसफ़र
मिल जाएगा
…….जीवन ऐसा ही है
थोड़ा पानी के उपर
थोड़ा पानी के भीतर….
हमें मालूम तक नहीं पड़ता.
—  गौतम कुमार सागर

गौतम कुमार सागर

सीनियर मैनेजर (बैंक ऑफ बड़ौदा ) लेखन कार्य :- विगत बीस वर्षों से हिन्दी साहित्य में लेखन. दो एकल काव्य संग्रह प्रकाशित . तीन साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित . विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित . अखिल भारतीय स्तर पर " निबंध , कहानी एवं आलेख लेखन " में पुरस्कृत. संपर्क :- 102 , अक्षर पैराडाईज़् नारायणवाडी रेस्तूरेंट के बगल में अटलादरा वडोदरा (गुजरात) मो. 7574820085