लघुकथा

“बज गई शंख”

लघुकथा……

शंख बज गई झिनकू भैया के आँगन में, भौजी के पाँव लाल महावर और भैया की पियरी मने मन खूब मलका रही है। नवुनिया गमछा और अँचरा पकड़े अड़ गई है एक सौ एक रुपैया लिए बिना गाँठ नहीं बाँधने वाली, टेट ढीली करो मालिक, आज तो सरेआम ही लूट लूंगी। बहुत सताते हो न, दो फसल के मनहि भर जौरा का जमाना कब का लद चुका है। अब ए टी एम का बटन दबाइये और कड़कती करेंसी बढ़ाइए, बदले में बैलेंस की जानकारी मुफ़्त पाईये। काहें मौके को व्यापर बना रही है, कब तुझे खुश नहीं किया, बता तो, मनबहक कहीं की…..चल जल्दी से जोड़ दे अँचरा, शुभ साईत तो इन्हीं के पल्लू से जुड़ा हुआ है…..मेरे तेरे बिन हिसाबी खाते की खुरापाती हिसाब- किताब तो होता ही रहता है। अभी गौरी गणेश का टीका मटिका कर दे वरना नवग्रही देवी शर पर सवार हो जाएगी। ले पकड़ ग्यारह रुपये नगद, अब कभी मत कहना की आरती नहीं घुमाउंगी और परसादी नहीं बाटूँगी…..हा हा हा हा हा बहुते शरारत करती है। पंडितउवाच…..दाहिने हाथ से आचमन, तिन बार आचमन करें, ॐ केशवाय नमः, ॐ माधवाय नमः, ॐ नारायणाय नमः….अब हस्त प्रच्छालन दो बार करें….. हाथ में जल अक्षत और पुष्प लेकर भगवान का ह्रदय से ध्यान धरें……एकदा नैमिषारण्ये…..प्रथम अध्याय की शंख गूँज उठी……

उधर भाई पटीदार, गोतीन दयादिन, इष्ट मित्र अपने अपने धुन में,…… भैवा बहुत कंजूस आदमी है, जमाना बीत गया इस घर में कभी शंख न बजी, न ही ब्राह्मण जूठन ही हुआ……चुप बे, कलयुगी मुंहदोखी, जब भी भोंकता है गलत सलत ही आग उगलता है…… तेरे घर भागवत होती है क्या हर महीने, कई पुस्त हो गया, कुल- परिवार में कोई गया जाकर पिंडा नहीं दे पाया पूर्वजों को, न्योता पर ही गुजर होता है और बुराई सबकी करेगा, नमकहराम कहीं का….. चईत्तर भैया का पारा चढ़ गया। हा हा हा हा ठीक किए भैया, इसी का पात्र है यह निपोरी….. हवन की लकड़ी ले आओ भाई, चार अध्याय की शंख बज गई……होम होईहें, जग्गी होइन्हें, देवता आनंद होईहें…..औरतों का मंगलाचरण शुरू हो गया जिसके शोर में पाँचवी शंख कब बजी पता ही नहीं चला……आरती लिए नउनिया बाहर आई और बहुत से लोगों का खलिहर हाथ, श्रद्धा- संस्कार से परिपूर्ण होकर आरती की थाली से माथे तक घुमरी परैया खेलने लगा। पंचामृत का प्रसाद पहले लाना भाई, शालिग्राम भगवान का धोवन दो बूँद लेने से जीवन धन्य हो जाता है…..बाकी मनभोग और कदली फल इत्यादि तो बाद की बात है…..अकालमृत हरणम् सर्वम् व्याधि विनाशकं, विण्णुपादोदकं शिरषा पित्वा धारार्ह्म…….

कुछ भी हो झिनकु भैया साल में एकाध बार सत्यनारायण भगवान की कथा तो सुन ही लेते हैं और जूठन का लाभ ले लेते हैं, पहले तो गाँव में श्रावणी पूनम को हर घर में शंख बज जाती थी पर अब जो लोग कुछ कमा- धमा के आगे बढ़ें हैं श्रीमत भागवत की कामना पाले बैठे हैं……न नौ मन गेंहू, न राधा कर नाच……गृहस्तों की सबसे बड़ी भागवत तो कथा ही है जो अब वारे त्यौहारें ही प्रसाद दे रही है……अरे, गाँठ तो खोल दे…..आजाद कर मुझे, कबतक इनके पल्लू से बँध कर बैठा रहूँ…….लीजिए पंडित जी रक्षा बन्हाई दच्छिना और आशीर्वाद दिजिए…… जोड़ी बनी रहें झिनकू बाबू, खूब आगे बढिए, फलल रहें दूध, पूत…..जय हो…..जय हो…..जय हो…..

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ