कविता

पूर्णिमा की रात

पूर्णिमा की रात में 
जब चाँद  अपनी 
चाँदनी बिखेरता है
तो पते पर पड़े 
कुछ जल की बूँदे
मोती सा चमक उठते है
ठिक वैसे ही तो
जब हम दोनो साथ होते है
तब उस चाँद की चाँदनी 
हम दोनो पर पड़कर 
और ही चमक उठते हैं 
उस क्षण  ऐसा प्रतीत होता है
जैसे आज कोई अजूबा दिन हो
ऐसे लगता जैसे आज तक
कभी ऐसा देखे ही नही हो
इसे चाँद का कमाल कहे
या तुम्हारे साथ होने का असर ।
निवेदिता चतुर्वेदी ‘निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४