सामाजिक

शिक्षा व्यवस्था की नाकामी चिंता का सबसे बड़ा विषय

हाल ही में देश के अलग अलग राज्यों में जारी किये गए दसवीं और बारहवीं के रिजल्टस् में सामने आ रहे खामियों ने एक बार फिर से पूरे देश में छात्रों के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिये हैं। देश के विभिन्न हिस्सों में जारी किये गए हाल के परीक्षा परिणामों में देखे जा रहे अविश्वसनीय नतीजों से देश की शिक्षा प्रणाली पर एक नई बहस शुरू हो गई है। खासकर बिहार और असम के रिजल्टस् ने लोगों को हैरत में डाल रखा है। जहां पिछली बार के बिहार के टॉपर घोटाले ने बिहार की शिक्षा व्यवस्था की कलई खोलकर रख दी थी वहीं इस बार भी बिहार के कला विभाग में अव्वल श्रेणी में उतीर्ण छात्र गणेश कुमार के बारहवीं के परीक्षा परिणाम ने एक बार फिर से सभी को अचंभित कर दिया है।
यह हाल सिर्फ बिहार का नहीं है बल्कि ऐसा ही एक मामला असम के बारहवीं और दसवीं के परिणामों के दौरान भी देखने को मिला है। जब दसवीं के सिर्फ तीन पेपर देकर एक एक्सीडेंट में जान गंवाने वाली छात्रा बबीता शैकिया को सेबा ने बिन परीक्षा दिये ही हिंदी के पेपर में उतीर्ण करा दिया। ठीक उसी प्रकार बारहवीं की परीक्षा में टॉप 10 में स्थान प्राप्त करने वाले छात्र अर्णव कपिल को भी असम उच्चतर माध्यमिक काउंसिल ने गणित का पेपर दिये बगैर 94 अंक देकर सबको हैरान कर दिया है। अर्णव को उच्चतर माध्यमिक की परीक्षा में कुल 473 अंक प्राप्त हुये थे और इस अंक के साथ वे प्रदेश में नौवें स्थान पर काबिज हैं। पर स्वयं अर्णव के मुताबिक उनका यह रिजल्ट सही नहीं है क्योंकि उन्होंने इस परीक्षा में गणित का पेपर अटेंड ही नहीं किया था। अब अर्णव के इस खुलासे के बाद असम उच्चतर माध्यमिक काउंसिल भी बिहार इंटरमीडिएट एजुकेशन काउंसिल की तरह ही संदेह के घेरे में है और उसके द्वारा घोषित परीक्षा परिणामों को लेकर भी लोगों के मन में ढेरों सवाल हैं ।
ऐसे में अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य की खातिर अपनी गाढ़ी कमाई का एक बड़ा हिस्सा शिक्षा के मद में खर्च करने वाले अधिकत्तर अभिभावक आज परेशान हैं। और उनकी इस परेशानी की वजह सरकारी नियंत्रणाधीन बॉर्ड और काउंसिल हैं जो पूरे वर्ष में ढंग से कलई परीक्षा तक संचालित नहीं करा पा रहें हैं। देश के सबसे महत्वपूर्ण विभागों में से एक शिक्षा विभाग में दिख रही ये विसंगतीयां हमारे देश के भविष्य के लिए एक बड़ी चुनौती है जिससे बाहर निखलना आज पूरे सिस्टम के लिए बहुत जरूरी हो गया है। देखने-सुनने में हास्यपद लगने वाली ये छोटी-छोटी खामियां पूरे देश और समाज के लिए घातक है। आखिर शिक्षा ही वह जरिया है जिसपे एक समाज और देश की नींव रखी होती है ऐसी स्थिति में शिक्षा विभाग की छोटी सी नाकामी भी समाज के लिए केंसर की तरह सिद्ध होगी। हमें अपने समाज को इस केंसर से बचाने के लिए शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन करने की जरूरत है जिससे हमारे बच्चों के मनोबल को अधिक सशक्त किया जा सके और समाज में एक सकरात्मक सोच की लौ जलाई जा सके।
बिन परीक्षा दिये प्राप्त ये अंक परीक्षा व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफि हैं तो वहीं पास होने के लिए जरूरी अंक प्राप्त होने के बावजूद स्टुडेन्टस के मार्कशीट पर फेल लिखा होना भी पूरी सिस्टम की अयोग्यता का प्रमाण है। इस वर्ष के रिजल्ट्स ने अधिकत्तर राज्यों के शिक्षा विभाग में कार्यरत अयोग्य कर्मचारियों की असलियत भी जगजाहिर कर दी है। देश के कर्मचारी चयन प्रक्रिया भी इनकी वजह से सक के घेरे में है कि आखिर कैसे शिक्षा जैसे एक महत्वपूर्ण विभाग में अयोग्य और दायित्वहीन लोगों को चुना गया और इन्हें बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने की खुली छूट दी गई।
बिहार बोर्ड के रूबी राय प्रकरण ने जिस तरह से शिक्षा विभाग में चल रहे करप्सन कांड को बेनकाब किया था उससे देश की शिक्षाक्षेत्र की साख धूमिल हुई है। कभी अपनी शिक्षा प्रणाली के लिए विश्वभर में समादृत बिहार आज शिक्षा के क्षेत्र में हो रहे नए नए खुलासों की वजह से सर्मिंदगी झेल रहा है और कहीं ना कहीं इसकी वजह सरकार का ढुलमुल रवैया है जो इस विभाग को नियंत्रण करने में असफल रहा है।
शिक्षा विभाग में नजर आ रहीं ये नाकामियां आज हमारे समाज के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है। ये विषय आज भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच से भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत-पाकिस्तान के बीच दोनों देशों की सरजमीं से बाहर खेला गया मैच देश में किसी तरह की कोलाहल नहीं ला सकता पर हमारे नाक के निचे शिक्षा विभाग में चल रहीं गड़बड़ियां हमारे आने वाले भविष्य के प्रजन्म को पंगु बना देंगी जिससे देश का भविष्य रसातल में चला जायेगा। बस एक दो अयोग्य बच्चों का टॉपर बनना इस देश और समाज के लिए कितना घातक सिद्ध होगा ये आनेवाला समय बता देगा।

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि किसी भी समाज का पूरा आधार उस समाज में प्रसारित शिक्षा पे निर्भर शील होता है और ऐसे में अगर किसी समाज की शिक्षा की नींव ही बिखर जाये तो वो समाज अपने आप ही असभ्यता के दलदल में समाने लगता है। आज देश में दिनोंदिन पनप रहे नक्सलवाद,आतंकवाद,बेरोजगारी और सामाजिक व्यभिचार का कारण कहीं ना कहीं शिक्षा व्यवस्था का फेल होना ही है। ऐसे में सरकारों को चाहिये कि वे शिक्षा के क्षेत्र में सकारत्मक परिवर्तन की दिशा में कार्य करें और शिक्षा विभाग में अधिक से अधिक योग्य लोगों को सामिल करें। देश की सत्ता में बैठी सरकारों को चाहिये कि वे शिक्षा क्षेत्र के विकास के लिए पारदर्शी तरीके अपनाये। किसी भी शिक्षक की नियुक्ति से पहले उसे कुछ दिनों तक संबधित विद्यालय में प्रैक्टिकल क्लास करवाये जाने चाहिये और उसके नियुक्ति के संबध में किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पहले विद्यालय के बच्चों से उसके शिक्षा के तौर तरीकों और रहन-सहन के साथ ही उसके व्यवहार के बारे में भी जानकारी लेनी चाहिये। किसी भी शिक्षक के योग्यता के निर्णय का पहला अधिकार उस विद्यालय के बच्चों का ही होना चाहिये क्योंकि आगे चलकर बच्चों को ही उस शिक्षक से पढ़ना और सिखना है। अगर शिक्षक अपने प्रैक्टिकल इम्तिहान को पास कर लेते हैं तभी उन्हें शिक्षक बनाया जाना चाहिये। उसी तरह परीक्षा बोर्डों और काउंसिल मेंबर्सों की योग्यता जांचने के लिए भी कई स्तर के परीक्षाओं की व्यवस्था होनी चाहिये और उन्हें बर्खास्त करवाने का पूरा अधिकार छात्र व अभिभावकों के पास होना चाहिये। इसके लिए शिक्षा विभाग को सभी छात्र और उनके अभिभावकों को शिकायत के लिए एक सुलभ कॉन्टेक्ट नम्बर उपलब्ध करवाना चाहिये जिस पर छात्र व अभिभावक किसी भी शिक्षक या शिक्षा अधिकारी की शिकायत सीधे तौर पर शिक्षा मंत्रालय से कर सकें। शिकायतों के अनुरूप किसी भी शिक्षक या शिक्षा अधिकारी के दोष साबित होने पर उन्हें तुरंत बर्खास्त करने की व्यवस्था होनी चाहिये। शिक्षा व्यवस्था में उत्कृष्टता लाने के लिए शिक्षा विभाग को अधिक सक्रिय और पारर्दशी होने की जरूरत है।
अगर परीक्षा में उतीर्ण छात्रों के प्रतिशत पे गौर किया जाये तो इस वर्ष के बिहार और असम के दसवीं और बारहवीं के नतीजे बहुत ही निराशाजनक हैं। जहां एक और बिहार में इंटर के परिणाम चौंकाने वाले हैं तो वहीं असम में भी दसवीं के नतीजों ने सभी को हैरान कर रखा है। दोनों ही राज्यों में उतीर्ण छात्रों से अधिक असफल छात्रों के नाम सामने आये हैं। दोनों ही प्रदेशों में परीक्षा परिणामों से छात्रों के बीच हतासा का माहौल है और कहीं ना कहीं इसके लिए वे शिक्षक भी जिम्मेदार हैं जो बारह महिनों में अपने छात्रों को सिलेबस का बस तीस प्रतिशत हिस्सा भी नहीं सिखा पाये। और इस चूक के लिए ऐसे शिक्षकों पे सख्त कार्यवाई की जानी चाहिये तब जाकर कहीं देश की शिक्षा व्यवस्था सुधरेगी। शिक्षा विभाग में सकरात्मक परिवर्तन के लिए आम नाकरिकों को भी सामने आने की जरूरत है क्योंकि अभिभावकों के सहयोग के बिना शिक्षा के स्तर को सुधार पाना सरकार के लिए आसान नहीं होगा। ऐसे में हमें अपने मन में एक बात गांठ बांध लेनी होगी कि आज के दौर में शिक्षा व्यवस्था की नाकामी ही हमारे लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है और अब हम सबको मिलकर इससे मुक्त होने की जरूरत है।

मुकेश सिंह

मुकेश सिंह

परिचय: अपनी पसंद को लेखनी बनाने वाले मुकेश सिंह असम के सिलापथार में बसे हुए हैंl आपका जन्म १९८८ में हुआ हैl शिक्षा स्नातक(राजनीति विज्ञान) है और अब तक विभिन्न राष्ट्रीय-प्रादेशिक पत्र-पत्रिकाओं में अस्सी से अधिक कविताएं व अनेक लेख प्रकाशित हुए हैंl तीन ई-बुक्स भी प्रकाशित हुई हैं। आप अलग-अलग मुद्दों पर कलम चलाते रहते हैंl