गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल १

तुम्हें भी इश्क़ है ये तेरी तस्वीर कहती है
हां देखा है चाहत तेरी आँखों से बहती है ।

कहो न कुछ पर छुपा कुछ भी नहीँ सकते
तेरी खामोश नज़रों में हमारी पीर रहती है।

तेरी बेचैनियों को देखकर लगता है हमको
तेरे ख्वाबों में यादों की बँधी ज़ंजीर रहती है।

तेरे अहसास के साए आ पहुंचे हैं मुझ तक
तो मुमकिन है तेरे अहसास में हीर रहती है।

बनाया है खुदा तुमको तेरे सजदे में ये सर है
तेरे कदमों तले यूं तेरी ही तक़दीर रहती है ।

तेरा हरेक संदेशा पहुँच जाता है अब दिल तक
तेरे दिल की सदाओं में अजब तासीर रहती है।

कभी कुछ कह भी दो आकर ज़िंदगी जा रही है
मोहब्बत से भरे दिल पर टंगी शमशीर रहती है।

इश्क़ करते हो ‘जानिब’ तुम छुपाना ये नहीँ अच्छा
खबर तुमको नहीँ दिल में दर्द ए जागीर रहती है ।

— पावनी दीक्षित ‘जानिब’

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर