धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

आज हम जहां खड़े हैं वह गुरुकुल की देन हैः आचार्य बालकृष्ण

ओ३म्

पतंजलि योगपीठ के आचार्य बालकृष्ण का आर्ष गुरुकुल पौंधा के वार्षिकोत्सव में सम्बोधन-

आर्ष गुरुकुल पौंधा देहरादून का तीन दिवसीय 18वां वार्षिकोत्सव 4 जून, 2017 को सोल्लास सम्पन्न हो गया। प्रातः 9.30 बजे डा. सोमदेव शास्त्री व यज्ञाध्यक्ष डा. यज्ञवीर जी की अध्यक्षता में सामवेद पारायण यज्ञ की पूर्णाहुति सम्पन्न हुई। बड़ी संख्या में लोगों ने यज्ञ में भाग लेकर घृत व सामग्री की आहुतियां दी। यज्ञ के बाद गुरुकुल सम्मेलन आरम्भ हुआ जिसमें डा. रघुवीर वेदांलंकार, आचार्य वेदप्रकाश श्रोत्रिय, डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री, आचार्य धर्मपाल शास्त्री, डा. सोमदेव शास्त्री, डा. विनय विद्यालंकार, डा. अन्नपूर्णा सहित ठाकुर विक्रम सिंह, श्री दयाशंकर विद्यालंकार आदि के उद्बोधन वा व्याख्यान हुए। भजनोपदेशक मामचन्द जी सहित गुरुकुल के ब्रह्मचारियों के भजन भी हुए। गुरुकुल मंझावली के आचार्य श्री जयकुमार जी का अभिनन्दन सम्पन्न हुआ वहीं डा. सोमदेव शास्त्री लिखित महाभारत दर्शन’ पुस्तक का विमोचन एवं लोकार्पण भी हुआ। गुरुकुल के सभी भवनों का निर्माण कराने वाले वास्तुविद श्री सूद जी के सुपुत्र का भी सम्मान किया गया। इसके बाद पतंजलि योगपीठ के प्रमुख स्तम्भ और स्वामी रामदेव जी के साथी आचार्य बालकृष्ण जी का अभिनन्दन सम्पन्न किया गया। प्रथम स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती ने गायत्री मन्त्र का पाठ कराया। इसके बाद स्चामी चित्तेश्वरानन्द जी और स्वामी प्रणवानन्द जी ने आचार्य बालकृष्ण जी को एक शाल, माला व अभिनन्दन पत्र भेंट किये। आचार्य जी को डा. यज्ञवीर जी लिखित संस्कृत गीत का भी दो ब्रह्मचारियों ने गाकर पाठ किया। अपने सम्बोधन में स्वामी प्रणवानन्द जी ने कहा कि आचार्य बालकृष्ण जी हमारे गुरुकुल गौतम नगर में तीन वर्ष पढ़े। इनका आरम्भिक जीवन अच्छा व आदर्श रहा। स्वामी प्रणवानन्द जी ने अपने गुरुकुल पौंधा के ब्रह्मचारियों को कहा कि यदि वह गुरुकुल के नियमों का पालन करेंगे तो वह आचार्य बालकृष्ण जी के समान यशस्वी बनेंगे। स्वामी प्रणवानन्द जी ने कहा कि गुरुकुल कांगड़ी और गुरुकुल महाविद्यालय ज्वालापुर से गुरुकुलों की परम्परा आरम्भ हुई। गुरुकुलीय शिक्षा में दीक्षित स्नातकों में जितना यश आचार्य बालकृष्ण जी को मिला है उतना अन्य किसी को नहीं मिला। स्वामी जी ने बताया कि लेखन तथा व्याख्यान कला उनमें आरम्भ से थी। उन्होंने कहा कि आचार्य बालकृष्ण जी का पलड़ा सभी गुरुकुलों के अब तक के सफल स्नातकों में भारी है। स्वामी जी ने गुरुकुल मंझावली के उत्सव की चर्चा कर कहा कि आचार्य बालकृष्ण जी ने उन्हें शिकायत की थी कि आप अपने गुरुकुलों में बुलाते नहीं हैं? इसका उत्तर देते हुए स्वामीजी ने कहा कि क्या कभी कोई बाप अपने बच्चों को घर में आने का आमंत्रण देता है? स्वामी जी ने कहा कि धनंजय जी बालकृष्ण जी से छोटे हैं। उनकी प्रार्थना पर आचार्य बालकृष्ण जी अपने घर इस गुरुकुल में आयें हैं। स्वामी प्रणवानन्द जी ने आचार्य बालकृष्ण जी को आशीर्वाद देते हुए उनके यशस्वी होने की कामना की। उन्होंने कहा कि आप जैसा ब्रह्मचारी यदि गुरुकुल से निकलता है तो उससे गुरुकुलीय परम्परा सुदृण होती है। बालकृष्ण जी को उन्होंने अपने सभी गुरुकुलों का स्नातक बताया। उन्होंने बालकृष्ण जी को कहा कि आप सभी गुरुकुलों के लिए कोई भी आदेश जारी कर सकते हैं। स्वामीजी ने कहा कि जब गुरुकुल से प्रकाशित मासिक पत्रिका आर्ष ज्योति’ लड़खड़ा रही थी तो आपने उसे सहारा दिया। स्वामी जी द्वारा गुरुकुल मंझावली में किये गये 1.25 करोड़ आहुति वाले यज्ञ की चर्चा की जिसमें बहुत बड़ी धनराशि व्यय हुई थी। स्वामीजी ने बताया कि उसमें भी आचार्य बालकृष्ण जी ने 15 लाख रूपये का योगदान दिया था। इसके बाद आचार्य बालकृष्ण जी का सम्बोधन हुआ। इसे हम यथावत् प्रायः पूरा देने का प्रयास कर रहे हैं। हमारी अल्पज्ञता व असावधानी से इसमें कहीं कुछ भूल हो सकती है परन्तु हमने इसे अपनी पूरी शक्ति से जीवन्त रूप देने का प्रयास किया है।

पतंजलि योगपीठ के प्रख्यात विद्वान आचार्य बालकृष्ण जी आज गुरुकुल पौंधा देहरादून के निमंत्रण पर उसके 18वें वार्षिकोत्सव में पधारे। आपका गुरुकुल में पूरे उत्साह, प्रेम एवं श्रद्धा के साथ अभिनन्दन वा सम्मान किया गया। अपने सम्मान के उत्तर में आपने कहा कि मैं आज गुरुकुल के प्रांगण में आकर स्वयं को गौरवान्वित अनुभव कर रहा हूं। मुझे स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी के सान्निध्य में अपने शैशव वा बाल्यकाल को संवारने का अवसर मिला। उन्होंने बताया कि आरम्भ में उनकी रूचि यज्ञ में आहुति देने की थी। उन्होंने कहा कि यह यज्ञ की लगन जिसको जितनी लग जाए, अच्छा है। आपने स्वामी चित्तेश्वरानन्द सरस्वती जी के उन दिनों गुरुकुल गौतमनगर से जुड़ेयज्ञ संबंधी अपने संस्मरणों को भी सुनाया। मंच पर उपस्थित विद्वानों स्वामी धर्मेश्वरानन्द सरस्वती, डा. वेदप्रकाश श्रोत्रिय, डा. ज्वलन्त कुमार शास्त्री, डा. रघुवीर वेदालंकार, डा. सोमदेव शास्त्री, पं. सत्यपाल पथिक, डा. विनय विद्यालंकार, ठाकुर विक्रम सिंह, डा. यज्ञवीर जी, श्री दया शंकर विद्यालंकार, आचार्य धनंजय, श्री रवीन्द्र, श्री अजीत, श्री चन्द्रभूषण शास्त्री और डा. अन्नपूर्णा जी का नाम लेकर उन्होंने कहा कि मैं इन सभी विद्वानों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं, इन्हें नमस्ते व नमस्कार करता हूं।

गुरुकुल की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि यदि गुरुकुलीय परम्परा की बात होती है तो हमें अपनापन लगता है। आज हम जहां खड़े हैं वह गुरुकुल की देन है। हममें जो गुण हैं वह गुरुकुल की देन और जो अवगुण हैं वह हमारे हैं। उन्होंने कहा कि यदि स्वामी दयानन्द न हुए होते तो आज यहां जो आर्यों का जनसमूह दिखाई दे रहा है, वह दिखाई न देता। उन्होंने कुछ देर से आने का कारण बताते हुए कहा कि आज गंगा दशहरा है। हरिद्वार में सनातनी भाईयों की भीड़ के कारण मार्ग अवरुद्ध होने के कारण उन्हें यहां पहुंचने में विलम्ब हुआ। उन्होंने कहा कि मेरा कहीं देर से पहुंचने का संस्कार नहीं है। यदि हरिद्वार में मार्ग अवरुद्ध न होता तो मैं समय पर ही पहुंच जाता। आचार्य बाल कृष्ण जी ने कहा कि हमें ऋषि दयानन्द के ऋण को कम करने का प्रयास करना है। यदि हम अपना योगदान ईमानदारी से दें तो हम ऋषि ऋण से उऋण होने की ओर एक कदम आगे बढ़ सकेंगेे। आचार्य जी ने बताया कि पतंजलि योगपीठ संस्था का आरम्भ भी दान से हुआ। हमने अपनी पंतजलि योगपीठ को आत्मर्निभर वा स्वपोषित संस्था बनाने की कल्पना की थी। हमने पुरुषार्थ से संस्था को समर्थ बनाया। हमने अपने गुरुकुलों में अब तक लगभग 500 बालक बालिकाओं को विद्वान बनाया है। यदि आपके गुरुकुल के स्नातक गुरुकुल खोलते हैं तो हम उन्हें सहायता करेंगे। जब हम गुरुकुल में प्रविष्ट हुए तो गुरुकुल गौतमनगर की स्थिति अच्छी नहीं थी। मैं जिस परिवार से आया था वह एक सामान्य परिवार था। जब मैं 12 या 14 साल का था तो मेरे विचार थे कि मुझे घर से कुछ लेना नहीं है। ऐसी मेरी भावना थी। मैं भटक-भटक कर गुरुकुल गौतमनगर पहुंचा। गुरुकुल के मेरे जीवन में मेरे घर से कुछ धन, घृृत आदि पदार्थ नहीं आते थे जिसप्रकार और बच्चों के आते थे। हम जो दाल खाते थे वह दाल व्यापारियों द्वारा हमें दी जाने वाली वह दाल होती थी जिसे अनुपयोगी जानकर वह सड़क पर फेंक देते थे। इस दाल में धूल मिट्टी सहित सभी प्रकार की दालें मिली होती थी जिनका विक्रय मूल्य शून्य होता था। इस दाल से धूल मिट्टी को साफ कर उसे उबाल कर हम खाते थे। इसमें घृत व तेल की तो बात क्या बताऊं, इसमें नमक भी प्रायः नहीं होता था। कई बार तो दाल दाल न होकर उसके पानी से ही निर्वाह होता था। ऐसी स्थिति में हम पले व बड़े हुए। एक बार हमारे आचार्य हरिदेव जी जो अब स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती हैं, हमें आर्यसमाज दीवानहाल, दिल्ली ले गये। आचार्य जी ने मुझे देखा तो कहा कि तुम्हारे कपड़े गंदे हैं। मैं आरम्भ से ही स्वच्छता प्रेमी रहा हूं परन्तु मैं क्या करता? मैंने आचार्य जी को सत्य कहा कि मेरे पास अपने वस्त्रों को धोने के लिए साबुन नहीं है। फिर मुझे साबुन का आधा टुकड़ा मिला। इस प्रकार हम अपने कपड़े चमकाते थे। उन दिनों हमारे जीवन में अभाव की पराकाष्ठा थी। वहां से हमने अपना जीवन आरम्भ किया। अपने जीवन की सत्य बातों को बताने में मैंने कभी संकोच नहीं किया। आज हमारी गणना दुनियां के समृद्ध लोगों में होती है परंतु आज भी मेरी धोती फटी हुई है। यह कहकर उन्होंने अपनी फटी धोती की ओर संकेत भी किया। उन्होंने कहा कि पृथिवी में पदार्थो के क्षय का नियम तो कार्य कर ही रहा है। हमें तो जीवन के उत्थान व पतन दोनों स्थितियों में समभाव से रहना है। आचार्य बालकृष्ण जी ने तुलसीदास जी पंक्ति पराधीन सपनेहू सुख नाही।’ का उच्चारण किया। इसकी उन्होंने व्याख्या भी की। उन्होंने कहा कि आप मुझे धूप की गर्मी में बैठा दीजिए मुझे कोई परेशानी नहीं होगी। आचार्य जी ने कहा कि मैं आजकल एसी में बैठता हूं परन्तु एसी का सीमित प्रयोग ही करता हूं। मुझे आज भी जंगल में विचरण करना अच्छा लगता है। यही हमारी ताकत है।

आचार्य जी ने कहा कि आज हमारी पतंजलि पीठ से देश के लगभग 1 लाख से अधिक परिवारों का पालन होता है। भगवान ने हमें इसका निमित्त बनाया है। उन्होंने श्रोताओं को कहा कि हमें यह प्रयास करना है कि जब हम संसार से जायें तो परमात्मा से कह सकें कि आपने हमें जिस काम के लिए बनाया था, हमने वह काम किया है। आचार्य जी ने कहा कि जो भी कार्य करें, उसे अच्छी तरह से करें। हृदय में ऋषि परम्परा के प्रति श्रद्धा व समर्पण का भाव रखे। स्वामी दयानन्द जी का उल्लेख कर उन्होंने कहा कि उनके विचार थे कि वह ऋषियों की तुलना में कुछ नहीं हैं। ब्रह्मा से जैमिनी ऋषि की परम्परा में वह एक साधारण से विद्वान हैं। ऋषियों की परम्परा में तो हम कुछ भी नहीं हैं। ऋषियों की विद्या की तुलना में हमारी विद्या कुछ भी नहीं है। मैं सांसारिक कोई सुख नहीं चाहता हूं। मैं सोचता हूं कि हम ऋषियों के अनुगामी बन जायें तो यह हमारे लिए बहुत होगा। आचार्य जी ने कहा कि वह संवेदनशील हृदय वाले हैं। उनके हृदय में संवेदनायें भरी हुई हैं। उन्होंने कहा कि बचपन में हम एक पंक्ति सुनते व बोलते थे जिसमें कहा जाता था कि ‘‘अरब से आयेंगे पत्र जिसमें यह लिखा होगा कि गुरुकुल का एक ब्रह्मचारी हलचल मचा रहा है।” उन्होंने कहा कि यह काम अब गुरुकुलों से होना आरम्भ हो गया है। आचार्य जी ने बताया कि स्वामी रामदेव जी के साथ वह अरब देश की यात्रा पर गये थे। वहां स्वामी रामदेव जी ने लोगों को सूर्य-नमस्कार कराया। हमें कहा गया कि हम अरब में ओ३म्’ नहीं बोल सकते। अगले दिन स्वामी जी ने वेद मन्त्रों के साथ ओ३म् का उच्चारण किया और कहा कि हमें गिरिफ्तार करना है तो कर लो। आज विदेशों में वेदों को जीवित रखने की परम्परा का आरम्भ हो गया है। वहां इस कार्य को करने के लिए आर्यसमाजे हैं। उन्होंने कहा कि दुनियां में सर्वत्र वेदाध्ययन की परम्परा बढ़ रही है।

आचार्य बालकृष्ण जी ने कहा कि हमारा सौभाग्य है कि हम वेद, आर्यसमाज और गुरुकुल से जुड़े हैं। आचार्य जी ने श्रोताओं को सूचित किया कि उन्होंने कल देवप्रयाग में आपदा पीड़ितों के 100 से अधिक अनाथ बच्चों के लिए एक गुरुकुल आरम्भ किया है। आचार्य जी ने प्रश्न किया कि सृस्कृत पढ़ने से क्या होगा? इसका उत्तर आपने यह कह कर दिया कि मैंने जो भाषा पढ़ी है वह संस्कृत भाषा ही पढी है। मैं 50-60 देशों का भ्रमण कर आया हूं। मैंने वहां काम भी किया है। हम आज जो भी हैं वह संस्कृत की देन है। गुरुकुल ने हमें जीवन में संघर्ष करना सिखाया है और अच्छे संस्कार दिये। ऋषि दयानन्द के जीवन से हमें शक्ति मिली है। आचार्य जी ने मोदी जी की रूस यात्रा की चर्चा की। उन्होंने कहा कि रूस से एक प्रतिनिधि मण्डल पतंजलि योगपीठ आया। उनके एक सदस्य ने बताया कि उसने पैसे कमाने की विद्या को पढ़ा है और कहा कि उसे पता ही नहीं था कि पैसा कमाने की विद्या ने अब पैसा कमाना बन्द कर दिया है। उनका इशारा शायद स्वामी रामदेव जी और आचार्य बालकृष्ण जी की सफलता व कार्यों पर था। आचार्य जी ने कहा कि अंग्रेजी के स्कूलों में लूट मची हुई है उससे बच्चों के माता-पिता कर्जदार हो रहे हैं और बच्चों के जीवन में निराशा उत्पन्न हो रही है। आचार्य जी ने कहा कि हमारे साथ अंग्रेजी पढ़े बहुत लोग हैं जो हमारा करते हैं। यह संस्कृत की महत्ता व उसकी प्रासंगिकता को प्रकट करता है।

आचार्य बालकृष्ण जी ने आगे कहा कि हमें गुरुकल परम्परा से सब कुछ मिला है। आचार्य जी ने सभा में भारी संख्या में उपस्थित श्रोताओं को कहा कि आप अपने बच्चों को अच्छे संस्कार दें। उन्हें आप आर्यसमाज के सत्संगों व गुरुकुलों में ले जायें। अधिक व्यस्त हों तो रविवार के दिन तो जा ही सकते हैं। आचार्य जी ने कहा कि स्कूली शिक्षा का जीवन में 20 प्रतिशत ही महत्व है जबकि गुरुकुलीय शिक्षा का महत्व 80 प्रतिशत है। जीवन में आर्यसमाज और गुरुकुल से जुड़ेंगे तो यह आपके बहुत काम आयेगा। आचार्य जी ने विश्व विद्यालय अनुदान आयोग की चर्चा की और कहा कि उनके द्वारा मुझसे पूछा गया कि यूजीसी आज के समय में क्या कर सकता है? इस पर आचार्य जी ने गांवों में रहने वाले लोगों की चर्चा कर कहा कि यदि आप किसी गांव में चले जायें तो वहां का एक निर्धन व्यक्ति भी आपको सम्मान देगा, आपको बैठायेगा और पीने के पानी तो देगा ही। आपसे आपकी कुशल क्षेम भी पूछेगा। आचार्यजी ने कहा कि शहरी जीवन में यह बातें पूरी तरह से नदारद हैं। उन्होंने कहा कि शहरों में लार्ड मैकाले की परम्परा चल रही है जिसमें भारतीय संस्कृति एवं इससे जुड़े अनेक मानवीय पहलू नदारद हो गये हैं। हमारे भारतीय परिवारों में यह परम्परायें यदि कुछ जीवित हैं तो इसका कारण घरों की हमारी मातायें हैं जो उनका पोषण करती हैं। उन्होंने कहा कि आप स्कूल व कालोजों में पढ़कर डिग्रीधारी तो बन सकते हैं परन्तु संस्कारवान नहीं। इसलिए आप गुरुकुलीय परम्परा को आगे बढ़ायें।

आचार्य जी ने बताया कि वैदिक शिक्षा के प्रसार हेतु प्रधानमंत्री जी के साथ मिलकर वैदिक शिक्षा बोर्ड गठित करने के प्रयास हो रहे हैं। यह काम निकट भविष्य में सफल होगा। आप हमें अपनी शुभकामनायें देते रहें। हम गुरुकुल का ऋण महसूस करते हैं। इसलिए हम गुरुकुलों को बढ़ा रहे हैं। आचार्य जी ने कहा कि मैं अपनी पतंजलि योगपीठ संस्था का हिस्सा हूं। परमात्मा ने हमें इसके द्वारा संचालित कामों को करने कराने का निमित्त बनाया है। आचार्य जी ने संकोचपूर्वक कहा कि परमात्मा ने हमें 1 लाख से अधिक परिवारों को रोजगार के साधन प्रदान करने का निमित्त बनाया। उन्होंने बताया कि वह अपने कर्मचारियों को प्रतिमाह 15 से 20 करोड़ वेतन बांटते हैं। आचार्य जी ने मल्टी नैशनल कम्पनियों के षडयंत्रकारी कार्यों की चर्चा भी की और उनके व उनके सहयोगियों द्वारा पतंजलि योगपीठ के अच्छे कामों को बदनाम करने के प्रयत्नों का खुलासा किया। आचार्य जी ने कहा कि हम पूरी ईमानदारी से काम कर रहे हैं। हम जानपूझकर कभी कोई गलती नहीं करेंगे। अनजाने में कोई गलती हो सकती है। आचार्य जी ने कण्ठ-लंगोट की चर्चा कर कहा कि एमएनसी में उन्होंने कहा कि हमें कण्ठ-लंगोट धारण करने की आवश्यकता नही अपितु सदबुद्धि व पुरुषार्थ की आवश्यकता है। हमारा काम धोती पहन कर हो सकता है। उन्होंने बताया की आक्सफोर्ड में भी हमारी चर्चा व सराहना होती है। हम जो कार्य कर रहे हैं उस पर हमारी भावी पीढ़ी अभिमान करेगी।

आचार्य जी ने कहा कि हमने देश में एमएनसी की जड़े हिलायीं हैं। आचार्य जी ने कहा कि लोग हमसे कहते थे कि आर्यसमाज में कोई बड़ा नहीं हुआ, आर्यसमाज को छोड़कर बड़ा हुआ है। हमने लोगों की इस मिथ्या धारणा को निर्मूल कर दिया है। आचार्य जी ने कहा कि हम दूसरों की पूजा पद्धतियों की आलोचना न करें अपितु हम सन्ध्या व हवन करके अपने जीवन को एक सिद्धान्तनिष्ठ जीवन बनायें। उन्होंने कहा कि अपने सिद्धान्तों, विचारधारा व मान्यताओं पर दृण रहिये। जो मन्दिर जाता है उसकी आलोचना न कर आप नियमित सन्ध्या व हवन कर अपना व दूसरों का कल्याण करें व सबको इन्हें करने की प्रेरणा दें साथ ही वेदों की कल्याणकारी शिक्षाओं का प्रचार भी करें। हम जो अच्छे काम करेंगे तो दूसरे हमें देखकर प्रभावित होंगे व उन्हें अपनायेंगे। पतंजलि योगपीठ में हमारे यहां दैनिक यज्ञ होता है और निर्माणशालाओं में साप्ताहिक यज्ञ होता है। हम आर्यसमाज व वेद परम्परा में रहकर काम कर रहे हैं। हमें अपनी गुरुकुल व वेद परम्पराओं पर गर्व है। अपने सम्बोधन को विराम देते हुए आचार्य बालकृष्ण जी ने गुरुकुल को 21 लाख रूपये दान देने की घोषणा की। इसी के साथ उनका उद्बोधन समाप्त हो गया।

गुरुकुल के वार्षिर्कोत्सव के उपलक्ष्य में 29 मई से 1 जून तक वैदिक विद्वान डा. सोमदेव शास्त्री के सान्निध्य में ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका का स्वाध्याय शिविर सफलतापूर्वक चला। 2 जून से 4 जून, 2017 तक वार्षिकोत्सव का सफल आयोजन हुआ। देश के अनेक दूरस्थानों से बड़ी संख्या में लोग सोत्साह उत्सव में पधारे। कई धर्मपे्रमी अनेक स्थानों से पूरी बसे लेकर आये थे। पांच एकड़ का उत्सव स्थल जनसमुद्र की भांति प्रतीत हो रहा था। अनेक पुस्तक व यज्ञ सामग्रियों के विक्रेताओं ने भी दूर दूर से आकर अपने स्टाल लगाये। भोजन की अच्छी व्यवस्था की गई थी। पं. सत्यपाल पथिक जी के भजन सुनने को नहीं मिले। भीषण गर्मी ने भी श्रोताओं व आगन्तुकों को काफी विचलित किया। अनेक शीर्ष विद्वानों एवं ऋषिभक्तों की बड़ी संख्या में उपस्थिति निराशा दूर कर आशा का संचार कर रही थी। अति ओ३म् शम्।

मनमोहन कुमार आर्य