कहानी

सौदागर !

रजनी ने अभी घर में कदम रखा ही था कि घर से कुछ शोर सुनाई दे रहा था, रजनी समझ चुकी थी सेठ आए होंगे पापा से पैसे मांगने। पापा ने रजनी की पढ़ाई के लिए और भैया के विदेश जाने के लिए उधार रकम जो ली थी। भैया तो नौकरी के बाद विदेश ही रहना पसंद करने लगे। कभी लौट कर मिलने भी नहीं आए न ही हाल चाल जाना कि इतनी कम कमाई में पापा ने उनको ऐसा अवसर कहां से दिलाया कि आज वो बढ़िया नौकरी कर रहे हैं, और फिर मां के अचानक बीमार होने पर जो रुपए जमा किए थे उधार चुकाने के लिए वो तो खर्च हो चुके थे। पापा की दिन रात की मेहनत भी इतने पैसे इतनी जल्दी नहीं इकट्ठा कर पाई थी। रजनी का बस चलता तो वो पढ़ाई छोड़ कर नौकरी कर पापा का साथ देती पर पापा की मेहनत बेकार जाती अपने बच्चों को सफल बनाने की ! खैर रजनी को सच्चाई का सामना करना था।

जिनसे उधार लिया था वो सेठ कोई बात मानने को तैयार नहीं था। पापा की ईमानदारी को देखते हुए ही उधार दिया था, पर अब वो पापा को और मौहल्लत देने को तैयार नहीं था। पापा को अपनी मेहनत पर विश्वास था पर मां का ईलाज भी जरुरी था। वो कुछ और समय में रुपए इकट्ठे कर के सेठ को देने को तैयार थे। अब मां की बीमारी की बात वो नहीं मान रहा था और अब वो जिद्द पर आ गया था कि या तो रुपए अभी वापिस करो या अपना घर मेरे नाम कर दो, फिर रजनी को अंदर आते देखा तो बोला- बेटी तो बहुत प्यारी है। चलो रामनाथ, एक सौदा कर लो, मेरे बेटे की पहली पत्नी मर गई है उसका एक बेटा है अपनी बेटी की शादी उससे कर दो तो सारा कर्ज माफ कर दूंगा और यह भी अच्छी ज़िन्दगी जीएगी।

पर रामनाथ अपनी ज़िम्मेदारियों के आगे अपने बच्चों के अरमान नहीं तोड़ सकते थे। उनको सेठ का सौदागर वाला रूप पसंद नहीं आया और सेठ की इस तरह की बातें सुनकर बहुत दुख हुआ कि मैने सेठ से रुपए उधार क्यों लिए इससे अच्छा बैंक से लोन ले लिया होता पर रामनाथ सोचता था कि सेठ समझदार और अच्छा व्यापारी है पर वो ऐसा सौदागर भी है यह वो नहीं जानता था। अपने बच्चों पर और उनकी काबलियत पर उसको भरोसा था, भले ही बेटे ने रामनाथ के विश्वास को तोड़ा था पर रामनाथ अब भी मानता था कि मैने अपना फर्ज तो पूरा किया आगे बच्चों की मर्जी उनको मैं कैसे बाँध सकता हूँ। रजनी डर गई थी सेठ की बाते सुनकर उसने एक पल के लिए सोचा कि क्या करूंगी अच्छी नौकरी कर के जब पापा इतने परेशान हैं, सेठ तो पापा को जीने नहीं देंगे बाते सुनाकर मां भी बीमार हैं, पापा कैसे करेंगे।

वो शादी के लिए तैयार हो गई पर रामनाथ ने रजनी को डांट कर अंदर भेज दिया और सेठ को कहा कि ठीक है आप मेरा घर ले लिजिए इसकी कीमत आपको जो रुपए देने हैं उससे थोड़ी सी ज्यादा है आप हमें पीछे वाला बस एक कमरा दे देना हम उसी में अपना गुज़ारा कर लेंगे। मैं आज ही कागज़ी कारवाई पूरी कर दूंगा। रजनी और मां तो रोने लगे। पापा ने एक एक तिनका जोड़ कर यह घर अपनी दिन रात की मेहनत से बनाया था पापा ऐसा मत करो। पर बेटी की खुशियों के आगे रामनाथ को घर की कोई कीमत नहीं दिख रही थी। रामनाथ ने तो सारी ज़िन्दगी मेहनत से गुज़ार दी थी और खुद जो मुकाम हासिल नहीं कर सका था घर की मजबूरियों के कारण, वह नहीं चाहता था कि उसके बच्चों को कोई कमी महसूस हो या कोई अवसर न मिले।

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |