उपन्यास अंश

इंसानियत — एक धर्म ( भाग — पंद्रहवां )

असलम से मिलकर  राखी के साथ वकिल साहब पुनः अपने दफ्तर में लौट आये जो कचहरी से ही लगा हुआ था । हवलदार ने उन्हें बताया था कि असलम को लगभग दो बजे अदालत में पेश किया जाएगा जहां से उसे रिमांड पर लिया जाएगा ।
जैसा कि सभी पाठकों को ज्ञात होगा ही भारतीय कानून के अनुसार किसी भी आरोपी या मुजरिम को चौबीस घंटे से अधिक समय तक किसी भी पुलिस चौकी या पुलिस स्टेशन में पुलिस हिरासत में नहीं रखा जा सकता । चौबीस घंटे के अंदर हिरासत में लिए गए मुजरिम को अदालत में पेश करके उसके गुनाह की गंभीरता साबित करके पुलिस उस आरोपी को रिमांड अथवा अपनी हिरासत में रखने की मांग करती है जिसे जज अमूमन अपराध की गंभीरता और उस केस की आवश्यकता पर ध्यान देते हुए संबंधित मुजरिम को पुलिस रिमांड में दिए जाने का फैसला सुनाते हैं । इस पूरी प्रक्रिया में पुलिस की कार्यशैली और अपराध की गंभीरता पर विशेष ध्यान दिया जाता है ।
दफ्तर में आते ही पंडित जी कुछ लिखने में व्यस्त हो गए और राखी बेचैनी से बार बार अपनी घड़ी देखने लगी । घड़ी में घण्टे की सुई एक और दो के बीच कहीं रुकी हुई सी लग रही थी जबकि मिनट की सुई बड़ी तेजी से अपना सफर पूरा करने का प्रयास कर रही थी । ज्यों ज्यों वह बड़ी सुई घड़ी में दर्शाए बारह के अंक के करीब पहुंच रही थी राखी के हृदय की धड़कनें भी बढ़ती जा रही थीं । उत्सुकता और उत्तेजना का अनोखा मिश्रण उसके मनोभावों को उसके चेहरे पर नमूदार कर रहे थे । उसके मनोभावों को ताड़ने में पंडित जी को तनिक भी देर नहीं लगी । उन्होंने राखी को बाहर जाकर अदालत परिसर से दस दस रुपये के 4 कोर्ट फी स्टैम्प लाने के लिए कहा और पुनः कुछ लिखने में व्यस्त हो गए ।
 राखी ने बाहर निकलकर अदालत परिसर में प्रवेश किया । समय लगभग पौने दो बज रहे थे । अदालत के प्रांगण में एक तरफ पुलिस की नीले रंगों की बड़ी सी पिंजरेनुमा गाड़ी खड़ी थी जिसमें से कैदी निरीह भाव लिए अपने परिजनों को निहार रहे थे । उनमें कुछ खूंखार और मंझे हुए अपराधी किस्म के कैदी भी थे जो लापरवाही से लोगों को देख रहे थे तो कुछ बेशर्मी से मुस्कुरा  रहे थे मानो कह रहे हों  ‘ यह सब तो हमारा रोज का काम है ‘ ।
 राखी उत्सुकता से उस पिंजरेनुमा गाड़ी के समीप गयी शायद असलम दिख जाए लेकिन वह नहीं दिखा । निराश सी राखी यह सोच कर डर गई ‘ कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे आज पेश ही नहीं किया जाए ‘ । लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है ? तभी गाड़ी के नजदीक दो बंदूकधारी हवलदार उसे दिखाई पड़े । उसने सीधे जाकर उनमें से एक से पुछा ” भैया ! यह गाड़ी रामपुर थाने से ही आयी है न ? “
 उसका यह बचकाना सा सवाल सुनकर ही वह हवलदार मुस्कुरा पड़ा ” मैडम ! यह आपको थाने की गाड़ी नजर आ रही है ? यह रामपुर जिला जेल की गाड़ी है और इनमें वो कैदी हैं जो अपने अपने मुकदमे के संबंध में पेशी के लिए अदालत लाये गए हैं । पेशी के बाद इन सभी को फिर जिला कारागार में भेज दिया जाएगा । थाने के कैदी थाने की जीप में या दूसरे निजी साधनों से भी आ सकते हैं । “
 राखी वहां से निकलकर एक स्टैम्प वेण्डर से दस रुपये वाले 4 कोर्ट फी स्टैम्प लेकर वकिल साहब के दफ्तर की ओर चल पड़ी । दो बजने में अभी भी पांच मिनट शेष थे कि तभी तेजी से एक पुलिस जीप अदालत परिसर में दाखिल हुए । राखी ने देखा जीप पर लिखा हुआ था ‘ पुलिस जीप  थाना – रामपुर  ‘
  हड़बड़ी में दफ्तर में प्रवेश करते हुए राखी  पण्डित जी को रामपुर थाने की जीप के अदालत में आ जाने के बारे में बताना ही चाहती थी कि वकिल साहब के सामने बैठी एक बला की खूबसूरत औरत जिसकी आयु लगभग पच्चीस वर्ष होगी को देखकर खामोश रह गयी ।
 मुस्कुराते हुए वकिल साहब ने राखी से उस युवती का परिचय कराया ” राखी बेटा ! इनसे मिलो !  ये हैं रजिया असलम शेख ! “
 राखी के मनोभावों को पढ़ते हुए वकिल साहब ने आगे कहा ” तुम ठीक समझ रही हो बेटा ! यह तुम्हारे असलम भैया की श्रीमती जी ही हैं । मैंने ही फोन करके इन्हें यहां बुलवाया था ।  चलो ! अब वक्त नहीं है हमारे पास । बाकी बातें फिर अभी तो काम पहले देखना है । चलो ! “
 दफ्तर से बाहर निकलते हुए वकिल साहब के हाथों में एक फाइल थी जो उन्होंने सीने से लगा रखी थी । तेज कदमों से अदालत की तरफ बढ़ते हुए पंडित जी का साथ देने के लिए राखी और रजिया को हौले हौले दौड़ना पड़ रहा था लेकिन फिर भी दोनों युवतियां बखूबी उनके पीछे पीछे चलती हुई अदालत परिसर में पहुंच गई ।
 माननीय जज के कक्ष में प्रवेश करते हुए वकिल पंडित जी ने झुक कर कमरे में देखा । शायद अभी जज साहब नहीं आये थे । राखी और रजिया को दर्शकों के लिए बने बेंच पर बैठने का ईशारा करके वकिल साहब सबसे आगे की कतार में दुसरे अन्य वकीलों के साथ बैठ गए । बैठने से पहले उन्होंने जज की कुर्सी के नजदीक बैठे एक अधिकारी पेशकार साहब को एक कागज दिया जिसे उन्होंने असलम की फाइलों के मध्य रख लिया ।
 तभी कक्ष में खुसर फुसर शुरू हो गयी और फिर अचानक सन्नाटा फैल गया । अपने चैम्बर से निकल कर  जज रमाकांत दुबे जिनकी अवस्था लगभग पैंतीस वर्ष ही होगी अपना आसन  ग्रहण कर चुके थे । जज रमाकांत दुबे के सम्मान में कक्ष में उपस्थित सभी लोग उठ खड़े हुए थे और फिर उनके बैठते ही सब अपनी अपनी जगह बैठ गए ।
 जज साहब ने अदालत की कार्यवाही चलाने का इशारा अपने बगल में बैठे अधिकारी को किया । उसने उठकर कुछ कागजों का पुलिंदा जज साहब जे सामने रख दिया । उन कागजों पर सरसरी नजर डालते हुए जज साहब ने थाना रामपुर पुलिस की पुकार लगाने का ईशारा अपने पीछे खड़े कर्मचारी से किया । उस कर्मचारी ने वहीं से थाना रामपुर पुलिस की गुहार लगाई जिसे सुनकर अदालत का अर्दली अदालत कक्ष के दरवाजे पर खड़े होकर ”  थाना रामपुर पुलिस हाजिर हो …..” की गुहार लगाने लगा ।
 उसकी गुहार खत्म होते ही दरोगा पांडेय जी ने कक्ष में प्रवेश किया । झुक कर दुबेजी के प्रति सम्मान प्रकट करते हुए पांडेय जी जज साहब के सामने पहुंचे । उनके पीछे ही तीन मुजरिम और दो हवलदारों ने भी कक्ष में प्रवेश किया । अदालत की कार्यवाही अब शुरू हो चुकी थी तभी कुछ पत्रकारों ने भी कक्ष में प्रवेश किया और अपने लिए निर्धारित स्थान पर बैठ गए ।
 अदालत ने पहले दोनों मुजरिमों की  सुनवाई करते हुए उनके रिमांड की अवधि बढ़ा दी । सरकारी वकील महाजन भी अपना कार्य बखूबी किये जा रहे थे । अब असलम के मामले की सुनवाई शुरू होने वाली थी कि पत्रकारों ने अपने मोबाइल फोन ऑन करके रिकॉर्डिंग मोड़ में डालके रख दिया । सुनवाई शुरू हूई । पांडेय जी ने आगे आगे बढ़ कर असलम और उसके द्वारा किये गए अपराध की जानकारी जज साहब को दी । हालांकि यह सभी कुछ लिखित रूप में जज साहब के सामने मौजूद था लेकिन फिर भी पांडेय जी ने संक्षेप में घटना चक्र और असलम के कबूलनामे  के बारे में उन्हें अवगत कराया और तीन दिन के पुलिस रिमांड की मांग की । सामने रखे कागजों पर सरसरी निगाह डालते हुए जज दुबे जी की निगाह वकिल पंडित जी द्वारा दाखिल असलम की जमानत अर्जी पर पड़ी ।
 जमानत की अर्जी पर गौर करते हुए जज साहब सरकारी वकील महाजन से मुखातिब होते बोले ” मुजरिम की तरफ से जमानत की दरख्वास्त लगी हुई है । बताइए उसे जमानत क्यों न दे दिया जाए ? “
 अदालत में सन्नाटे का साम्राज्य पसरा हुआ था । सभी को सरकारी वकिल और पंडित जी के बीच गर्मागर्म बहस की उम्मीद थी । जमानत की अर्जी के बारे में खुलासा होते ही पत्रकारों ने मोबाइल में संदेश टाइप करना शुरू कर दिया ताकि दर्शकों को ब्रेकिंग न्यूज़ दिया जा सके ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।