हास्य व्यंग्य

व्यंग्य : चंद्रकांता में डुबकी लगा रही राजनीति

भारत की राजनीति इस समय किसी फंतासी सीरियल से कम नहीं है। एक टीवी पर बाबू देवकी नंदन खत्री के उपन्यास पर आधारित सीरियल चंद्रकांता बहुत लोकप्रिय हो रहा है। भारत की राजनीति भी वर्तमान में चन्द्रकान्ता में डुबकी लगा रही है। रहस्य, रोमांच, भय, हंसी, भयाक्रांत, युद्ध, बदला, एय्यारी, प्रेम, मोहब्बत और तिलिस्म सी घटनाएं इस समय राजनीति में घटित हो रही हैं। इससे कोई राजनीतिक दल अछूता नहीं है। गैर जरूरी मुद्दे हम पर हावी हो रहे हैं। मानव की बुनियादी जरूरत रोटी, कपड़ा और मकान के स्थान पर बीफ, नकल, मंदिर, हिंसा, पत्थरबाजी, बाहुबली और गाय आ गई है। चहुंओर एक बार फिर घृणा की राजनीति मानव मूल्यों पर हावी हो गई है।
भाजपा को अपना राष्ट्रपति बनाने की चिंता सता रही है तो कांग्रेस विपक्ष को लामबंद करने में जुटी है। कहीं बाप बेटे और भाई में जूतमपैजार हो रहा है तो कहीं बाप बेटों पर छापे पड़ रहे हैं। नेता आतंकी होकर अपने घर भरने में लगे हैं। विश्वास को तिलांजलि दे दी गई है। सभी जगह एक दूसरे को चुनौतियां दी जा रही हैं। जादू, टोने, टोटके और भ्रम का बाजार गरमाया हुआ है। बाहुबली और दंगल में कमाई में कौन आगे निकल रहा है। रजनीकांत राजनीति में कब कूद रहे हैं। अमिताभ की विज्ञापन की कमाई कितनी हो रही है। इनके आगे हम निकल ही नहीं पा रहे हैं। गरीब की रोटी की किसी को चिंता नहीं है। पेट भरने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ रहे हैं यह तो भूखा ही जानता है। ऐसा लगता है जैसे बाबू देवकी नंदन खत्री ने इसकी पटकथा भी चंद्रकांता की तरह पहले ही लिख दी थी। अब तो आज की इस फंतासी राजनीति पर किसी और धारावाहिक का इंतजार किया जा रहा है।

बाल मुकुन्द ओझा

बाल मुकुन्द ओझा

लेखन की शुरूआत विधिवत रूप से 1969 से शुरू हुई। जब चूरू में विद्यालयी हस्तलिखित पत्रिका के सम्पादन की जिम्मेदारी सौंपी गई। इसी वर्षे समाचार उद्घोषक भी नियुक्त किया गया। असल में यही वह समय था जब लेखन के प्रति रूचि जागृत हुई। समाचार पत्र पढ़ने का कार्य भी प्रारम्भ हुआ। 12वीं कक्षा में आते.आते पत्रकारिता का भूत सिर पर सवार हुआ। बीकानेर से प्रकाशित साप्ताहिक सप्ताहान्तए जोधपुर से प्रकाशित साप्ताहिक कंट्रोलरए देहरादून से प्रकाशित दैनिक जनता एक्सप्रेस में समाचार भेजने शुरू किये। कालेज में आते ही राजस्थान पत्रिका ने 1972 में चूरू में अपना संवाददाता नियुक्त किया। इसी दौरान सारिका से लेकर कादम्बिनी सरिता मुक्ता अरूण आदि पत्र पत्रिकाओं में लेख कहानियां और कविताएँ प्रकाशित हुई। 1979 आते.आते राजस्थान सरकार में सहायक जन सम्पर्क अधिकारी के पद पर नियुक्ति मिली। इस दौरान बीकानेरए कोटाचूरू सीकर झुंझुनू धौलपुर झालावाड़ होते हुए राजधानी जयपुर में सयुंक्त निदेशक के पद से फरवरी 2013 में राजकीय सेवाओं से निवृत्ति मिली। इस अवधि में हजारों समाचार लेख आदि लिखे जो विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए । लेखक की एक पुस्तक लोकतंत्र का पोस्टमार्टम 2017 में प्रकाशित हुई है। एक लघुकथा संग्रह भी साहित्यिक पूंजी में शामिल हुई जो हाल फिलहाल तक अप्रकाशित है। हांलाकि ये लघु कथाएँ विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में छप चुकी हैं। D -32, माडल टाउन, मालवीय नगर, जयपुर मो.- 9414441218