लघुकथा

लघु कथा – ‘आगे की सोच’

रसिक लाल ने कस्बे में कोल्ड वाटर सप्लाई का काम शुरू करने का इरादा अपने मित्रों को बताया तो उसके मित्रों ने उसका मजाक उड़ाते हुए कहा – ‘अरे रसिक! अपने कस्बे में छोटे-बड़े 18 तालाब हैं। जिनमें भरपूर पानी रहता है। गर्मीयों में भी पानी की किल्लत नहीं होती। तेरा यह वाटर सप्लाई वाला धंधा यहाँ नहीं चलने वाला।’
लेकिन रसिक लाल का व्यापारी दिमाग बहुत दूर की सोच रखे हुए था। वह अपने मित्रों की बातों से हताश नहीं हुआ। उसने वाटर सप्लाई के अपने काम में पूंजी निवेश करना आरम्भ कर दिया। दूर के किसी रिश्तेदार के माध्यम से उसने मंत्री जी से मेलजोल बढ़ाया और मंत्री जी के पत्नी का मुंह बोला भाई बन गया। अब वह किसी भी त्यौहार पर नहीं चूकता था, बहन को सुन्दर उपहार देने से। मंत्री जी से भी रसिक लाल का अच्छा तालमेल हो गया था।
अब रसिक लाल के पानी के संयत्र का कार्य भी पूरा हो चुका था। उसने उद्घाटन के लिए मंत्री जी को आमंत्रित किया था। मंत्री जी ने उद्घाटन किया और इस पानी के संयत्र के बारे में काफी कुछ कहा भी। इसका परिणाम यह हुआ कि मंत्री जी के कुछ चहेतों ने रसिक लाल के संयत्र से पानी मंगवाना शुरू कर दिया। लेकिन यह सप्लाई संयत्र के खर्चे भी पूरे नहीं कर पा रही थी।
एक दिन रसिक लाल मंत्री जी के घर गया। उसके चेहरे पर परेशानी की लकीरे साफ दिख रही थी। रसिक लाल की मुंह बोली बहन, मंत्री जी की पत्नी ने उससे इस परेशानी का कारण पूछा तो रसिक लाल ने उसे बतलाया कि उसका पानी वाला संयत्र काफी घाटे मंे चल रहा है। तभी मंत्री जी भी घर पर आ गए। मंत्री जी की पत्नी ने उन्हें रसिक लाल के कारोबार में हो रहे घाटे के बारे में बतलाया। मंत्री जी ने रसिक लाल से घाटे का करण पूछा तो रसिक लाल ने बलताया – ‘शहर के तालाब उसके कारोबार के घाटे का सबसे बड़ा कारण है। इन तालाबों से लोगों के पेयजल की आपूर्ति हो जाती है। कुछ लोग जो आपकी शर्म के कारण पानी खरीदते थे, उन्होने भी धीरे-धीरे पानी लेना बन्द कर दिया।’
मंत्री जी से अपने मुंह बोले साले का दर्द देखा नहीं गया। उन्हें रसिक लाल के कारोबार में हो रहे घाटे की जड़ को देख लिया था। उन्होंने निश्चय किया कि रसिक लाल के कारोबार को गति दी जाए और इसका आभास भी किसी को न हो। उन्होंने बैठक में शहर के सौन्दर्यकरण का प्रस्ताव पास करवाया जिसके अन्तर्गत शहर में 10 बड़े-बड़े पार्क बनाने की योजना पर कार्य किया जाना था और यह सभी पार्क शहर के तालाबों के पाट कर बनाए जाने पर सहमती बनायी गयी।
शहर के सौन्दर्यकरण की खुशखबरी को सुनकर जनता भी फूले नहीं समा रही थी। वह मंत्री जी के बड़े-बड़े होर्डिंग लगा कर उनका धन्यवाद व्यक्त कर रही थी।

— विजय ‘विभोर’

विजय 'विभोर'

मूल नाम - विजय बाल्याण मोबाइल 9017121323, 9254121323 e-mail : vibhorvijayji@gmail.com