गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

देख रहा हूँ आज तुझे मैं अपने उन निगाहों में

छोड़ गए तुम अंगुली को छिछले मन प्रवाहों में

याद करो न थी कोई खींचातानी मयखानों की

थी न कोई वला गिला नाहीं शिकन परवाहों में॥

आज खड़े हो लेकर डफ़ली बजा रहे उन तानों को

छोड़ दिया है ढबने जिसको किया नमन गुमराहों में॥

तौल रहे थे राग सभी मिल अपने अपनी सुरावली

बोल रहे तुम अब यह निर्गुण जुड़ें न गुन मनचाहों में॥

वाह सभी की बात निराली त्योहारी मतवाली धुन

खूब नचाए गाए मतलब चिलमन तन अफवाहों में॥

बैठ जुगाली करती गैया अपने खूँट पे नाच रही

लेकर करवट रात गुजरती है शुभ छन निर्वाहों में॥

गौतम दिन तो आए जाये गीत भले न दुहराएँ

गाकर खाकर नेकी निंदा भूल पतन तिराहों में॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ