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पागल कौन?

अरे ! यार रजत

“पता नहीं कब तक यूं ही जन्नत में हमारे पत्थरबाजी चलती रहेगी ,पता नहीं ऐसा क्या है वहां पर कि लोग कंप्यूटर और किताब के बजाए पत्थर उठा रहे हैं !!

क्या कमी है ?
वहां पर कि लोग देश के प्रति वह भावना नहीं रखते जो आप मैं और मेरे अंदर है”

“दिन प्रतिदिन पत्थरबाजी की घटना से मन आहत होता है और साथ में ही आतंकवादी घटनाएं मन में बहुत सारे प्रश्न उठाती हैं?
आत्म विभोर हो जाता हूं जब हमारे सैनिक हिमालय की गोदी में समा जाते हैं”
” हर रोज कोई न कोई सैनिक तिरंगे में लिपटा हुआ हिंदुस्तान के किसी कोने में जाता है ,कई बार तो मन करता है कि पाकिस्तान के साथ अब आर या पार हो ही जाना चाहिए!!?

भाई समीर ” हम सभी को पता है कि यह एक भौगोलिक मुद्दा है ,लेकिन वहां के नेता तो इसे राजनीति का मुद्दा बताते हैं ,अभी तुमने देखा ही होगा कि पाकिस्तान की जीत पर कैसे वहां के नेतागण पटाखे फोड़ रहे हैं और 6 पुलिसवालों की शहादत पर कोई नहीं जाता इफ्तार की पार्टी में सभी व्यस्त हैं ,
बड़ी ही घृणा होती है इन नेताओं से
#देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले सैनिकों के लिए उनके पास समय नहीं होता ”

रजत और समीर कुछ इस प्रकार से जम्मू और कश्मीर के हालात पर अपनी अपनी बात रख रहे थे,पार्क में बैठे हुए।

बड़े ही जोशीले स्वर में एक-दूसरे के सामने अपनी अपनी प्रतिक्रिया रख रहे थे ,तभी पड़ोस में रहने वाले दो लड़के जिनके आधे बाल सफेद ,आधे बाल काले ,कान के ऊपर से बाल गायब ।
तकरीबन 70 जगह से फटी हुई जींस ,पीले रंग की टी शर्ट, पर लिखा हुआ यो यो हनी सिंह । कान में इयरफोन लगा कर हाथ पैरों को इस तरीके से मार रहे थे जैसे #माता आ गई हो अंदर!!
अंधों के समान पहने हुए काले चश्मे, एक महाशय की लाल रंग की जींस की पेंट ,हरे रंग की टीशर्ट ,
तकरीबन ऐसा लग रहा था जैसे #तोता हो ।

दोनों पास में आए और रजत के चश्मे देख कर कहने लगे
” अरे !! ओ चश्मिश !!
तुम दोनों तो पागल हो पागल!!!
खामखा लगे रहते हो
मजे करो मजे!!?

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733