हास्य व्यंग्य

क्रिकेट और बैटिंग

उस दिन, मेरे वे अन्तरंग मित्र, जिनके साथ बचपन में क्रिकेट भी खेल चुका था, आते ही मुझसे पूँछ बैठे थे, “और क्या हाल-चाल है..बैटिंग-वैटिंग ठीक-ठाक चल रही है न..?” उनकी इस बात पर अचकचाते हुए मैं उन्हें देखने लगा। लगे हाथ वे कह बैठे थे, “भईया..पिच ठीक है, मौका मिला है..पीट लो..” अब तक मैं उनका मंतव्य समझ गया था। मुस्कराते हुए बोला, “हाँ यार…लेकिन, आजकल आरटीआई, सीबीआई, इनकमटैक्स और नेतागीरी टाइप की फील्डिंग में कसावट थोड़ी ज्यादा ही होती है..बड़ा बच-बचाकर चलना पड़ रहा है…” “अमां यार हम ये थोड़ी न कह रहे हैं कि हर बाल पर चौका-छक्का जड़ो..! वैसे भी तुम बैटिंग में कमजोर रहे हो…हाँ, एक-एक, दो-दो रन तो ले ही सकते हो..!” मेरे वे परम-मित्र अपनी इस सलाहियत के साथ मुस्कुराए भी।

इधर मैं चिंतनशील हो उठा था..नौकरी तो ज्यादातर बॉलिंग करने टाइप में ही गुजार दी है। मतलब, गेंदबाजी का ही ज्यादा अभ्यास रहा है और बैटिंग का कम, इसलिए फूँक-फूँक कर, इस नई-नई मिली पिच पर कदम रख रहा था। शायद मेरी इस कमजोरी को ही लक्षित करके मित्र महोदय ने मेरी ऊपरी कमाई पर टांट कसा होगा और इक्का-दुक्का रन लेते रहने की सलाह दे दिया होगा…अभी मैं अपने इसी विचार में खोया था कि उन्हें फिर बोलते सुना-

“देखो यार…घबड़ाना मत, सट्टेबाजी और फिक्सिंग का जमाना तो हईयै है…गेंदबाजी-फेंदबाजी तो चलती ही रहती है, इससे डरना क्या..! हाँ, थोड़ा-बहुत फिक्सिंग-विक्सिंग भी कर लिया करो।”

इसके बाद फिर मित्र जी, मुझे हड़काते हुए बोले थे-

“तुमने नाहक ही अब तक गेंदबाजी में समय नष्ट किया, आखिर कउन गेंदबाज टाटा-बिड़ला बन गया..? अपने सचिन को देखो, बैटिंग के कारण ही तो भारत रत्न ले उड़ा है..आम के आम और गुठलियों के दाम टाइप का पैसा और सम्मान दोनों झटक लिया…जबकि, वहीं गेंदबाज बेचारा पसीना बहाते-बहाते, पता नहीं कहाँ खो जाता है..! क्रिकेट हो या नौकरी, दोनों में बैटिंगइ का खेला होता है, बढ़िया पिच मिल जाए तो कायदे से ठोक लेना चाहिए और अगर तुम बढ़िया बैटर बन गए होते तो, तुम्हारी सात पीढ़ियाँ बैठ कर खाती, सम्मान ऊपर से मिलता। मैं तो कहता हूँ…इसीलिए अपने देश में बैटरों का ही जमाना है, जो जहाँ है वहीं जमे हुए बैटिंग कर रहे हैं..!!”

अब तक वे इत्मीनान से बैठ चुके थे, हमारी बातचीत आगे बढ़ी। मैंने पूँछा-

“यह किस बेस पर कह रहे हो कि, अपने देश में बैटरों का ही जमाना है..?”

“देखो यार, सारे आर्थिक सुधार देश के बैटरों के लिए ही होते हैं, इन सुधारों ने बैटिंग करने लायक बढ़िया पिच भी तैयार कर रखा है…तो,बैटरों का जमाना होगा ही..! समझे?”

आगे मेरी जिज्ञासु टाइप की चुप्पी देख वे फिर से छाँटना चालू किए –

“यार, वैसे भी ले देकर अपना देश, एक ही खेल खेलता है, वह है क्रिकेट, और वह भी, जानते हो क्यों..? क्योंकि, अपना देश आलसियों का देश रहा है…आराम से खड़े रहो और खेलते भी रहो..न हुचकी न धम-धम और खेल भी लिए..! और इसमें भी बैटिंग के क्या कहने, परम आलसी ही अच्छी बैटिंग कर पाता है। इसीलिए तो कहता हूँ, क्रिकेट ही इस देश के लिए सबसे मुफीद गेम है और आजकल, ऊपर से बढ़िया आर्थिक सुधार जैसे कार्यक्रम बैटिंग का माहौल बनाए हुए है..!!”

यह सब सुनते हुए मैं मित्र को घूरे जा रहा था, इसे भांपकर उनने फिर कहा-

“जानते हो अपना देश, भ्रष्टाचार में क्यों आगे है…?”

“अरे यार अब इसमें भी बीच में क्रिकेट को घुसेड़े दे रहे हो..?” मैंने कहा।

“नहीं भाई, आलस..! अगर हम आलसी न होते तो, मेहनत करते, मेहनत की दो जून की रोटी खाते। दिनभर टीवी के सामने दीदे फाड़कर किरकट न देखते। खैर, तुम्हें अब अवसर मिला है..फालतू की बातों में न पड़ो..ढंग की बैटिंग कर लो..तुम्हारे जैसे सब इसी में लगे हैं..।”

उनकी बात का मर्म में समझ रहा था। लेकिन मेरा ध्यान भारत-पाकिस्तान के क्रिकेट-मैच पर अटका हुआ था। इनमें से कौन जीतेगा ? मुझे इस बारे में चिन्तित देख दार्शनिक टाइप से समझाते हुए वे बोले-

“छोड़ यार! यह खेल नहीं धंधा है…फकत तीन घंटे का शो है…इससे ज्यादा कुछ नहीं..वही छक्का-चौका और वही बॉलिंग-फील्डिंग..! इससे ज्यादा कुछ नहीं…देशभक्ति की थोड़ी घुट्टी पिए होने के कारण उत्तेजना बढ़ जाती है…नहीं तो, बाकी और कुछ नहीं इस क्रिकेट के खेल में। टास होगा तो, चित या पट में से एक तो आएगा ही…क्रिकेट का मैदान मार लेने से देश महान थोड़ी न हो जाएगा..! उस पर ससुरे ये टीवी वाले उत्तेजना फैला-फैला कर विज्ञापन कमाते हैं… हमीं तुम हैं कि चियर लीडर बने फिरते हैं..!!”

मित्र की बात अभी समाप्त हुई ही थी कि टीवी के स्क्रीन पर “खेल-भावना” की दुहाई देते हुए कोई ऐंकर कुछ कह रहा था.. मित्र जी यह सुनते ही बिफर पड़े-

“देखा..! इन ससुरों को क्रिकेट मैच होने के पहले खेल-भावना याद नहीं आई..हारने पर अब खेल-भावना याद आ रही है…इनका धंधा जो हो चुका..!!”

क्रिकेट का खेल अब तक खत्म भी हो चुका था और मित्र के चक्कर में पूरा खेल देख नहीं पाया था। खैर, इसलिए मेरी खेल-भावना भी बरकरार रही। इधर मित्र के जाने के बाद, नौकरी के पिच पर फील्डरों से बचने के लिए सफल बैटिंग के गुर पर चिंतन-मनन करने लगा था।

*विनय कुमार तिवारी

जन्म 1967, ग्राम धौरहरा, मुंगरा बादशाहपुर, जौनपुर vinayktiwari.blogspot.com.