लघुकथा

मूक दर्शक

” बहुत अच्छा करती हो जो अब गोष्ठियों में आने लगी हो , अच्छा लगा आपको यहाँ देखकर । ” एक वरिष्ठ साहित्यकार ने एक महिला से कहा ।

” जी नमस्ते सर , नहीं ऐसा कुछ नहीं है , समय अनुसार आ जाती हूँ , विविध रचनाकारों को सुनने का अवसर मिल जाता है । ” उस महिला ने उत्तर दिया ।

” ओह तो श्रोता बनकर आती हो ? ”

” जी , वैसे सुना है आज कल श्रोता नहीं मिलते ? जो भी आते है उन सभी को मंच की लालसा होती है । ”

” बिलकुल सही कह रहीं हैं आप”, अट्हास लेते हुए उन्होंने अपने साथी की तरफ देखते हुए कहा , एक एवार्ड होना चाहिए साहब मूक दर्शकों के लिए भी ।”

तभी उनके एक साथी ने आकर कहा ,” अरे यार बहुत छाए हुए हुए हो आज कल हर मंच पर तुम ही तुम दिखाई देते हो , अख़बारों की सुर्ख़ियों में हो , फलां फलां बता रहा था की मंच पर सम्मान लेने हेतु कुछ सहायता राशि पहले से ही ले ली गयी थी ।”

अपने मित्र को वे मूक होकर सुनते रहे , माथे पर के पसीने ने उनकी वरिष्ठता को उजागर कर दिया था ।

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट श्री द्वारकाधीश मन्दिर चौक बाज़ार भोपाल 462001 मो न. 9424473377