राजनीति

राष्ट्रपति चुनावों में अब राम बनाम मीरा का मुकाबला

देश के राष्ट्रपति पद के चयन हेतु विगत काफी दिनों से नामों को लेकर काफी चर्चायें मीडिया जगत में चल रही थीं, लेकिन अब राजग गठबंधन की ओर से बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद और यूपीए की ओर से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के बीच अहम मुकाबला तय हो गया है। इस चुनावी रेस में फिलहाल राजग उम्मीदवार रामनाथ कोविंद की जीत का रास्ता आसान दिखायी पड़ रहा है। राष्ट्रपति चुनावों में इस बार का मुकाबला दलित बनाम दलित महिला के बीच हो गया है। भाजपा के उम्म्ीदवार रामनाथ कोविंद का नाम जब सामने आया, तब एक बार फिर लोग चौंक गये। पीएम मोदी ने अपने मास्टरस्ट्रोक से सभी राजनैतिक विश्लेषकों को चौंका दिया। सबसे बड़ी बात यह है कि राजग उम्मीदवार को अन्नाद्रमुक, टीआरएस सहित दक्षिण भारत की तमाम छोटी-बड़ी पार्टियों का समर्थन हासिल हो रहा है, जिसके कारण उनकी जीत की राह आसान हो गयी है।
राजग उम्मीदवार रामनाथ कोंविद भाजपा के बड़े निर्विवाद दलित नेता रहे हैं वह 1994 में पहली बार राज्यसभ सदस्य बने । 2004 में भाजपा अनुसूचित जाति-जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। केंद्र में राजग की पूर्ण बहुमत की सरकार बनने के बाद 8 अगस्त 2015 को बिहार के राज्यपाल बने। देश के अधिकांश दलित चिंतकों व विचारकों ने उनको राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का समर्थन कया है। फिलहाल प्रतीत हो रहा है कि गणित के हिसाब उनकी जीत सुनिश्चित है। लेकिन 17 दलों के महागठबंधन ने दलित नेता के नाम को भी नहीं स्वीकार किया और उन्हें संघी व दलित विरोधी नेता बताकर अपमानित करते हुए दलित महिला नेता मीरा कुमार को चुनावों में उतारकर मुकाबला रोचक बनाने का असफल प्रयास जरूर किया है।
पीएम मोदी ने राष्ट्रपति पद के चुनावों में कोविंद को अपना उम्मीदवार बनाकर एक बहुत सधी हुयी राजनैतिक चाल चली है। कोविंद को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने दलितों के बीच यह संदेश देने का प्रयास किया है कि वह दलितों की सबसे बड़ी हितैषी है। साथ ही आगामी विधानसभा चुनावों में कोविंद के नाम का उपयोग भी किया जायेगा। रामनाथ कोविंद कोरी जाति से आते हैं तथा गुजरात में कोरी समुदाय की तादाद काफी मात्रा में है। उप्र व बिहार की जनता को भी साधने का प्रयास किया गया है। रामनाथ कोंविंद के सहारे भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनावों की रणनीति अभी से तैयार कर ली है। देश के राजनैतिक इतिहास में पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से जुड़ा कोई व्यक्ति राष्ट्रपति के पद पर आसीन होने जा रहा है। यदि वह सफलतापूर्वक राष्ट्रपति बन जाते हैं तो वह दूसरे दलित नेता होंगे जो देश का यह सबसे बड़ा पद संभालने का गौरव प्राप्त करेंगे। साथ ही उप्र की जनता को यह गौरव पहली बार मिलेगा कि राष्ट्रपति और पीएम दोनों ही उप्र से होने जा रहे हैं।
कोविंद के राष्ट्रपति बनने से उप्र में दलितों के बीच भाजपा अपनी पैठ को और अधिक मजबूत बनाने का प्रयास करेगी। कोविंद दलितों में कोरी समुदाय से आते हैं और यूपी में वह जाटव और पासी के बाद सबसे बड़ा दलित समुदाय है। लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा ने मायावती के वोट बैंक को गहरी चोट पहुंचायी है और वह अब राष्ट्रपति चुुुुुनाव के बहाने दलितों के बीच और अधिक मजबूती के साथ सामने आकर 2019 का चुनाव जीतने की अभी से तैयारी शुरू कर दी है। कोविंद के बहाने भाजपा ने यह भी साबित करने का प्रयास किया है कि वह दलित विरोधी कतई नहीं है। अभी भाजपा विरोधी साजिशकर्ताओं ने कई कारणों से भाजपा को दलित विरोधी साबित करने का असफल प्रयास किया है।
कोविंद की सबसे बड़ी विशेषता यह भी है कि वह बेहद सरल स्वभाव के मिलनसार और खुले दिल वाले तथा संविधान विशेषज्ञ भी है। भाजपा ने कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर यह साबित कर दिया है कि अब भाजपा में उन्हीं लोगों का नाम आगे आया करेगा जो कि मीडिया की चर्चा से कोसों दूर रहा करेंगे। राष्ट्रपति पद के लिए मीडिया में तरह-तरह के नामों की चर्चा चल रही थी लेकिन पीएम मोदी ने आखिरकार सभी को चौंका कर रख दिया।
राजग उम्मीदवार कोविंद का बचपन भी काफी गरीबी में बीता है। उनकी दिनचर्या भी योगासन और घंटे भर की सेर से शुरू होती है। वह विशुद्ध शाकाहारी भोजन पसंद करते हैं। रामनाथ कोविंद ने दलितों, पिछड़ों और महिलाओं के लिए काफी संघर्ष किया है। उन्होंने कानपुर विवि से वाणिज्य से स्नातक और एलएलबी किया और सफल वकील रहे। उन्होंने वर्ष 1977 से 1979 तक दिल्ली हाईकोर्ट में 1980 से 1993 तक सुप्रीम कोर्ट में वकालत भी की। वह भाजपा दलित मोर्चा और अखिल भारतीय कोरी समाज के अध्यक्ष रह चुके है। अभी तक कोविंद राजनैतिक विवादों से पूर्णतया दूर रहे हैं। वह संविधान विशेषज्ञ हैं।
कोविंद के सहारे भाजपा ने अंबेडकरवाद की राजनीति को आगे बढ़ाने का भी काम किया हैं तथा इनके माध्यम से सामाजिक समरसता को भी आगे बढ़ाने का संभव प्रयास भाजपा व संघ करेगा। कोविंद के सहारे अब भाजपा को दलित विरोधी साबित करना विपक्षी दलों के लिए आसान नहीं रह गया है। लेकिन विपक्ष ने जिस प्रकार से दलित महिला मीरा कुमार को चुनावी मैदान में उतारा है वह पूरी तरह से खुली राजनीति ही है। यह भारत के बहुसंख्यक हिंदू समाज में एक गहरी दरार डालने का प्रयास है।
यह 17 दलों का वही महागठबंधन है जो नोटबंदी की मार से अभी तक उबर नहीं सका है। मीरा कुमार ने इन दलों की ओर से उम्मीदवारी स्वीकार करके अपनी राजनैतिक नासमझी का ही परिचय दिया है। महाठबंधन में शामिल दलों का अब कोई राजनैतिक अस्तित्व नहीं बचा है। वह हारी हुई लड़ाई लड़ने के लिए उतर पड़ी है। अभी हर प्रकार से फिलहाल रामनाथ कोविंद का कद मीरा कुमार के मुकाबले कहीं अधिक बडा दिखलायी पड़ रहा है। एक टीवी चैनल में बहस के दौरान विपक्षी दलों के नेता व समर्थक यही बहस कर रहे थे कि मीरा कुमार जगजीवन राम की बेटी हैं। वहीं एक ने तपाक से यह कह ही डाला कि आखिरकार मीरा कुमार की अपनी व्यक्तिगत योग्यता व पहचान कितनी और कैसी है? क्या केवल यही योग्यता है कि वह केवल पूर्व दिवंगत नेता की बेटी हैं?
राष्ट्रपति पद के चुनावों में वामपंथी दलों के नेता जिस प्रकार से मीरा कुमार के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कर रहे थे वह भी काफी हास्यास्पद व चौंकाने वाले थे। भाजपा उम्मीदवार रामनाथ कोविंद का जीवन अभी तक पूरी तरह से अनुशासित रहा है। अतः यह तय है कि जब संविधान विशेषज्ञ और संघ परिवार की पृष्ठभूमि से जुड़े कोविंद देश के राष्ट्रपति बनेंगे तो देश के राजनैतिक इतिहास में एक नई इबारत लिखी जा रही होगी, जिसमें दलित एजेंडा भी होगा, सामाजिक समरसता का भी होगा तथा देशहित का भी होगा। उनका राष्ट्रपति बनना देश, भाजपा, संघ व दलित राजनीति के एजेंडे के लिए एक बहुत बड़ा पड़ाव होगा। चाहे जो हो कोविंद की दावेदारी से एकबारगी विपक्ष का महागठबंधन का प्रयास तो बिखर गया ही है।

मृत्युंजय दीक्षित