कविता

हर पर्व का संदेश: सद्भावना

सद्भावना जीवन सार बने
हर मानव का श्रृंगार बने-

सद्भावना से कायम धरती,
यह भेद नहीं कोई करती,
जग-जीवन को सुदृढ़ करती,
हम धरती पर क्यों भार बनें?

सद्भावना से भरपूर गगन,
सीमा-रेखा से दूर मगन,
केवल समभाव की इसको लगन,
क्यों शून्य का हम संहार बनें?

सद्भावना से हो देश अभय,
हर भारतवासी बने निर्भय,
हो सत्य-अहिंसा-शील की जय,
क्यों जीत हमारी हार बने?

सद्भावना जीवन सार बने
हर मानव का श्रृंगार बने.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244