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“आर्य विदेशी थे, आक्रमणकारी थे” यह भ्रान्ति क्यों फैली?

यह भ्रान्ति इसलिए फैली क्यूंकि विदेशी इतिहासकारों ने वेदों में इतिहास को माना। वर्तमान में वेदों में इतिहास के सम्बन्ध में दो प्रकार की मान्यतायें प्रचलित है।
विदेशी लेखक वेदों में आर्य-द्रविड़ युद्ध, आर्यों को विदेशी दिखाने में लगे हैं।  जबकि भारतीय लेखक वेदों में श्री राम,श्री कृष्ण,अयोध्या नगरी, सरस्वती नदी, इन्द्र और स्वर्ग दिखाने में लगे हैं। विदेशियों की तो समझ में आती है।  उनका ज्ञान सीमित है और वे निष्पक्ष नहीं हैं। मगर भारतीय लेखक भी कम अँधेरे में नहीं हैं। वे वेदों में अपनी सहूलियत के अनुसार इतिहास खोजते हैं। वेदों को रामायण-महाभारत से नत्थी करने को वे शोध मानते हैं। मगर वेदों में जब कोई आर्य-द्रविड़ युद्ध दिखाए तो उसे गलत मानते हैं। भई आप अगर केवल यह मान ले कि वेदों में इतिहास ही नहीं है। तो आपकी सभी शंकाओं का निवारण हो जाये।
एक उदहारण देकर अपनी बात सिद्ध करना चाहूंगा कि इतिहासकार कैसे भ्रमित है। कॉनरेड एल्स्ट (Koenraad Elst) विदेशी लेखक है। आप सीता राम गोयल और रामस्वरूप जी से प्रभावित थे। आजकल आप भारतीय लेखकों के पक्ष में अपने विचार रखते हैं। आप भी इसी दुविधा का शिकार हो गए।
 एक ओर आपने आर्यों के विदेशी होने का खंडन किया।
दूसरी ओर आप वैदिक राजाओं के युद्ध करने का वेदों में उल्लेख सिद्ध कर रहे हैं।
इस समस्या का समाधान —-
स्वामी दयानन्द ने वेदों में इतिहास होने की मान्यता का खंडन किया। उनका कहना था कि वेद शाश्वत हैं। वेद परमात्मा की नित्य वाणी है। वेदों में सृष्टि रचना, वेद रचना आदि नित्य इतिहास ही हो सकता है, किन्तु किसी व्यक्ति विशेष का इतिहास नहीं हो सकता। इस सृष्टि के आदि में चारों वेद ऋषियों के हृदय में प्रकाशित हुए। वेद ज्ञान का भी दूसरा नाम है। वेदों के माध्यम से ईश्वर द्वारा समस्त मानव जाति को ज्ञान प्रदान किया गया जिससे वह अपनी उत्पत्ति के लक्षय को प्राप्त कर सके। यह ज्ञान ईश्वर द्वारा जिस प्रकार से वर्तमान सृष्टि में प्रदान किया गया उसी प्रकार से पूर्व की सृष्टियों में भी दिया जाता रहा और आगे आने वाली सृष्टियों में भी दिया जायेगा। जिस ज्ञान का उपदेश परमात्मा द्वारा सृष्टि के आरम्भ में मनुष्यों को दिया गया उसमें किसी भी प्रकार का इतिहास नहीं हो सकता। क्यूंकि इतिहास किसी रचना में उससे पूर्वकाल में उत्पन्न मनुष्यों का हुआ करता है। सृष्टि के आरम्भ में जब कोई मनुष्य ही नहीं था फिर उनका किसी भी प्रकार का इतिहास वेदों में पहले से ही वर्णित होना संभव ही नहीं है। मनुष्य का ऐतिहासिक क्रम वेदों की उत्पत्ति के पश्चात ही आरम्भ होता है।
मेरी अनेक भारतीय इतिहासकारों से चर्चा हुई हैं। कोई भी स्वामी दयानन्द का पक्ष स्वीकार करने को तैयार नहीं है। वे समझते है कि बिना वेदों में इतिहास बताये श्री राम, श्री कृष्ण और सरस्वती नदी की ऐतिहासिकता को सिद्ध नहीं कर सकते। स्पष्ट है वे शोध के नाम पर कचरे पर कचरा एकत्र कर रहे हैं।
आर्यसमाज के सभी वेद विद्वानों ने वेदों में इतिहास नहीं है, इस विषय पर बहुत सुन्दर लिखा हैं। उन्हीं के विचारों को वेदों में इतिहास नहीं है।  इस शीर्षक से एक लेख के माध्यम से प्रस्तुत कर रहा हूँ।  निष्पक्ष पाठक विचार करे।
डॉ विवेक आर्य